दिल्ली, यमुना पार, मंडावली में तीन बहनों (8 साल, 4 साल और 2 साल) की मौत.
कैसे?
ये सवाल मुंह बाए खड़ा है.
जवाब सिर्फ “भूख” नहीं है.
राजनीति में आरोप प्रत्यारोप का दौर जारी है. कोई वर्तमान सरकार पर दोष लगा रहा है तो कोई केंद्र सरकार और उपराज्यपाल पर. जांच के आदेश दिए गए हैं, लेकिन पोस्टमार्टम की रिपोर्ट बता रही है की तीनो बहनो के पीट में अन्न का एक दाना नहीं था.
पश्चिम बंगाल से सैकड़ों किलोमीटर दूर एक रोजगार की आस में ही तो था परिवार. मंगल रिक्शा चलाकर और दिडाड़ी मजदूरी कर अपने परिवार का भरण-पोषण करता था। पिछले कुछ दिन से काम नहीं मिलने की वजह से वह अपने कमरे का किराया भी नहीं दे पा रहा था। इसलिए मकान मालिक ने उसे अपने घर से निकाल दिया था और पूरा परिवार सड़क पर आ गया। मंगल का एक रिश्तेदार नारायण जो मंडावली में ही रहता है और एक होटल में काम करता है। वह मंगल के पूरे परिवार को अपने किराए के कमरे में शनिवार को लेकर आ गया।
इतना भयावह और दर्दनाक और क्या हो सकता है की उनके घर पर पिछले कई दिनों से चूल्हा जलता नहीं देखा गया. छोटे छोटे बच्चे और घर में अन्न का दाना नहीं. बाप रोजगार की तलाश में पता नहीं कहाँ गया है, शायद उसे तो पता ही नहीं होगा की उसकी तीनों परियां अब इस दुनिया में नहीं हैं.
पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट से पता चला है कि एक हफ्ते से ज्यादा समय तक भूखे रहने से पेट पूरी तरह खाली था।
कहा जा रहा है की माँ की मानसिक हालत ठीक नहीं है, हो सकता है. लेकिन जिसे एक हफ्ते से खाना न मिला हो, बच्चे (दो साल की) कई दिनों से भूखे हों तो उसकी मानसिक हालत कैसी होगी.
देश में रोजगार के जयकारे लग रहे हैं, बुलेट ट्रेन आ रही है, डिजिटल क्रांति चल रही है, डाटा सस्ता हो गया है, फिर भी बच्चे भुखमरी से मर गए.
न राम आये और न रहीम.
जब मंदिर-मस्जिद और गौ-हत्या से फुरसत मिल जाए तो इन के लिए खाने का जुगाड़ कर लेना.
दिल्ली हाई कोर्ट ने बुधवार को एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि देश में अगर सरकार भोजन या नौकरियां देने में असमर्थ है तो भीख मांगना एक अपराध कैसे हो सकता है। कोर्ट उन दो जनहित याचिकाओं की सुनवाई कर रही थी, जिनमें भीख मांगने को अपराध की श्रेणी से बाहर किए जाने का आग्रह किया गया था।
ऐक्टिंग चीफ जस्टिस गीता मित्तल और जस्टिस सी. हरि शंकर की बेंच ने कहा कि एक व्यक्ति केवल भारी जरूरत की वजह से ही भीख मांगता है न कि अपनी पसंद की वजह से। बेंच ने कहा, ‘हमसे एक करोड़ रुपये की पेशकश की जाए तो क्या तब आप या हम भीख नहीं मांगेंगे। यह भारी जरूरत होती है कि कुछ लोग भोजन के लिए अपना हाथ पसारते हैं। एक देश में जहां सरकार भोजन या नौकरियां देने में असमर्थ है तो भीख मांगना एक अपराध कैसे है।’
केंद्र सरकार ने इससे पहले कोर्ट में कहा था कि यदि गरीबी के कारण ऐसा किया गया है तो भीख मांगना अपराध नहीं होना चाहिए। यह भी कहा था कि भीख मांगने को अपराध की श्रेणी से बाहर नहीं किया जाएगा। हर्ष मेंदार और कर्णिका की ओर से दायर जनहित याचिका में भीख मांगने को अपराध की श्रेणी से बाहर करने के अलावा राष्ट्रीय राजधानी में भिखारियों को आधारभूत मानवीय और मौलिक अधिकार देने का आग्रह किया गया था।
जैसा की आप जानते है की चारधाम यात्रा 18 अप्रैल से शुरू हो चुकी है. यमुनोत्री और गंगोत्री धाम के कपाट 18 अप्रैल को खुल गए हैं. जबकि केदारनाथ धाम के कपाट 29 अप्रैल और बद्रीनाथ धाम के कपाट 30 अप्रैल को खुल जाएंगे.
