रोजगार, बुलेट ट्रेन और डिजिटल क्रान्ति के दौर में भूख से 3 बच्चियों की मौत, जवाब कौन देगा?

Death Of Three Minor Sisters (Age 8, 4 and 2 Years) In Mandawali Delhi In Era Of Bullet Train And Free Data

दिल्ली, यमुना पार, मंडावली में तीन बहनों (8 साल, 4 साल और 2 साल) की मौत.

कैसे?

ये सवाल मुंह बाए खड़ा है.

जवाब सिर्फ “भूख” नहीं है.

 

राजनीति में आरोप प्रत्यारोप का दौर जारी है. कोई वर्तमान सरकार पर दोष लगा रहा है तो कोई केंद्र सरकार और उपराज्यपाल पर. जांच के आदेश दिए गए हैं, लेकिन पोस्टमार्टम की रिपोर्ट बता रही है की तीनो बहनो के पीट में अन्न का एक दाना नहीं था.

 

पश्चिम बंगाल से सैकड़ों किलोमीटर दूर एक रोजगार की आस में ही तो था परिवार. मंगल रिक्शा चलाकर और दिडाड़ी मजदूरी कर अपने परिवार का भरण-पोषण करता था। पिछले कुछ दिन से काम नहीं मिलने की वजह से वह अपने कमरे का किराया भी नहीं दे पा रहा था। इसलिए मकान मालिक ने उसे अपने घर से निकाल दिया था और पूरा परिवार सड़क पर आ गया। मंगल का एक रिश्तेदार नारायण जो मंडावली में ही रहता है और एक होटल में काम करता है। वह मंगल के पूरे परिवार को अपने किराए के कमरे में शनिवार को लेकर आ गया।

 

 

इतना भयावह और दर्दनाक और क्या हो सकता है की उनके घर पर पिछले कई दिनों से चूल्हा जलता नहीं देखा गया. छोटे छोटे बच्चे और घर में अन्न का दाना नहीं. बाप रोजगार की तलाश में पता नहीं कहाँ गया है, शायद उसे तो पता ही नहीं होगा की उसकी तीनों परियां अब इस दुनिया में नहीं हैं.

 

पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट से पता चला है कि एक हफ्ते से ज्यादा समय तक भूखे रहने से पेट पूरी तरह खाली था।

 

कहा जा रहा है की माँ की मानसिक हालत ठीक नहीं है, हो सकता है. लेकिन जिसे एक हफ्ते से खाना न मिला हो, बच्चे (दो साल की) कई दिनों से भूखे हों तो उसकी मानसिक हालत कैसी होगी.

 

देश में रोजगार के जयकारे लग रहे हैं, बुलेट ट्रेन आ रही है, डिजिटल क्रांति चल रही है, डाटा सस्ता हो गया है, फिर भी बच्चे भुखमरी से मर गए.

न राम आये और न रहीम.

 

जब मंदिर-मस्जिद और गौ-हत्या से फुरसत मिल जाए तो इन के लिए खाने का जुगाड़ कर लेना.