यह कविता मुझे एक पुरानी किताब में मिली. अच्छी लगी तो पोस्ट कर दी. कृपया इस पर विचार जरूर करें.
सिर्फ दूसरों की मन की बाते मत सुनिए. आपके मन में जो हो वो कहिये. सवाल करिये. पूँछिये, ऐसा क्यों है.
जो हल चलाता है उसके हिस्से में सदा छप्पर ही क्यों आता है?
जो गोदामों में गेहूं, सरसों भरता है, उसके कोठी बंगले क्यों बन जाते हैं?
शहरों में खूब रौशनी है फिर गाँवों में अँधियारा क्यों है?
शहरों में चौड़ी सड़के हैं, गाँवों में संकरी गालियां क्यों हैं?
क्यों रामू, कमरू और हरिया शहर भागते हैं?
पानी कम क्यों हो रहा है? जंगल कौन काट रहा है?
कटे पेड़ कहाँ जा रहे हैं?
गाँव के बच्चों का दूध कहाँ जा रहा है?
आदमी – आदमी के बीच इतना फर्क क्यों है?
कुछ की तोंद इतनी फूली क्यों है?
हाड तोड़ मेहनत के बाद भी, बहुतों के पेट पिचके क्यों हैं?
जो पत्थर काटते हैं, रिक्शा खींचते हैं, लोहा कूटते हैं,
उन्हें साफ़ – सुथरे घरों में रहने का हक़ क्यों नहीं है?
इतनी बड़ी दुनिया में कितनी चीजें हैं, कितनी घटनाएं हैं?
सब कुछ जानने के लिए, सबके बारे में सवाल करो!!
भारत में अनेक प्रकार की रीति रिवाज, परंपरा और मान्यताएं हैं। लेकिन राजस्थान में एक ऐसी मान्यता है कि जिसके बारे में जानकर आप हैरान रह जाएंगे। आज हम आपको एक ऐसी परंपरा के बारे में बताते हैं जिसमें शादी के लिए लोग मंदिर से मूर्ति की चोरी करते हैं। मान्यता है कि जिन लड़कों की शादी में कोई परेशानी आ रही है या फिर कुंडली दोष है तो वह मंदिर से माता पार्वती की मूर्ति चुरा ले जाए तो उसकी शादी हो जाती है।
कमाल की बात तो यह है कि मूर्ति चोरी होने पर कोई पुलिस केस भी नहीं होता है। यूं तो शादी नहीं होने पर लोग भगवान और देवी-देवताओं की शरण में जाकर मन्नत मांगते हैं. लेकिन राजस्थान में एक ऐसा भी मंदिर है, जहां लोग इसके लिए मूर्ति चुराकर भागने का अनोखा तरीका अपनाते हैं. मान्यता है कि इस मंदिर से मूर्ति चुराते ही युवक की जल्द ही शादी हो जाती है. फिलहाल, सावन के आने पहले ही इस मंदिर में देवी की एक मूर्ति गायब है. स्थानीय लोगों का कहना है कि किसी कुंवारे ने मूर्ति को घर में छुपा रखा है.
आइए जानते हैं इस मंदिर और परंपरा के बारे में..
Shiv Parvati
हो जाती है जल्द शादी
यह अनोखा मंदिर राजस्थान के बूंदी जिले के हिंडोली कस्बे में स्थित है। यहां रामसागर झील किनारे रघुनाथ घाट मंदिर से अगर कोई कुंवारा लड़का माता पार्वती की मूर्ति चुरा ले जाए तो उसकी शादी जल्द हो जाती है।
महीनों गायब रहती हैं माता पार्वती
यही कारण है कि कुंवारे लड़के रात में चुपचाप मूर्ति उठा ले जाते हैं। इसी कारण शिव मंदिर में रहते हैं और माता पार्वती महीने भर तक गायब रहती हैं। सालभर में मुश्किल से एक महीने के लिए मूर्ति मंदिर में रहती है। मंदिर में महादेव (शिवलिंग) के बगल में ही पार्वतीजी की मूर्ति स्थापित है। पर महादेव जोड़े के साथ कम ही नजर आते हैं, क्योंकि कुंवारे पहले से ताक में रहते हैं। फिलहाल, सावन के पहले से पार्वतीजी महादेव से बिछुड़ी हुई हैं। वे किसी कुंवारे के घर होम क्वारैंटाइन में हैं।
Shiv Parvati
ऐसे में समय में भी ले गए मूर्ति