हिन्दू धर्म में चार धाम यात्रा का बहुत ही महत्त्व है यही कारण है चार धाम यात्रा में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ होती है. भारी भीड़ के कारण रजिस्ट्रेशन काउंटर पर लम्बी लम्बी कतारें लग जाती है और काफी समय यात्रा रजिस्ट्रेशन कराने में ही खर्च हो जाता है.
चारधाम आने वाले यात्रियों की इस असुविधा को देखते हुए उत्तराखंड पर्यटन मंत्रालय और गढ़वाल मंडल विकास निगम ने अपने एप्प “एक्स्प्लोर आउटिंग (Explore Outing)” में ऑनलाइन रेजिस्ट्रेशन की सुविधा आरम्भ कर दी है.
आप इस एप्प को उत्तराखंड टूरिज्म की वेबसाइट (http://uttarakhandtourism.gov.in/ > For Travelers > Explore Outing Mobile App) पर क्लिक करके डाउनलोड कर सकते हैं या फिर सीधे Google Play Store में Explore Outing सर्च करके अपने फ़ोन में इनस्टॉल कर सकते हैं.
श्री गणेश जी (Shri Ganesh Ji) हिन्दू धर्म के मुख्य देवता हैं. कोई भी शुभ कार्य करने से पहले श्री गणेश जी की पूजा की जाती है इसलिए उन्हें प्रथम पूज्य भी कहा जाता है. श्री गणेश जी भगवन शंकर और माता पार्वती के पुत्र हैं. उनका वाहन डिंक नाम का चूहा है. हाथी जैसा सिर होने के कारण उन्हें गजानन भी कहा जाता है.
श्री गणेश जी का परिवार
श्री गणेश जी के दो विवाह हुए थे, उनकी पत्नियों के नाम रिद्धि और सिद्धि हैं. गणेश जी के दो पुत्र भी हुए जो शुभ और लाभ कहलाते हैं. गणेश जी के बड़े भाई का नाम कार्तिकेय और बहन का नाम अशोकसुन्दरी है.
गणेश चतुर्थी
श्री गणेश जी का जन्म भद्रपद मास के शुक्ल पक्ष के चतुर्थी के दिन माना जाता है. हर साल उनके जन्म की तिथि पर गणेशोत्सव का पर्व मनाया जाता है। जो 10 दिनों तक चलता है.
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बस का इन्तजार करना भला किसे अच्छा लगता है, लेकिन यहां पर लोग मजे लेकर बस का इन्तजार करते हैं.
यह अनोखा बस स्टैंड बनाया गया है लन्दन के न्यू ऑक्सफ़ोर्ड स्ट्रीट पर. यहां पर लोग अविश्वसनीय चीजें देख कर बस का इन्तजार छोड़ कर चौंक जाते हैं. यह बस स्टैंड ‘Unbelievable’ ऑगमेंटेड रियलिटी का एक उदहारण है जिसे पेप्सी मैक्स ने बनाया है.
इस बस स्टैंड पर खड़े लोगों को अचानक अपनी आँखों पर विश्वास नहीं होता है. कभी उड़न तश्तरी, कभी रोबोट तो कभी ऐसी अविश्वसनीय चीजें आपके सामने होंगी की आपको वो सब हकीकत में होता हुआ लगेगा.
पेप्सी मैक्स ने इस बस शेल्टर की एक तरफ की दीवार को ऐसी स्क्रीन में बदल दिया है की उसके दूसरे तरफ की चीजें भी आपको साफ़ – साफ़ दिखाई देंगी और इसी बीच उस स्क्रीन पर ऐसी अविश्वसनीय चीजें होंगी की आपको लगेगा की ये वास्तविकता में शीशे के दूसरी तरफ हो रही हैं. जबकि यह सिर्फ आपकी आँखों का धोखा है.
यह स्क्रीन एक बार तो आपको अवश्य उल्लू बना देगी लेकिन जब आप दोबारा इसे देखेंगे तो मुस्कराये बिना न रह पाएंगे.
