गुमनाम शायर – सुभान सैफी
वैसे तो एक रेस्टॉरेंट के मालिक हैं और खाना बनाने में उनके हाथ का जादू चलता है.
लेकिन उनकी शायरी के चर्चे भी आम हैं.
देखें और पसंद करें:
एक दिन मुझे महंगाई मिली,
उसका इठलाता यौवन
उफान पर जवानी देखकर
मैं दंग रह गई
मैंने उसे कभी
बचपन में देखा था,
जब मैं
रुपया लीटर दूध
पांच रुपया किलो
सेब लाया करती थी,
तब ये महंगाई
फटे हाल अधनंगी रहती
कोई इसे न जानता
न पहचानता था,
लेकिन
आज हर कोई
इसे अवाक् देखता है
मैंने महंगाई की
जवानी का राज
उससे ही पूछा
वह तपाक से बोली
मेरी जवानी का राज
जानना चाहती हो तो
उन अमीरों की
कोठियों में जाओ
जहां मैं नाचती हूँ
पैसों के बल पर
उनके तलुए चाटती हूँ
हर रोज नै जवान बनकर
निकलती हूँ.
तुम जैसे
मुझे छूना तो दूर
देखना भी पसंद नहीं करते
इसलिए
तुम्हें मैं
जवान नजर आती हूँ,
गरीबों को तो मैं,
बिलकुल नहीं भाती हूँ
मैं उसका उत्तर सुनकर
चुप रह गयी
सोचती रह गयी, सोचती रह गयी
साभार: शोभा शर्मा, सहारनपुर
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धीरे से, कोई आहट न हुई
फिर आज तोड़ दी गयी आशंकाएं
इस बदरंग जमाने में
कुचल दी गयी संवेदनाएं
फिर धकेले गए
निराशा भरे गर्त के अंधेरों में
आज फिर वह
लौटा दी गयी अपने घर
दुर्भाग्य! वहां भी वह हो गयी कोई और
कल तक जहां
खिलते और गूंजते थे अपने स्वर
शब्द, अब उस दहलीज पर
बरबस ही कर्कश सुनाई देने लगे
अपना घर…
जहाँ ईश्वर ने भेजा
समझा, जाना है कहीं और
फिर जहाँ समाज ने भेजा
समझाया गया, हूँ कोई और
आखिर कब तक…
सिलसिला यहीहोगा
और हर बार एहसास होगा
स्त्री होने के अपराध का.
बंधनो से मुक्ति का दिवास्वप्न
क्या कभी पूरा होगा?
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ऐश्वर्य राणा, कोटद्वार
ऐ खुदा,
तुझसे नाराज हूँ,
क्यों?
शायद मुझे लगता है
कि
जिसे जरूरत है
उसे तूने कुछ दिया नहीं.
और
जिसके पास पहले से
इतना कुछ है
उसे तू छप्पर फाड़ के
दिए जा रहा है.
इसलिए,
ऐ खुदा,
तुझसे नाराज हूँ,
कोई प्यार को तरसे
किसी को प्यार से
फुरसत नहीं है.
किसी के हाथो में
देकर तूने छीन लिया है.
और
किसी कि झोली
भरे जा रहा है.
इसलिए,
ऐ खुदा,
तुझसे नाराज हूँ,
जो सच्चा है
उससे तू छीने जा रहा है
जो झूठा है
उसकी झोली
भरे जा रहा है.
कानून का जो
सम्मान करे,
और
कानून से जो डरे,
कानून उसके पीछे पड़े,
जो कानून को तोड़े,
और
अपने हाँथ में
लेकर खिलवाड़ करे,
कानून उससे डरे,
भागता – बचता फिरे.
इसलिए,
ऐ खुदा,
तुझसे नाराज हूँ,
आँखों में
सपने दिखाकर
दिल तोडना
तेरी फितरत हो गयी है.
और
जो दिल तोड़ते हैं
उनके
आँखों के सपने
तू पूरे किये जा रहा है.
इसलिए,
ऐ खुदा,
तुझसे नाराज हूँ,
साधू संत अब
माया के पीछे पड़े हैं,
माया तो छोड़ो,
चरित्र से भी गिरे हैं.
और कुछ तो
अपनी दुकानदारी में लगे हैं.
आत्मा – परमात्मा
की बात करने वाले,
बीसियों पहरेदारों
से घिरे हैं.
इसलिए,
ऐ खुदा,
तुझसे नाराज हूँ,
मंदिर – मस्जिद अब
कहने को तेरा घर हैं,
वैसे
ये अब कमाई
का धंधा बन गये हैं.
महंत बनने को
खून किये जा रहे हैं,
और मस्जिदों से
हथियारों के जखीरे
मिल रहे हैं.
