उत्तर प्रदेश के हाथरस में 14 सितंबर को हुए अनुसूचित जाति की युवती के कथित गैंगरेप और हत्या की गुत्थी और उलझती जा रही है. एक ओर जहां अब पीड़ित परिवार पर ही सवाल खड़े किए जा रहे हैं, वहीं इस घटना पर राजनीति भी तेज़ हो गई है.
घटना के समय मृत युवती का छोटा भाई कहां था?
इस कहानी में पीड़िता के भाई का हमनाम एक दूसरा शख़्स है जिसे पुलिस पीड़ित परिवार की शिकायत पर गिरफ़्तार कर चुकी है.
गांव के कई लोग मीडिया में बयान देते हुए ये बात कहते हैं कि पीड़िता वीडियो में जिसका नाम ले रही है वह छोटा भाई ही है. हालांकि कोई भी ये नहीं बता पाता कि उन्होंने उसे उस दिन गांव में देखा था या नहीं.
सोशल मीडिया और मुख्यधारा की मीडिया में मृत युवती का एक वीडियो वायरल हो रहा है. ये तब रिकॉर्ड किया गया था जब पीड़िता के परिजन उसे घटना के बाद थाने लेकर पहुंचे थे.
इस वीडियो में पीड़िता कह रही है कि उसने मेरा गला दबा दिया. हाथों से गला दबाया. गला छोड़ा ना बा ने.
जब पीड़िता से पूछा जाता है कि गला क्यों दबाया तो वो जवाब देती है, ‘जबरदस्ती ना करने दी मैंने.’
अब इस वीडियो के आधार पर सवाल उठाया जा रहा है कि जिस व्यक्ति का नाम पीड़िता ले रही है वो उसका छोटा भाई है. हालांकि भाई का बीबीसी से कहना था कि घटना के समय वह नोएडा में था और दो सप्ताह तक अस्पताल में बहन के साथ ही रहा. पीड़िता के शव के साथ ही वो गांव लौटा था.
पहली एफ़आईआर में रेप की धारा क्यों नहीं है?
मृत युवती के बड़े भाई की ओर से थाने में दी गई पहली तहरीर में रेप का ज़िक्र नहीं है. बल्कि मुख्य अभियुक्त संदीप के उसका गला दबाकर मारने की कोशिश करने का आरोप लगाया गया है और इसी आधार पर एफ़आईआर भी दर्ज की गई है.
अब ये सवाल उठ रहा है कि परिवार ने पहली एफ़आईआर में रेप की बात क्यों नहीं कही थी.
बीबीसी ने यही सवाल जब मृत युवती की मां से किया तो उनका कहना था कि ‘बेटी उस समय सुध में नहीं थी, पूरी बात नहीं बताई. जब बाद में उसे सुध आई तो पूरी बात बताई.’
हालांकि जब हमने उनसे अनौपचारिक बात की तो उन्होंने कहा कि उन्हें लोक-लाज का डर था. मृत युवती की मां ने अपने बयान में कहा है कि जब वो बाजरे के खेत में उन्हें मिली तो अर्धनग्नन और बेहोश थी.
पुलिस ने तुरंत रेप टेस्ट क्यों नहीं कराया?
यौन हमले की जांच के लिए पीड़िता के नमूने पहली बार 22 सितंबर को तब लिए गए जब उसने पुलिस पूछताछ में अपने साथ हुई घटना को विस्तार से बताया और चार अभियुक्तों के इसमें शामिल होने के आरोप लगाए. आगरा की फोरेंसिक लैब को ये नमूने 25 सितंबर को प्राप्त हुए.
जब पीड़िता पहली बार थाने पहुंची थी तब पुलिस ने यौन हमले की दृष्टि से जांच क्यों नहीं की? इस सवाल पर तत्कालीन एसपी और अब निलंबित विक्रांत वीर ने बीबीसी से कहा था, ‘पीड़िता के परिवार ने जो शिकायत दी थी उसी के आधार पर एफ़आईआर दर्ज की गई. बाद में जब उसे होश आया और उसने गैंगरेप की बात कही तो 22 सितंबर को गैंगरेप की धाराएं जोड़ दी गईं और अभियुक्तों को तुरंत गिरफ्तार कर लिया गया.’