आपको जानकर हैरानी होगी लॉकडाउन के समय में भी किसी ने मूर्ति को चुरा लिया है। कोरोना वायरस की वजह से लगे लॉकडाउन के चलते इस बार अक्षय तृतीया जैसे मुहूर्त पर भी शादियां नहीं हुईं। अगर लॉकडाउन नहीं टूटा तो शादियां भी नहीं होंगी और जुलाई से चार महीने के लिए देव सो जाएंगे।
सालभर होती रहती है मूर्ति चोरीइस स्थिति में उम्मीद कम ही है कि महादेव के पास माता पार्वती वापस आ पाएंगी। स्थानिय पुजारी ने बताया है कि इस मंदिर में सालभर ऐसा होता रहता है। बहुत ही कम समय होता है कि मंदिर में शिव और पार्वती एकसाथ दर्शन देते हैं।
Shiv Parvati
नहीं होती पुलिस शिकायत
पिछले 35 साल से मंदिर में पुजारी के रूप में सेवा दे रहे रामबाबू पाराशर बताते हैं कि अब तक 15-20 बार पार्वतीजी की मूर्ति चोरी हो चुकी है। चुराने वालों की शादियां भी हो चुकी हैं। हमें चोरी का पता चल भी जाता है तो भी किसी को टोकते नहीं। चुराई हुई मूर्ति महीनों तक छिपाकर रख देते हैं और संयोग यह है कि सभी चुराने वाले कुंवारों की शादियों भी हो चुकी हैं। साथ ही इस परंपरा के तहत कोई भी पुलिस से शिकायत दर्ज नहीं करता।
Shiv Parvati
इस बार करना पड़ सकता है इंतजार
मंदिर में मूर्ति चुराने का कार्य अधिकतर रात के समय अंधेरे में किया जाता है। शादी के बाद जब मूर्ति वापस मंदिर में आ जाती है, उसके बाद कोई दुसरा कुंवारा लड़का मूर्ति को चुरा ले जाता है। कतार में लगे कुंवारों को इस बार लंबा इंतजार करना पड़ सकता है।”
पुरी, 16 जून (भाषा) पुरी का प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर 25 जुलाई को जनता के लिए खुलेगा। यह जानकारी प्राधिकारियों ने बुधवार को दी।
मुख्य प्रशासक कृष्ण कुमार ने कहा कि यह निर्णय श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन (एसजेटीए) की बैठक में लिया गया। उन्होंने कहा कि मंदिर 15 जून तक भक्तों के लिए बंद था, जिसे 25 जुलाई तक बढ़ा दिया गया।
रथ यात्रा उत्सव पूरा होने के दो दिन बाद मंदिर जनता के लिए खुलेगा।
भगवान बलभद्र, देवी सुभद्रा और भगवान जगन्नाथ 23 जुलाई को नौ दिवसीय रथयात्रा उत्सव के बाद मंदिर लौटेंगे।
उन्होंने कहा, ‘‘भक्तों को दो दिन बाद मंदिर में प्रवेश करने का अवसर मिलेगा।’’
कुमार ने कहा कि हालांकि, एसजेटीए 24 या 25 जुलाई को फिर से बैठक करेगा और मौजूदा स्थिति के आधार पर जनता को अनुमति देने पर फैसला करेगा।
24 जून को स्नान यात्रा (स्नान उत्सव) और 12 जुलाई को रथ यात्रा राज्य सरकार के निर्णय के अनुसार भक्तों के बिना, कोविड-19 दिशानिर्देशों के पालन के साथ आयोजित की जाएगी।
कुमार ने कहा कि रथ यात्रा सुरक्षा कर्मियों की मौजूदगी में सेवादारों की भागीदारी से होगी।
उन्होंने कहा कि उत्सव में भाग लेने वाले सेवकों को टीकाकरण की दोनों खुराकों का प्रमाण पत्र या कोविड निगेटिव रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी।
जिलाधिकारी समर्थ वर्मा ने कहा कि त्योहार के दौरान पुरी में निषेधाज्ञा लागू की जाएगी।
एसजेटीए ने एक अलग बैठक में जगन्नाथ मंदिर में आठ दरवाजों पर चांदी की परत चढ़ाने के लिए दो समितियों का गठन करने का भी निर्णय लिया। उनमें से एक तकनीकी समिति होगी और दूसरी सेवादारों का प्रतिनिधित्व करेगी।
कुमार ने कहा कि एक दानदाता चांदी प्रदान करेगा। कुमार ने कहा कि लगभग दो टन धातु का उपयोग होने की संभावना है।
पीटीआई-भाषा संवाददाता
डिसक्लेमर: यह आर्टिकल भाषा पीटीआई न्यूज फीड से सीधे प्रकाशित किया गया है.
