एक ग़रीब परिवार था।
बहुत पुरानी बात है। उनके यहाँ खाने के लाले थे। पिता ने बहुत मेहनत करके थोड़ा पैसा जमा किया और एक छोटी सी दुकान खोली। मेहनत रंग लायी और दुकान चल निकली।
दुकान बढ़ने लगी तो पैसा आना शुरू हुआ। उसके बच्चों का जीवन यापन का तरीक़ा भी बदल गया।
उसने बड़े बेटे को दुकान पर बिठाना शुरू किया। बाद बेटे को पता था बिज़नेस में उधार व्यवहार चलता है। वह क्रेडिट पर बड़े डीलर से समान मँगाता और अपने आस पास के गाँव के छोटे दुकान वालों और रेहडी वालों को क्रेडिट पर समान देता था।
बिज़नेस ठीक चल रहा था। जो दुकानदारी करते हैं उन्हें यह बात अच्छी तरह पता होगी।
व्यापार बढ़ता है तो थोड़ी बहुत उधारी भी बढ़ती है।
अब बात करते हैं छोटे बेटे की। वह बातों का बड़ा क़ाबिल था। बातों में उससे जीतना मुश्किल था। उसके कुछ मित्र भी उसकी तरह ही थे।
वह एक दिन दुकान पर आकर बोला, भैया अब मैं समझदार हो गया हूँ। अब मैं दुकान चलाउंगा। भाई बोला चलो अच्छा है। उसने दुकान भाई को सौंप दी और ख़ुद खेती का काम देखने लगा।
छोटा भाई दुकान पर बैठा और बही खाता देखना शुरू किया। पाया कि वहाँ तो सैकड़ों लोगों का उधार है। उसने तुरंत सभी उधारी वालों को सूचना करवाई की पहले सारी उधारी ख़त्म करो तभी आगे समान मिलेगा।
कुछ लोग जो उधारी नहीं चुका रहे थे, उनको ख़त्म करने के चक्कर में सभी लोगों से व्यवहार ख़राब कर लिया।
इसका सीधा असर यह हुआ की ज़्यादातर दुकानदारों ने उसकी दुकान छोड़ दी और दूसरे डीलरों से समान लेने लगे।
अब जब बिज़नेस में कमी आ गयी तो भाई ने खुले समान की क़ीमतों में वृद्धि कर दी ताकि दुकानदारों से हुआ घाटा जनता से पूरा किया जा सके।
जब दुकान का घाटा नहीं संभला तो वो और उसके मित्र जो बातों के महारथी थे ने कहना शुरू कर दिया की ये सब पिताजी और बड़े भैया की ग़लती की वजह से हुआ है।
उन्होंने उधारी और क्रेडिट पर इतना माल उठा रखा है जिसकी भरपाई करने में ही सारी कमाई चली जाती है।
अब इन्हें कौन समझाए दुकानदारी गप्पों और जुमले से नहीं चलती। इसके लिए थोड़ा व्यावहारिक होना पड़ता है।
अब सवाल यह है कि, गलती किसकी?
बाप की? उसने दूकान क्यों खोली?
बड़े भाई की? उसने इतनी उधारी क्यों बांटी?
छोटे भाई की? उसने उधारी बंद कर दी.