हालांकि जब बीबीसी ने उनसे पूछा कि पहली शिकायत के बाद पुलिस ने कार्रवाई क्यों नहीं की तो उनका कहना था कि पुलिस ने सही काम किया है और सबूत जुटाने की हर संभव कोशिश की है.’
पीड़िता जब थाने पहुंची थी तो उसकी हालत ख़राब थी, उसने अपने बयान में जबरदस्ती की कोशिश का ज़िक्र भी किया था लेकिन फिर भी पुलिस ने शुरुआत में यौन हमले की दृष्टि से मामले को क्यों नहीं देखा, इसका जवाब यूपी पुलिस को देना है.
पुलिस ने परिवार को मेडिकल रिपोर्ट और पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट क्यों नहीं दी?
पीड़िता के परिजनों का आरोप है कि पुलिस ने पीड़िता की मेडिकल रिपोर्ट या पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट उन्हें नहीं सौंपी. बीबीसी ने जब इस बारे में तत्कालीन एसपी विक्रांत वीर से सवाल किया था तो उनका कहना था कि रिपोर्ट अभी गोपनीय है और इसे जांच में शामिल कर लिया गया है.
पीड़ित परिवार का ये अधिकार है कि उसे सभी मेडिकल दस्तावेज़ और पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट मिले. पुलिस ने परिवार को रिपोर्ट क्यों नहीं दी इसका जवाब पुलिस ने नहीं दिया है.
इसी मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर पुलिस ने अपने बयान में कहा है कि फोरेंसिक सबूतों के आधार पर रेप की पुष्टि नहीं हुई है. हालांकि रिपोर्ट में ज़बरदस्ती पेनिट्रेशन की कोशिश का ज़िक्र है. पुलिस ने रिपोर्ट के इस बिंदू को अपने बयान में शामिल नहीं किया था.
जब बीबीसी ने एसपी से इस बारे में सवाल किया तो उनका कहना था, ‘जांच के इस स्तर पर ये नहीं कहा जा सकता कि पूरा घटनाक्रम क्या है, अभी जांच चल ही रही है.’
पीड़िता के शव को रात में क्यों जलाया गया?
पुलिस और प्रशासन का तर्क है कि शव खराब हो रहा था और मामला संवेदनशील होने की वजह से माहौल ख़राब होने का डर था.
हालांकि परिजनों का आरोप है कि पुलिस मामले की लीपापोती करने की कोशिश कर रही थी और जल्दबाज़ी में ‘शव को नष्ट’ करना इसी कोशिश का हिस्सा हो सकता है.
पीड़िता की भाभी ने बीबीसी से बात करते हुए पुलिस पर ‘लाश जलाकर सबूत मिटाने के आरोप लगाए थे.’
पीड़िता के अंतिम संस्कार के बाद अब दोबारा किसी भी मेडिकल जांच की संभावना समाप्त हो गई है.
रामू उस दिन कहां था?
अभियुक्त रामू के परिजन और उनके समर्थन में पंचायत करने वाले ठाकुर और सवर्ण समाज के लोग ये तर्क देते हैं कि घटना के समय रामू डेयरी पर ड्यूटी कर रहा था. वो कहते हैं कि इसके सीसीटीवी सबूत उपलब्ध होंगे. लेकिन वो किसी तरह का सीसीटीवी फुटेज मुहैया नहीं करवा पाते.
पुलिस से जब गिरफ़्तारी को लेकर सवाल किया गया तो एसपी का कहना था कि अभी पीड़िता के बयान के आधार पर गिरफ़्तारी की गई है. तकनीकी और फोरेंसिक सबूत जुटाए जा रहे हैं. किसी भी बेगुनाह को सज़ा नहीं मिलेगी.
वहीं पीड़िता का परिवार ज़ोर देकर ये बात कहता है कि पीड़िता ने रामू का नाम लिया है, वो उसके लिए फांसी से कम कुछ भी नहीं चाहते हैं. जिस डेयरी पर रामू काम करता था उसके मालिक ने भी उसे निर्दोष बताया है लेकिन सीसीटीवी फुटेज अभी तक जारी नहीं की है.
साभार: बीबीसी