पाकिस्तान की कैबिनेट ने शुक्रवार को बलात्कार विरोधी दो अध्यादेशों को मंजूरी दे दी है जिसमें दोषी की सहमति से बलात्कारियों को रासायनिक रूप से बधिया करने और बलात्कार के मामलों की सुनवाई के लिए विशेष अदालतों के गठन को मंजूरी दी गयी है। एक मीडिया रिपोर्ट से यह जानकारी मिली।
रासायनिक बधिया या केमिकल कास्ट्रेशन एक रासायनिक प्रक्रिया है जिससे व्यक्ति के शरीर में रसायनों की मदद से एक निश्चित अवधि या हमेशा के लिए यौन उत्तेजना कम या खत्म की जा सकती है।
डॉन न्यूज की खबर के मुताबिक, बृहस्पतिवार को संघीय कानून मंत्री फारूक नसीम की अध्यक्षता में विधि मामलों पर कैबिनेट समिति की बैठक में बलात्कार विरोधी (जांच और सुनवाई) अध्यादेश 2020 और आपराधिक कानून (संशोधन) अध्यादेश 2020 को मंजूरी दी गई। मंगलवार को संघीय कैबिनेट ने अध्यादेशों को सैद्धांतिक रूप से मंजूरी दे दी थी।
पहली बार अपराध करने वाले या अपराध दोहराने वाले अपराधियों के लिए रासायनिक बधियाकरण को पुनर्वास के उपाय के तरह माना जाएगा और इसके लिए दोषी की सहमति ली जाएगी।
कानून मंत्री नसीम के मुताबिक अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत बधिया करने से पहले दोषी की सहमति लेना अनिवार्य है।
उन्होंने कहा कि यदि सहमति लिए बिना रासायनिक बधियाकरण का आदेश दिया जाता है तो दोषी आदेश को अदालत के समक्ष चुनौती दे सकता है।
मंत्री ने कहा कि अगर कोई दोषी बधिया करने के लिए सहमत नहीं होगा तो उस पर पाकिस्तान दंड संहिता (पीपीसी) के अनुसार कार्रवाई की जाएगी जिसके तहत अदालत उसे मौत की सजा, आजीवन कारावास या 25 साल की जेल की सजा दे सकती है।
उन्होंने कहा कि सजा का फैसला अदालत पर निर्भर करता है। न्यायाधीश रासायनिक बधियाकरण या पीपीसी के तहत सजा का आदेश दे सकते हैं।
नसीम ने कहा कि अदालत सीमित अवधि या जीवनकाल के लिए बधिया का आदेश दे सकती है ।
अध्यादेशों में बलात्कार के मामलों में सुनवाई कराने के लिए विशेष अदालतों के गठन का भी प्रावधान है। विशेष अदालतों के लिए विशेष अभियोजकों की भी नियुक्ति की जाएगी।
प्रस्तावित कानूनों के अनुसार, एक आयुक्त या उपायुक्त की अध्यक्षता में बलात्कार विरोधी प्रकोष्ठों का गठन किया जाएगा ताकि प्राथमिकी, चिकित्सा जांच और फोरेंसिक जांच का शीघ्र पंजीकरण सुनिश्चित किया जा सके।
इसमें आरोपी द्वारा बलात्कार पीड़ित से जिरह पर भी रोक लगा दी गई है। केवल जज और आरोपी के वकील ही पीड़ित से जिरह कर सकेंगे।
डिसक्लेमर: टाइटल को छोड़कर यह आर्टिकल भाषा – पीटीआई न्यूज फीड से सीधे प्रकाशित किया गया है.
बहुत साल हो गए, मैं कालेज करने दूसरे शहर गया. फिर प्राइवेट नौकरी करने कभी दिल्ली तो कभी गुरुग्राम, कभी सूरत तो कभी मुंबई या फिर नॉएडा या बंगलोर. समय बदला काफी कुछ डिजिटल हो गया.
एक देश एक पहचान हो गयी. आधार कार्ड बना जो मोबाइल से लेकर पैन कार्ड और बैंक अकाउंट से जुड़ गया. देश में रोमिंग ख़त्म हो गयी और मेरा एक मोबाइल अब पुरे देश में मेरे साथ सफर करने लगा. बैंक अकाउंट ऑनलाइन हुए तो मैं कहीं से भी पैसा ट्रांसफर करने लगा भले ही मेरा खाता मेरे गाँव का ही क्यों न हो. मैं उसी पुराने पैन कार्ड से इनकम टैक्स भरने लगा जो मेरे गाँव से बना था. अब तो पासपोर्ट का वेरिफिकेशन भी उसी शहर में होने लगा जहां मैं नौकरी कर रहा हूँ.
सब कुछ मोबाइल हो गया लेकिन एक चीज मोबाइल नहीं हुई वो है हमारा और आपका वोट. इस एक वोट को मोबाइल न करने की वजह से करोडो लोग भारतीय संविधान के मतदान के अधिकार से वंचित रह जाते हैं.
पोस्टल बैलट है पर केवल सरकारी नौकरी वालों के लिए. NRI जो विदेशों में रह रहे हैं वो भी प्रॉक्सी वोटिंग से वोट कर सकते हैं, जबकि इनकी संख्या गिनी चुनी है.
करोडो लोग पढाई लिखाई और नौकरी के चक्कर में अपना घर छोड़ देते है जो छुट्टी न मिलने या महगे किराए के चलते अपना वोट डालने नहीं आ पाते हैं. क्या उनके लिए “मेरा वोट मेरा अधिकार” नहीं है. इन जैसे लोगो के वोट न देने की वजह से मतदान प्रतिशत 50 – 60 प्रतिशत रहता है और कुल वोट का 20 से 25 प्रतिशत वोट पाकर लोग माननीय बन जाते हैं.
