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  • महंगाई – शोभा शर्मा की हिंदी कविता

    महंगाई – शोभा शर्मा की हिंदी कविता

    एक दिन मुझे महंगाई मिली,

    उसका इठलाता यौवन

    उफान पर जवानी देखकर

    मैं दंग रह गई

    मैंने उसे कभी

    बचपन में देखा था,

    जब मैं

    रुपया लीटर दूध

    पांच रुपया किलो

    सेब लाया करती थी,

    तब ये महंगाई

    फटे हाल अधनंगी रहती

    कोई इसे न जानता

    न पहचानता था,

    लेकिन

    आज हर कोई

    इसे अवाक् देखता है

    मैंने महंगाई की

    जवानी का राज

    उससे ही पूछा

    वह तपाक से बोली

    मेरी जवानी का राज

    जानना चाहती हो तो

    उन अमीरों की

    कोठियों में जाओ

    जहां मैं नाचती हूँ

    पैसों के बल पर

    उनके तलुए चाटती हूँ

    हर रोज नै जवान बनकर

    निकलती हूँ.

    तुम जैसे

    मुझे छूना तो दूर

    देखना भी पसंद नहीं करते

    इसलिए

    तुम्हें मैं

    जवान नजर आती हूँ,

    गरीबों को तो मैं,

    बिलकुल नहीं भाती हूँ

    मैं उसका उत्तर सुनकर

    चुप रह गयी

    सोचती रह गयी, सोचती रह गयी

     

    साभार: शोभा शर्मा, सहारनपुर

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  • दिखावा: जिन्दगी जीने को तरसती रही, लोग जन्म दिन मनाते रहे

    दिखावा: जिन्दगी जीने को तरसती रही, लोग जन्म दिन मनाते रहे

    आज की इस दौड़-भाग वाली जिंदगी में लोग हँसते – मुस्कराते दिखाई पड़ते हैं लेकिन हकीकत में अंदर से टूटे हुए होते हैं. बड़े शहरों की जिंदगी शायद कुछ ऐसी ही है.

    मौत हर दिन –
    पास सरकती रही,
    हम जन्म दिन मनाते रहे,
    जिन्दगी जीने को तरसती रही.
    दिखावे से लिपी -पुती,
    धोखे से रंगी -पुती,
    पातळ में –
    आकाश खोजती जिन्दगी,
    अन्धकार को
    समझ प्रकाश
    दौड़ती रही,
    अपने को ही छलती रही, जो मिला था
    उसे तो भूलती रही
    और नित नया पाने को
    तरसती रही, भागती रही
    अंधी दौड़ में फंसती रही,
    मौत पास सरकती रही
    जिन्दगी जीने को तरसती रही.

    साभार: अज्ञात