एक महान योद्धा और पारंगत धर्नुधर होने के बावजूद, भीलपुत्र एकलव्य महाभारत का एक भूला-बिसरा अध्याय बनकर रह गया। महाभारत की गाथा बेहद व्यापक है। अनेक घटनाएं और पात्रों की वजह से बहुत से ऐसे चरित्र भी हैं, इतिहास ने जिन्हें नजरअंदाज कर दिया है। इन्हीं चरित्रों में से एक है एकलव्य। एकलव्य की कहानी बेहद मार्मिक है, महाभारत की कहानी में जिन्हें सदाचारी और हमेशा धर्म की राह पर चलने वाला दिखाया गया है, दरअसल एकलव्य के जीवन में वही लोग सबसे अधिक क्रूर साबित हुए।
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महाभारत के नायक
द्रोणाचार्य के महान शिष्य महाभारत की कहानी के नायक रहे अर्जुन को सबसे बेहतरीन और अचूक धनुर्धर माना जाता है। लेकिन एकलव्य के सामने अर्जुन के तीर भी अपना निशाना नहीं पहचान पाते थे। एकलव्य की यही काबीलियत उसके लिए सबसे बड़ी दुश्मन साबित हुई।
जीवनगाथा
एकलव्य की जीवन गाथा पर गौर करें तो वह बेहद मार्मिक है। वह एक भीलपुत्र था और जंगल में अपने पिता के साथ रहता था। उसके पिता हिरण्यधनु उसे यही सीख देते थे कि उसे अपने जीवन में आगे बढ़ना चाहिए।
शिकारी का बेटा
शिकारी का बेटा होने की वजह से एकलव्य को धनुष-बाण से बहुत प्रेम था। बचपन से ही वह एक बेहतरीन धनुर्धर बनने का ख्वाब देखता था। एक दिन बालक एकलव्य बांस के बने धनुष पर बांस का ही तीर चढ़ाकर निशाना लगा रहा था कि पुलक मुनि की नजर उस पर पड़ी।
पुलक मुनि का आगमन
पुलक मुनि एकलव्य का आत्मविश्वास देखकर भौचक्के रह गए और एकलव्य से कहा कि वह उन्हें अपने पिता के पास ले चले। मुनि की बात मानकर एकलव्य उन्हें अपने पिता के पास ले आया। पुलक मुनि ने हिरण्यधनु से कहा कि उनका पुत्र बेहतरीन धनुर्धर बनने के काबिल है, इसे सही दीक्षा दिलवाने का प्रयास करना चाहिए।
महान धनुर्धर
पुलक मुनि की बात से प्रभावित होकर भील राजा हिरण्यधनु, अपने पुत्र एकलव्य को द्रोण जैसे महान गुरु के पास ले गया। हिरण्यधनु ने जब द्रोण को अपना परिचय दिया कि वह एक भील है और अपने पुत्र को धनुर्धर बनाना चाहता है तो उसकी बात सुनकर द्रोणाचार्य बहुत हंसे।
अपमान
द्रोण ने हिरण्यधनु से कहा कि उनका काम केवल शिकार के लायक धनुष विद्या सीखना है, युद्ध में शत्रुओं को मारना उनका काम नहीं। वैसे भी द्रोण, भीष्म पितामह को दिए गए अपने वचन के लिए प्रतिबद्ध थे कि वह केवल कौरव वंश के राजकुमारों को ही अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा देंगे।
सेवक के तौर पर रहना
द्रोण की ओर से अपमानित होकर हिरण्यधनु तो वापिस जंगल लौट आए लेकिन एकलव्य को द्रोण के सेवक के तौर पर उन्हीं के पास छोड़ आए। द्रोण की ओर से दीक्षा देने की बात नकार देने के बावजूद एकलव्य ने हिम्मत नहीं हारी, वह सेवकों की भांति उनके साथ रहने लगा।
सेवक बना एकलव्य
द्रोणाचार्य ने एकलव्या को रहने के लिए एक झोपड़ी दिलवा दी। एकलव्य का काम बस इतना होता था कि जब सभी राजकुमार बाण विद्या का अभ्यास कर चले जाएं तब वह सभी बाणों को उठाकर वापस तर्कश में डालकर रख दे।
कबीले का राजकुमार
जब द्रोणाचार्य अपने शिष्यों को अस्त्र चलाना सिखाते थे तब एकलव्य भी वहीं छिपकर द्रोण की हर बात, हर सीख को सुनता था। अपने कबीले का राजकुमार होने के बावजूद एकलव्य द्रोण के पास एक सेवक बनकर रह रहा था।