2014 के आम चुनाव में 81.45 करोड़ मतदाता लिस्ट में थे जिसमे 2.31 करोड़ matdaata 18 -19 साल के थे. इस चुनाव में वोट प्रतिशत था 66.38% जो अब तक का सर्वाधिक मतदान है जिसमे NDA (भाजपा गठबंधन जिसमे भाजपा ने 31.3% वोट पाकर 282 सीट जीती) ने 38.5% वोट पाकर 336 सीटें जीतीं. लेकिन ध्यान देने वाली बात ये है की जितने वोट भाजपा गठबंधन को मिले थे लगभग उतने ही 28.1 करोड़ लोगों ने वोट नहीं किया था.
क्यों? इतने लोगों ने वोट क्यों नहीं किया?
कहा जाता है की इतने लोग वोट करने घरों से नहीं निकले जबकि इनमे से ज्यादातर लोग तो घरों पर थे ही नहीं. वो अपनी रोजी-रोटी के चक्कर में किसी और राज्य या किसी और शहर में थे. सिर्फ एक नियम की वजह से की आपको वोट डालने के लिए आपको खुद वोट डालने उस बूथ पर जाना पड़ेगा जहां पर आपका वोट है.
इतनी बड़ी गिनती को आप नजरअंदाज नहीं कर सकते.
इसलिए हम सबको अपने वोटिंग के अधिकार को मोबाइल करने के लिए इस टाइम्स ऑफ़ इंडिया की इस पेटिशन पर साइन करें ताकि चुनाव आयोग हमारे वोट को वहाँ भी डालने की अनुमति प्रदान करे जहां हम प्राइवेट नौकरी कर रहे हैं.
राजधानी दिल्ली के बहुप्रतीक्षित सिग्नेचर ब्रिज का करीब 14 वर्ष के लंबे इंतजार के बाद रविवार को उद्घाटन कर दिया गया। इसे बनाए जाने की घोषणा साल 2004 में दिल्ली की शीला दीक्षित सरकार के वक्त हुई थी और इसका उद्घाटन मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने किया।
यमुना नदी के ऊपर बने इस ब्रिज से उत्तर और उत्तर-पूर्वी दिल्ली के बीच सफर करनेवाले लोगों की समय में बचत होगी। इसके साथ ही, वजीराबाद पुल के ऊपर ट्रैफिक का बोझ भी कम होगा।
उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने इससे पहले कहा था- “पेरिस के एफिल टावर की तरफ सिग्नेचर ब्रिज के टॉप से शहर के विशाल दृश्य को देखकर एंज्वॉय किया जा सकेगा। चार एलिवेटर्स के जरिए विजिटर्स को ब्रिज के टॉप पर ले जाया जा सकेगा, जिसकी कुल क्षमता 50 लोगों की होगी।”
आइये जानते हैं दिल्ली के आइकोनिक सिग्नेचर ब्रिच की पांच बड़ी खासियत-
1-यह सिग्नेचर ब्रिज ‘नमस्ते’ के रूप में दिखते हुए देश का पहला केबल स्टाइल ब्रिज है। दूसरे चरण में इस ब्रिज को पर्यटन स्थल के तौर पर विकसित किया जाएगा।
2-ब्रिज के ऊपर ग्राफिक्स आधुनिक और प्रगतिशील भारत को प्रदर्शित कर रहा है। ब्रिज पर 154 मीटर हाई ग्लास व्यूइंग बॉक्स है जो कुतुब मीनार की ऊंचाई से करीब दोगुनी है। 575 मीटर लंबा यह ब्रिज सेल्फी स्पॉट भी होगा।
3-आठ लेन की यह सिग्नेचर ब्रिज वजीराबाद रोड को आउटर रिंग रोड से जोड़ता है। जिससे गाजियाबाद की तरफ जानेवालों को कम से कम 30 मिनट का समय बचेगा।
4-सिग्नेचर ब्रिज के मुख्य पिलर की ऊंचाई 154 मीटर है। ब्रिज पर 19 स्टे केबल्स हैं, जिन पर ब्रिज का 350 मीटर भाग बगैर किसी पिलर के रोका गया है। पिलर के ऊपरी भाग में चारों तरफ शीशे लगाए गए हैं।
5-यह ब्रिज यहां के आसपास की अर्थव्यवस्था को रफ्तार देगा क्योंकि इसे देखने के ले न सिर्फ एनसीआर और देशभर से बल्कि दुनियाभर के लोग आएंग। इसका निश्चित तौर पर सामाजिक-सांस्कृतिक असर होगा।
जब भी प्रेम की मिसाल दी जाती है तो श्रीकृष्ण-राधा के प्रेम की मिसाल सबसे पहले आती है. राधा-श्रीकृष्ण के प्रेम को जीवात्मा और परमात्मा का मिलन कहा जाता है. राधा श्रीकृष्ण का बचपन का प्यार थीं. श्रीकृष्ण जब 8 साल के थे तब दोनों ने प्रेम की अनुभूति की. राधा श्रीकृष्ण के दैवीय गुणों से परिचित थीं. उन्होंने जिंदगी भर अपने मन में प्रेम की स्मृतियों को बनाए रखा. यही उनके रिश्ते की सबसे बड़ी खूबसूरती है.