इसलिए,
ऐ खुदा,
तुझसे नाराज हूँ,
और शायद
इसीलिए
मैं तुझपर
विश्वास खोता जा रहा हूँ
और
तेरा विश्वास
मुझ पर से
उठता जा रहा है.
इसलिए,
ऐ खुदा,
तुझसे नाराज हूँ,
और
शायद
तुझसे
बहुत नाराज हूँ.
इस बदलती दुनिया में,
पल पल होते हैं परिवर्तन.
देखने में अच्छे लगते,
पर सच जानता है अंतर्मन.
परिवर्तनों के साथ जो चलता,
गिरगिट की तरह रंग बदलता,
वो ही जीवन में आगे बढ़ पायेगा.
वरना भीड़ में अकेला रह जाएगा.
अच्छा जीवन जीने को,
क्या क्या कर रहा इंसान,
दो वक्त की रोटी से
संतुष्ट नहीं वो मेहनती किसान.
आज के हालात कुछ हैं ऐसे,
रिश्ते उन्हीं से जिनके पास हैं पैसे
उन्हीं की होती जग में पूँछ.
अपने बारे में जब सोचूं,
खुद को पाती हूँ बहुत पीछे.
इस रंग बदलती दुनिया में,
क्या खुद को बदल पाऊँगी,
गिरगिट बन आगे बढ़ूंगी
या पीछे रह जाउंगी.
इसी उलझन में वक्त गंवाकर
असफल ही न रह जाऊं मैं.
मेरे अवसर कोई और न चुरा ले,
हाथ मलती न रह जाऊं मैं.
ऊपर से दिखने वाले
अंदर से कुछ और हैं.
इनके सुन्दर मुखौटे के पीछे
चेहरा बहुत कठोर है.
पर मेरा मन एक पंछी बन
आकाश में उड़ना चाहता है.
दुनिया की सच्चाई जानकार
मेरा मन घबराता है.
लेकिन है अगर आगे बढ़ना,
होगा मुझे इन सबसे लड़ना.
अपना आत्म-विश्वास बढाकर
लक्ष्य को पाने पाना है
मुझे सफल हो जाना है.
साभार: सुप्रिया
रूपायन, अमर उजाला
आज की इस दौड़-भाग वाली जिंदगी में लोग हँसते – मुस्कराते दिखाई पड़ते हैं लेकिन हकीकत में अंदर से टूटे हुए होते हैं. बड़े शहरों की जिंदगी शायद कुछ ऐसी ही है.
मौत हर दिन –
पास सरकती रही,
हम जन्म दिन मनाते रहे,
जिन्दगी जीने को तरसती रही.
दिखावे से लिपी -पुती,
धोखे से रंगी -पुती,
पातळ में –
आकाश खोजती जिन्दगी,
अन्धकार को
समझ प्रकाश
दौड़ती रही,
अपने को ही छलती रही, जो मिला था
उसे तो भूलती रही
और नित नया पाने को
तरसती रही, भागती रही
अंधी दौड़ में फंसती रही,
मौत पास सरकती रही
जिन्दगी जीने को तरसती रही.
साभार: अज्ञात
किसी को प्यार करना और उसे हमेशा के लिए पा सकना जिंदगी की सबसे खूबसूरत घटना है…
लेकिन किसी को बेइंतिहा प्यार करना और उसे खो देना, यह जिंदगी की दूसरी ऐसी घटना है जो हमारी जिंदगी का अहम हिस्सा होती है…
आखिर खोने से पहले बहुत कुछ जो हमने पाया होता है, उसे हमसे कोई छीन नहीं सकता.
मेरे सब्र का न ले इम्तिहान, मेरी खामोशियों को सदा न दे।
तेरे बगैर जी न सके, उसे जिन्दगी की दुआ न दे।
तू अजीज दिल-ओ-नजर से है, तू करीब रग-ऐ-नजर से है।
मेरे जिस्म-ओ-जान का ये फासला, कहीं वक्त और बढ़ा न दे।
तुझे भूल के भी भुला न सकूं, तुझे चाह के भी पा न सकूं।
मेरी हसरतों को शुमार कर, मेरी चाहतों का सिला न दे।
जरा देख चाँद की पत्तियों ने, बिखर-बिखर तमाम शब्।
तेरा नाम लिखा है रेत पर, कोई लहर आके मिटा न दे।
नए दौर के नए ख्वाब हैं, नए मौसमो के गुलाब हैं।
ये मोहब्बतों के चिराग है, उन्हें नफरतों की हवा न दे।
मैं उदासियों न सजा सकूं, कभी जिस्म-ओ-जान के नजर पर।
न दिए जले मेरी आँख में, मुझे इतनी सख्त सजा न दे।
मो. हासिम सिद्दीकी द्वारा भेजी गयी