एकलव्य को मिला अवसर
एक दिन अभ्यास जल्दी समाप्त हो जाने के कारण सभी राजकुमार समय से पहले ही लौट गए। ऐसे में एकलव्य को धनुष चलाने का एक अदद मौका मिल गया। लेकिन अफसोस उनके अचूक निशाने को दुर्योधन ने देख लिया और द्रोणाचार्य को इस बात की जानकारी दी।
हताश हुआ एकलव्य
द्रोणाचार्य ने एकलव्य को वहां से चले जाने को कहा। हताश-निराश एकलव्य घर की ओर रुख कर गया, लेकिन रास्ते में उसने सोचा कि वह घर जाकर क्या करेगा, इसलिए बीच में ही एक आदिवासी बस्ती में ठहर गया। उसने आदिवासी सरदार को अपना परिचय दिया और कहा कि वह यहां रहकर धनुष विद्या का अभ्यास करना चाहता है। सरदार ने प्रसन्नतापूर्वक एकलव्य को अनुमति दे दी।
मिट्टी की प्रतिमा
एकलव्य ने जंगल में रहते हुए गुरु द्रोण की एक मिट्टी की प्रतिमा बनाई और उसी के सामने धनुष-बाण का अभ्यास करने लगा।
अर्जुन को वचन
समय बीतता गया और कौरव वंश के अन्य बालकों, कौरव और पांडवों के साथ-साथ एकलव्य भी युवा हो गया। द्रोणाचार्य ने बचपन में ही अर्जुन को यह वचन दिया था कि उससे बेहतर धनुर्धर इस ब्रह्मांड में दूसरा नहीं होगा। लेकिन एक दिन द्रोण और अर्जुन, दोनों की ही यह गलतफहमी दूर हो गई, जब उन्होंने एकलव्य को धनुष चलाते हुए देखा।
एकाग्रता हुई भंग
एक दिन की बात है, एकलव्य अभ्यास कर रहा था और एक कुत्ता, बार-बार भोंककर उसकी एकाग्रता को भंग करता जा रहा था। एकलव्य ने अपने तीरों से कुत्ते का मुंह कुछ ऐसे बंद किया कि रक्त की बूंद भी उसके शरीर से नहीं बही।
राजकुमारों का कुत्ता
यह कुत्ता कोई साधारण कुत्ता नहीं बल्कि पांडवों और कौरवों के साथ द्रोण के आश्रम में रहने वाला कुत्ता था। जब वह कुत्ता वापस आश्रम गया तो द्रोण यह देखकर हैरान रह गए कि कितनी सफाई से उस कुत्ते के मुंह को तीरों से बंद किया गया है।
सैनिकों के साथ पहुंचे द्रोण
कुछ ही देर बीती होगी कि द्रोणाचार्य, अर्जुन, युधिष्ठिर और दुर्योधन समेत, कई सैनिक भी एकलव्य के पास आ पहुंचे। एकलव्य ने जैसे ही द्रोणाचार्य को अपने समक्ष देखा, उन्हें प्रणाम करने के लिए पहुंच गया।
कुत्ते को कष्ट
गुरु द्रोण ने क्रोधित होकर पूछा कि किसने राजकुमार के कुत्ते को इतना कष्ट पहुंचाया है? इस सवाल के जवाब में एकलव्य ने कहा कि इस कुत्ते को जरा भी कष्ट नहीं हुआ क्योंकि इसका मुंह मैंने आपके द्वारा सिखाए गए तरीके से बंद किया है।
बेहतर धनुर्धर
गुरु द्रोण पहले तो आश्चर्यचकित हुए लेकिन बाद में अपनी मिट्टी की मूर्ति देखकर एकलव्य को पहचान गए। अर्जुन, अपने गुरु द्रोण को ऐसे देखने लगा जैसे उन पर हंस रहा हो, क्योंकि उससे बेहतर धनुर्धर आज उसके सामने खड़ा था।
एकलव्य की प्रतिभा
एकलव्य की प्रतिभा को देखकर द्रोणाचार्य संकट में पड़ गए। लेकिन अचानक उन्हें एक युक्ति सूझी। उन्होंने एकलव्य से गुरुदक्षिणा में उसके दाएं हाथ का अंगूठा ही मांग लिया ताकि एकलव्य कभी धनुष चला ना पाए।
आज्ञाकारी शिष्य
एक आदर्श और आज्ञाकारी शिष्य की तरह एकलव्य ने अपनी आंखों में आंसू भरकर, बिना सोचे-समझे अपने गुरु को अपना अंगूठा दे दिया।
विष्णु पुराण