कहा जाता है कि श्रीकृष्ण को केवल दो ही चीजें सबसे ज्यादा प्रिय थीं. ये दोनों चीजें भी आपस में एक-दूसरे से गहराई से जुड़ी हुई थीं- बांसुरी और राधा.
कृष्ण की बांसुरी की धुन ही थी जिससे राधा श्रीकृष्ण की तरफ खिंची चली गईं. राधा की वजह से श्रीकृष्ण बांसुरी को हमेशा अपने पास ही रखते थे.
भले ही श्रीकृष्ण और राधा का मिलन नहीं हो सका लेकिन उनकी बांसुरी उन्हें हमेशा एक सूत्र में बांधे रही.
श्रीकृष्ण के जितने भी चित्रण मिलते हैं, उनमें बांसुरी जरूर रहती है. बांसुरी श्रीकृष्ण के राधा के प्रति प्रेम का प्रतीक है. वैसे तो राधा से जुड़ीं कई अलग-अलग विवरण मौजूद हैं लेकिन एक प्रचलित कहानी नीचे दी गई है.
भगवान श्रीकृष्ण से राधा पहली बार तब अलग हुईं जब मामा कंस ने बलराम और कृष्ण को आमंत्रित किया. वृंदावन के लोग यह खबर सुनकर दुखी हो गए.
मथुरा जाने से पहले श्रीकृष्ण राधा से मिले थे. राधा, कृष्ण के मन में चल रही हर गतिविधि को जानती थीं. राधा को अलविदा कह कृष्ण उनसे दूर चले गए.
कृष्ण राधा से ये वादा करके गए थे कि वो वापस आएंगे. लेकिन कृष्ण राधा के पास वापस नहीं आए. उनकी शादी भी रुक्मिनी से हुई. रुक्मिनी ने भी श्रीकृष्ण को पाने के लिए बहुत जतन किए थे. श्रीकृष्ण से विवाह के लिए वह अपने भाई रुकमी के खिलाफ चली गईं. राधा की तरह वह भी श्रीकृष्ण से प्यार करती थीं, रुक्मिनी ने श्रीकृष्ण को एक प्रेम पत्र भी भेजा था कि वह आकर उन्हें अपने साथ ले जाएं. इसके बाद ही कृष्ण रुक्मिनी के पास गए और उनसे शादी कर ली.
कृष्ण के वृंदावन छोड़ने के बाद से ही राधा का वर्णन बहुत कम हो गया. राधा और कृष्ण जब आखिरी बार मिले थे तो राधा ने कृष्ण से कहा था कि भले ही वो उनसे दूर जा रहे हैं, लेकिन मन से कृष्ण हमेशा उनके साथ ही रहेंगे. इसके बाद कृष्ण मथुरा गए और कंस और बाकी राक्षसों को मारने का अपना काम पूरा किया. इसके बाद प्रजा की रक्षा के लिए कृष्ण द्वारका चले गए और द्वारकाधीश के नाम से लोकप्रिय हुए.
जब कृष्ण वृंदावन से निकल गए तब राधा की जिंदगी ने अलग ही मोड़ ले लिया था. राधा की शादी एक यादव से हो गई. राधा ने अपने दांपत्य जीवन की सारी रस्में निभाईं और बूढ़ी हुईं, लेकिन उनका मन तब भी कृष्ण के लिए समर्पित था.
राधा ने पत्नी के तौर पर अपने सारे कर्तव्य पूरे किए. दूसरी तरफ श्रीकृष्ण ने अपने दैवीय कर्तव्य निभाए.
सारे कर्तव्यों से मुक्त होने के बाद राधा आखिरी बार अपने प्रियतम कृष्ण से मिलने गईं. जब वह द्वारका पहुंचीं तो उन्होंने कृष्ण की रुक्मिनी और सत्यभामा से विवाह के बारे में सुना लेकिन वह दुखी नहीं हुईं.
जब कृष्ण ने राधा को देखा तो बहुत प्रसन्न हुए. दोनों संकेतों की भाषा में एक दूसरे से काफी देर तक बातें करते रहे. राधा जी को कान्हा की नगरी द्वारिका में कोई नहीं पहचानता था. राधा के अनुरोध पर कृष्ण ने उन्हें महल में एक देविका के रूप में नियुक्त किया.
राधा दिन भर महल में रहती थीं और महल से जुड़े कार्य देखती थीं. मौका मिलते ही वह कृष्ण के दर्शन कर लेती थीं. लेकिन महल में राधा ने श्रीकृष्ण के साथ पहले की तरह का आध्यात्मिक जुड़ाव महसूस नहीं कर पा रही थीं इसलिए राधा ने महल से दूर जाना तय किया. उन्होंने सोचा कि वह दूर जाकर दोबारा श्रीकृष्ण के साथ गहरा आत्मीय संबंध स्थापित कर पाएंगी.