विष्णु पुराण और हरिवंशपुराण में उल्लिखित है कि निषाद वंश का राजा बनने के बाद एकलव्य ने जरासंध की सेना की तरफ से मथुरा पर आक्रमण कर यादव सेना का लगभग सफाया कर दिया था। यादव वंश में हाहाकर मचने के बाद जब कृष्ण ने दाहिने हाथ में महज चार अंगुलियों के सहारे धनुष बाण चलाते हुए एकलव्य को देखा तो उन्हें इस दृश्य पर विश्वास ही नहीं हुआ।
वीरगति को प्राप्त हुआ एकलव्य
एकलव्य अकेले ही सैकड़ों यादव वंशी योद्धाओं को रोकने में सक्षम था। इसी युद्ध में एकलव्य, कृष्ण के हाथों वीरगति को प्राप्त हुआ था। उसका पुत्र केतुमान भीम के हाथ से मारा गया था।
कृष्ण का अर्जुन प्रेम
जब युद्ध के बाद सभी पांडव अपनी वीरता का बखान कर रहे थे तब कृष्ण ने अपने अर्जुन प्रेम की बात कबूली थी।
कृष्ण का कथन
कृष्ण ने अर्जुन से स्पष्ट कहा था कि “तुम्हारे प्रेम में मैंने क्या-क्या नहीं किया है। तुम संसार के सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर कहलाओ इसके लिए मैंने द्रोणाचार्य का वध करवाया, महापराक्रमी कर्ण को कमजोर किया और न चाहते हुए भी तुम्हारी जानकारी के बिना भील पुत्र एकलव्य को भी वीरगति दी ताकि तुम्हारे रास्ते में कोई बाधा ना आए”।
क्या मीडिया/पत्रकारिता पर राजनीति या कॉर्पोरेट का कंट्रोल जायज है?
ध्यान रहे, मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ है.
इससे पहले की इस प्रश्न पर विचार किया जाए की किसी लोकतान्त्रिक व्यवस्था में मीडिया की भूमिका क्या है, यह स्पष्ट करना अत्यंत आवश्यक है की लोकतंत्र का तात्पर्य क्या है. लोकतंत्र से अभिप्राय उस शासन व्यवस्था से है जो जनता के द्वारा, जनता के लिए बनाई गयी हो और जिसके शासक भी जनप्रतिनिधि ही हों.सुनने में तो यह परिभाषा अत्यंत ही सुन्दर लगती है.
“लोकतंत्र” दुनिया में मनुष्य के द्वारा बनाया गया सबसे खूबसूरत और हसीन शब्द है.
विडम्बना यह है की लोकतंत्र के शाब्दिक अर्थ को तो हम जानते हैं लेकिन व्यावहारिक तौर पर उसका विकास हम नहीं कर पाए हैं. किसी भी लोकतान्त्रिक व्यवस्था को सुचारु रूप से चलाने के लिए विश्वसनीय सूचना माध्यम की आवश्यकता होती है. इसी सूचना माध्यम से सरकार की नीतियों, विभिन्न योजनाओं से अवगत हुआ जा सकता है. ऐसे में मीडिया ही वह सूचना माध्यम है जिससे विश्वसनीय सूचनाएं पायी जा सकती हैं. यह सच है की किसी भी अखबार या मीडिया हाउस को चलाने के लिए धन की आवश्यकता होती है लेकिन केवल धन कमाने के लिए अखबार या मीडिया हाउस चलाना ठीक नहीं. नवउदारवादी शक्तियों ने सबसे पहले अपने शिकंजे में इन्हीं मीडिया घरानों को लिया क्यूंकि मीडिया की दखल घर- घर में है और अपना तंत्र फैलाने के लिए मीडिया से ज्यादा और विश्वसनीय माध्यम और क्या हो सकता है. यही वजह है की लगभग हर बड़े कारपोरेट के पास एक खबरिया चैनल है जिन्होंने देश के शीर्षस्थ पत्रकारों को मोटी तनख्वाह देकर खरीद लिया है और इन पत्रकारों की की यह मजबूरी है की अपने मालिकों का यशोगान करें. मीडिया आज अंधविश्वास का पोषक बन गया है. कहाँ तो पत्रकारिता का उत्तरदायित्व समाज में अलख जगाना हुआ करता था, ज्ञान का दीपक जलाना हुआ करता था लेकिन आज हालत यह है की ये समाचार चॅनेल एवं अखबार अंधविश्वासों को फैला रहे हैं.
जिस प्रकार स्टिंग ऑपरेशन चलाकर भ्रष्ट अधिकारियों को मीडिया ने बेनकाब किया है वह भी तारीफ के काबिल है. सांप्रदायिक दंगों के दौरान मीडिया द्वारा अपने दायित्व का निर्वहन बखूबी किया जा रहा है लेकिन होना यह भी चाहिए की सांप्रदायिक विचार फैलाने वाले चेहरों को भी बेनकाब किया जाए.
मीडिया को लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए पूरी तरह दोषी नहीं ठहराया जा सकता. अगर देश की गरीबी और भुखमरी की ओर मीडिया की नजर नहीं जाती तो इसका दोषी दर्शक वर्ग भी है जो इसे देखना पसंद नहीं करता. मीडिया ने अगर ‘जो दिखता है, वही बिकता है‘ या ‘ जो बिकता है, वही दिखता है‘ को अपना मूलमंत्र बनाया है तो कहीं न कहीं इसमें देखने वालों की रूचि भी शामिल है. अंततः यह नहीं भूलना चाहिए की लोकतांत्रिक मूल्यों को बचाकर रखने की जिम्मेदारी केवल मीडिया की ही नहीं बल्कि उस समाज की भी है जो उस देश का नागरिक है.
आप लोगों में से कई ने “नमक का दरोगा” नाम की कहानी तो पढ़ी होगी. जिसमे ईमानदारी और किसी भी तरह की रिश्वत स्वीकार न करने के बावजूद नौकरी से हाथ धोना पड़ता है. लेकिन ईमानदारी का फल अंत में मीठा ही मिला.
इसी तरह की एक कहानी है, आइये इस कहानी से कुछ सीख लें.
एक बार जब एक सफल बिजनेसमैन बूढा हो गया तो उसने अपने बिज़नेस को योग्य हांथों में सौपने की सोची, जो उसके बिज़नेस को पूरी ईमानदारी से आगे बढाए.
इस काम के लिए उसने अपने बच्चों या फिर कंपनी के डाइरेक्टरों को चुनने के बजाय कुछ अलग करने की सोची. उसने अपनी कंपनी के सभी नौजवान कर्मचारियों को अपने पास बुलाया.
उसने कहा: अब मेरे रिटायरमेंट और नए मालिक को चुनने का वक्त आ गया है, और मै चाहता हूँ की वो आप में से कोई हो.
इस बात को सुनकर सभी कर्मचारी आश्चर्यचकित रह गए. बूढ़े मालिक ने आगे कहा: मैं आप सबको एक-एक बीज दे रहा हूँ, यह बहुत ही स्पेशल बीज है. मैं चाहता हूँ की आप सब इस बीज को बोयें और देखभाल करें. आज से ठीक एक साल बाद आपने इस बीज से क्या उगाया है वो दिखाएं. तब मैं आपके पौधे देखूंगा और अगले CEO का निर्णय करूँगा.
उनमे एक कर्मचारी जिसका नाम जिम था, उसे भी सबकी तरह एक बीज मिला. जब शाम को वह घर पहुंचा तो उसने पूरी कहानी अपनी पत्नी को सुनाई. यह सुनकर पत्नी भी बहुत खुश हुई और एक गमला लाई, उसमे मिटटी और खाद आदि डालकर उसमे बीज बो दिया. रोज वो दोनों उस गमले में पानी डालते और पौधे के उगने की प्रतीक्षा करते. लगभग तीन हफ्ते के बाद उसके ऑफिस के कुछ कर्मचारी अपने पौधे के उगने और उनके बढ़ने की बाते करने लगे.
जिम रोज की तरह गमले को देखता लेकिन उसमे किसी पौधे का कोई नामो-निशान तक नहीं था.
धीरे-धीरे महीने गुजरने लगे. सभी अपने-अपने पौधों के बढ़ने की बाते करते थे. लेकिन उसके पास बताने के लिए कुछ भी नहीं था. जिम अपने साथियों से इस बारे में कोई बात नहीं करता था.