उन्हें नहीं पता था कि वह कहां जा रही हैं, लेकिन भगवान श्रीकृष्ण जानते थे. धीरे-धीरे समय बीता और राधा बिलकुल अकेली और कमजोर हो गईं. उस वक्त उन्हें भगवान श्रीकृष्ण की आवश्यकता पड़ी. आखिरी समय में भगवान श्रीकृष्ण उनके सामने आ गए.
कृष्ण ने राधा से कहा कि वह उनसे कुछ मांगें, लेकिन राधा ने मना कर दिया. कृष्ण के दोबारा अनुरोध करने पर राधा ने कहा कि वह आखिरी बार उन्हें बांसुरी बजाते देखना चाहती हैं. श्रीकृष्ण ने बांसुरी ली और बेहद सुरीली धुन में बजाने लगे.
श्रीकृष्ण ने दिन-रात बांसुरी बजाई, जब तक राधा आध्यात्मिक रूप से कृष्ण में विलीन नहीं हो गईं. बांसुरी की धुन सुनते-सुनते राधा ने अपने शरीर का त्याग कर दिया.
हालांकि भगवान कृष्ण जानते थे कि उनका प्रेम अमर है, बावजूद वे राधा की मृत्यु को बर्दाश्त नहीं कर सके. कृष्ण ने प्रेम के प्रतीकात्मक अंत के रूप में बांसुरी तोड़कर झाड़ी में फेंक दी. उसके बाद से श्री कृष्ण ने जीवन भर बांसुरी या कोई अन्य वादक यंत्र नहीं बजाया.
कहा जाता है कि जब द्वापर युग में नारायण ने श्री कृष्ण का जन्म लिया था, तब मां लक्ष्मी ने राधा रानी के रूप में जन्म लिया था ताकि मृत्यु लोक में भी वे उनके साथ ही रहे.
दुनिया के सबसे ऊंचे शिवधाम कैलास मानसरोवर (Kailash Mansarovar) की यात्रा इन दिनों कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी कर रहे हैं और इन्होंने अपनी इस यात्रा को लेकर ट्वीट किया है और बताया है कि कैलास आने का सौभाग्य उसे ही मिलता है जिसे कैलास बुलाते हैं। राहुल गांधी ने यहां स्थित मानसरोवर झील के बारे में लिखा है कि; मानसरोवर झील का पानी बेहद शांत, स्थिर और कोमल है। यह झील सबकुछ देती है और कुछ नहीं लेती। इसे कोई भी ग्रहण कर सकता है। यहां कोई घृणा नहीं है। इसलिए भारत में इस जल को पूजा जाता है। आइए जानें पुराणों में कैलास मानसरोवर झील के बारे में क्या कहा गया है और क्यों लोग जान जोखिम में डालकर यहां यात्रा करने आते हैं।
पर्वतारोहियों ने दुनिया की सबसे ऊंची छोटी, माउन्ट एवरेस्ट को फतह कर लिया लेकिन आज तक कोई भी पर्वतारोही कैलाश पर्वत पर नहीं चढ़ सका है। ऐसी बहुत सी अनोखी बाते हैं कैलाश के बारे में:
मृदंग की आती है आवाजें:
कहा जाता है कि गर्मी के दिनों में जब मानसरोवर की बर्फ पिघलती है तो एक प्रकार की आवाज लगातार सुनाई देती है। श्रद्धालुओं का मानना है कि यह आवाज मृदंग की ध्वनि जैसी होती है। मान्यता यह भी है कि कोई व्यक्ति मानसरोवर में एक बार डुबकी लगा ले तो वह ‘रुद्रलोक’ को प्राप्त होता है।
शक्तिपीठ के होते हैं दर्शन:
इस स्थान की गिनती देवी के 51 शक्ति पीठों में भी होती है। माना जाता है कि देवी सती का दांया हाथ इसी स्थान पर गिरा था, जिससे यह झील तैयार हुई। इसलिए यहां एक पाषाण शिला को उसका रूप मानकर पूजा जाता है।
ॐ की आवाज देती है सुनाई:
मान्यता है कि मानसरोवर झील और राक्षस झील, ये दोनों झीलें सौर और चंद्र बल को प्रदर्शित करती हैं, जिसका संबंध सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जा से है। जब आप इन्हें दक्षिण की तरफ से देखेंगे तो एक स्वास्तिक चिह्न बना हुआ दिखेगा। इस अलौकिक जगह पर प्रकाश तरंगों और ध्वनि तरंगों का समागम होता है, जो ‘ॐ’ जैसा सुनाई देता है।
इसे महसूस कर सकते हैं:
आपमानसरोवर में बहुत-सी खास बातें आपके आसपास होती रहती हैं, जिन्हें आप केवल महसूस कर सकते हैं। झील लगभग 320 किलोमीटर के क्षेत्र में फैली हुई है। इस झील के आस-पास सुबह के 2:30 से 3:45 बजे के बीच कई तरह की अलौकिक क्रियाओं को केवल महसूस किया जा सकता है, देखा नहीं जा सकता।
गंगा में जाता है इसका पानी:
मान्यता है कि इस सरोवर का जल आंतरिक स्रोतों के माध्यम से गंगा और ब्रह्मपुत्र नदी में जाता है। पुराणों के अनुसार, शंकर भगवान द्वारा प्रकट किए गए जल के वेग से जो झील बनी, उसी का नाम मानसरोवर हुआ था।
क्षीर सागर से है इसका संबंध:
मानसरोवर पहाड़ों से आते हुए रास्ते में एक झील है, पुराणों में इस झील का जिक्र ‘क्षीर सागर’ से किया गया है। क्षीर सागर कैलाश से 40 किमी की दूरी पर है। धार्मिक आस्था है कि विष्णु और माता लक्ष्मी इसी में शेष शैय्या पर विराजते हैं।
भारतीय परंपरा में गुरु को गोविंद से बढ़कर आदर दिया गया है। इसकी वजह यह है कि गुरु अपने शिष्यों को सांचे में ढालकर एक ऐसा मनुष्य तैयार करने की क्षमता रखता है जो ईश्वर की बनाई सृष्टि को नई दिशा दे सकता है और अपनी अमर कीर्ति से इतिहास के पन्नों में अपना नाम अंकित कर सकता है। शिक्षक दिवस के अवसर पर हम आपको ऐसे ही कुछ गुरुओं की याद दिलाते हैं जिनके शिष्यों के नाम इतिहास के पन्नों में स्वर्णाक्षरों में अंकित हैं।
शिव:
सृष्टि में सबसे पहले गुरु भगवान शिव ही माने जाते हैं। इन्होंने पूरी दुनिया को नृत्य, व्याकरण और संगीत का ज्ञान दिया। इनके प्रमुख शिष्यों में शनि महाराज, परशुरामजी का नाम आता है। शनि महाराज नवग्रहों में दंडाधिकारी हैं और इनके न्याय से भगवान शिव भी नहीं बच पाए हैं। परशुरामजी ने भगवान शिव से ज्ञान प्राप्त करके गुरु शिष्य परंपरा को आगे चलाया। इनके कई शिष्यों के नाम इतिहास में अंकित हैं।
वशिष्ठः
भगवान राम ने अपने तीनों भाईयों के साथ इनसे ज्ञान प्राप्त किया था। इन्होंने भगवान राम को मर्यादा पुरुषोत्तम और अन्य भाईयों को धर्म की राह पर चलना सिखाया था।
संदीपिनीः
दुनिया को गीता का ज्ञान देने वाले भगवान श्रीकृष्ण को इन्होंने ज्ञान दिया था। इन्हीं के आश्रम में सुदामाजी और श्रीकृष्ण ने शिक्षा पाई थी। इन्ही के आश्रम में श्रीकृष्ण को परशुरामजी से सुदर्शन चक्र प्राप्त हुआ था।
परशुरामः
गुरु परंपरा में परशुरामजी का नाम बहुत ही आदर से लिया जाता है। इनके शिष्यों में ऐसे महायोद्धा हुए जिनसे देवता भी भयभीत रहते थे। महाभारत के महायुद्ध में इनके तीन शिष्यों भीष्म, द्रोणाचार्य और कर्ण ने भाग लिया था। ये तीनों ही कौरवों के प्रधान सेनापति हुए और छल द्वारा युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए।
द्रोणाचार्यः
महाभारत की कथा इनके बिना अधूरी है। इन्होंने परशुरामजी से प्राप्त ज्ञान को गुरु परंपरा के तहत आगे बढ़ाया। इनके प्रमुख शिष्यों में कौरव, पांडव और अश्वत्थामा का नाम आता है। अर्जुन इनका प्रिय शिष्य था।
श्रीकृष्णः
महाभारत का एक महायोद्धा जिसने महज 16 साल की उम्र में अकेले ही पूरी कौरव सेना के महायोद्धाओं से युद्ध किया और अपनी वीरता से सभी को हैरान कर दिया उस वीर का नाम अभिमन्यु था। इस योद्धा के गुरु इनके मामा भगवान श्रीकृष्ण थे। महाभारत के महायुद्ध का परिणाम कुछ और होता अगर यह योद्धा उस युद्ध में नहीं होता।चक्रव्यूह को तोड़ना अर्जुन, श्रीकृष्ण और अभिमन्यु के अलावा किसी और को नहीं आता था। द्रोणाचार्य चक्रव्यूह में फंसाकर युधिष्ठिर को बंदी बना लेना चाहते थे लेकिन अभिमन्यु ने द्रोणाचार्य की चाल को नाकाम बना दिया। जब अकेले इन्हें कोई परास्त नहीं कर पा रहा था तब सभी ने एक साथ मिलकर इन पर वार करना शुरू कर दिया और अंत में वीरगति को प्राप्त हुआ।
गोविंद भगवत्पाद:
आदिगुरु शंकराचार्य जिन्होंने चार धामों की स्थापना की उनके गुरु गोविंद भगवत्पादजी थे। शंकराचार्यजी ने इनसे ज्ञान प्राप्त करके अद्वैत सिद्धांत का प्रचार किया और अपने समकालीन सभी विद्वानों को शास्त्रार्थ में पराजित किया। वेदांतसूत्रों और उपनिषदों पर इनकी टिकाएं काफी प्रसिद्ध हैं।
रामकृष्ण परमहंस:
आधुनिक युग के प्रमुख संतों और दार्शनिकों में एक नाम आता है स्वामी विवेकानंदजी का जिन्होंने अपने सिद्धांत और ज्ञान से पूरी दुनिया में भारत का नाम रोशन कर दिखाया था। इनके गुरु थे रामकृष्ण परमहंस। इनके सानिध्य और ज्ञान से विवेकानंद जगत प्रसिद्ध हुए।
RakshaBandhan (Rakhi) – Indian Festival of Brothers and Sisters:
Rakshabandhan or Rakhi as the name suggests It is a festival of “Bond of security, care, love & affection among brothers, cousins and sisters.