लेकिन वह अपने गमले खाद पानी डालना कभी नहीं भूलता था, पता नहीं कब एक छोटा सा पौधा निकल आये.
आखिकार एक साल पूरा हुआ, सभी कर्मचारी पाने -अपने पौधे लेकर आये.
वहीँ जिम ने अपनी पत्नी से कहा की वह खाली गमला ले जाकर क्या करेगा? लेकिन उसकी पत्नी ने कहा की ईमानदार रहो और जो कुछ भी हुआ वह बताना. जिम घबरा रहा था क्यूंकि यह उसके जीवन का सबसे शर्मिंदगी वाला दिन था, लेकिन उसकी पत्नी की बात भी सही थी. जब वह अपना खाली गमला लेकर ऑफिस पहुंचा तो देखा की उसके सभी साथी तरह तरह के पौधे के साथ वहाँ पर थे. सभी के पौधे सुन्दर थे, और सब उसके खाली गमले की वजह से उस पर हंस रहे थे.
तभी मालिक वहां पहुंचा और सबका स्वागत किया और बोलै की आप सबने बहुत ही अच्छे तरह से पौधे उगाये, आज आपमें से कोई एक इस कंपनी का CEO बनेगा. यह सुनकर जिम ने अपना खाली गमला अपने पीछे छुपा लिया.
तभी अचानक मालिक की नजर सबसे पीछे खड़े जिम को अपने खाली गमले को छुपाते हुए पर पड़ी तो उसने उसे आगे बुलाया. जिम डर गया और सोचा की आज पौधा न उगने की वजह से उसकी नौकरी तो गयी.
जब जिम आगे आया तो मालिक ने उससे पूंछा, क्या हुआ तो उसने पूरी कहानी बता दी.
मालिक ने जिम के सिवा सबको बैठने को कहा और घोषणा की, अपने नए CEO का स्वागत करें, उसका नाम है “जिम”.
जिम को अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ. क्यूंकि वह तो एक बीज भी नहीं उगा सका था.
सब के सब आश्चर्य में थे की ऐसा कैसे हो सकता है.
तब मालिक ने कहा, एक साल पहले यहां पर सभी को मैंने एक-एक बीज दिया था और कहा था की इस बीज को बोना और खाद पानी देना और आज मुझे वापस लाकर दिखाना. लेकिन मैंने सबको उबले हुए बीज दिए थे. वो सब मरे हुए बीज थे और उनसे पौधे उगना असंभव था.
जिम के सिवा आप सब पौधे लेकर आये. जब आपने देखा की पौधे नहीं उग रहे हैं तो आपने बीज बदल दिए. केवल जिम ने ईमानदारी से साहस दिखाया और खाली गमला जिसमे मेरा बीज था, लेकर आया. इसलिए जिम है आपका नया CEO.
अगर आप ईमानदार है, तो विश्वास जीतेंगे. अगर आपमें अच्छाई है, तो आप दोस्ती जीतेंगे. अगर आपमें मानवता है, तो आप महानता जीतेंगे. अगर आप धैर्यवान हैं, तो आप संतोषी होंगे. अगर आप कठिन परिश्रम करते हैं, तो जरूर सफल होंगे. अगर आप दयावान होंगे, तो सबसे सामंजस्य बिठा पाएंगे. अगर आपका ईश्वर पर विश्वास हैं, तो आप फसल काट पाएंगे.
इसलिए आप पर निर्भर करता है की आप आज जो बोयेंगे वही बाद में काटेंगे.
रक्षा बंधन भाई और बहन के प्यार और निष्ठा का त्यौहार होता है इस दिन हर भाई अपनी बहन की रक्षा का वचन देते है।पर असल में वचन का पता तब चलता है जब वही भाई किसी और की बहन को छेड़ते है। असल में भाई वही होते है जो अपनी बहन के साथ साथ दुसरो की भी बहनो की रक्षा करते है।
वरुण प्रुथी के द्वारा फिल्माया गया ये विडियो एक सत्य घटना पर आधारित है जो एक ऐसे ही भाई की कहानी दिखता है। जिसने दूसरे की बहन को बचाने के लिए अपनी जान दे दी।
मैं यह यकीन के साथ कह सकता हू की इस विडियो को देखने के बाद आप शर्म से डूब जायेगे।