This festival symbolizes love, care & affection among brothers & sisters and brother’s feeling of security towards their sisters.
Hindu religion is well-known for its festivals. In India, not only Hindus but also every religion like Muslims, Christians and Sikhs celebrate their festivals with lot of fun. Rakshabandhan (Rakhi) is famous festival of Hindu religion.
Rakhi is the symbol of relationship between brothers and sisters. Sisters tie Rakhi(a sacred thread) on the wrist of her brothers and brothers promise to save her life. Rakshabandhan also have its historical and religious values and these values made this festival very important.
Rakshabandhan is celebrated in India and Nepal.
Mythological and Historical Traces of Rakhi
At first in Hindu mythology Rakshabandhan can be traced in the Dwarf Incarnation (Vaman Avtar) of Lord Vishnu. When the Demon King Bali was performing a rite, Deity King Indra, being afraid of losing his empire, requested Lord Vishnu to save them.
Then Lord Vishnu incarnated as a Dwarf (Vaman) and reached the place of King Bali and asked for just a little of three steps of land. Bali was a great donor that’s why donated the same. Then Lord Vishnu measured the whole world in three steps and sent Bali the world underground.
Bali secured a promise from Lord Vishnu for staying in front of him all the time by his devotion. Goddess Lakshmi was so troubled of this. Goddess Lakshmi went to Bali and made him her brother by tying Rakhi.
In return she took Lord Vishnu back with her. It was the day of full moon (Purnima) of Shravan month.
Rakshabandhan In Mahabharat:
Mythological traces of Rakshabandhan can also be found in Mahabharat. When Yudhishthir asked Lord Krishna, “How can I overcome all these problems?” Lord Krishna suggested him to celebrate Rakshabandhan for him and his army.
Lord Krishna’s index finger was injured while slaying Shishupal, Draupadi tore her Sari and tied a strip on his finger to stop bleeding. It was also the day of full moon of Shravan month. Krishna in return protected her prestige while her clothes were being taken off by Dushashan in Duryodhan’s courtroom.
Rakshabandhan in Heaven:
As per Indian mythology this festival is related to Gods and Demons fight. God Indra is defeating so his wife Shashikala tied a sacred thread to Indra’s wrist.
Indra won this war against Demons with the help of that sacred thread. This thread is called “Raksha-sutra” or “Rakshabandhan”
Queen Karmavati send Rakhi to Mughal Emperor Humaun
Chittaur queen Karmavati send rakhi to Mughal Emperor Humayun when Bahadur Shah of Gujrat attached on her. Humayun know the value of Rakhi and honor it, he send his army to save Queen Karmavati.
Rakhi Saved Life of Great Alexander
Alexander married to Indian lady Roxana. She know about the power of Indian King Puru. She tied Rakhi to Puru and Puru promised her to not kill her husband.
During the war between Alexander and Puru, Alexander fell down his horse. Puru has a chance to kill Alexander but he remember the promise to his sister Roxana(because she tied Rakhi to Puru and became his sister). Puru didn’t kill Alexander and finally defeated this war.
How to Celebrate Rakshabandhan:
Girls and ladies after taking bath and dressing with new clothes in morning assemble the Puja thal. They put in this plate roli or turmeric, akshat, lightened deepak and sweets along with rakhi. Boys and men, after taking bath and dressed in new clothes, sit on an appropriate place.
At first Gods are worshipped and then sisters put a teeka on brother’s forehead, put some akshat on teeka and spread some on brother’s head, aarti is performed and then rakhi is tied on brother’s right hand’s wrist.
Brothers give money or gift to their sisters in return. In this way after completion of rakshabandhan ceremony food is taken. Like any other festival, importance of gifts and special edible dishes cannot be denied with respect to rakshabandhan.
In general Lunch is pretty important in this festival because there is a tradition of observing a fast by sisters until the ceremony of rakshabandhan is completed.
Priests and preceptors, reaches the homes of their patron in morning and tie rakhi to them and receive money, clothes and food in return.
This festival is rooted so deeply and extensively in the Indian society that no religion, mythology, history, literature and films are left untouched beside its social importance.
Gifts of Rakhi Enhances love & affection between brothers and sisters
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Raksha Bandhan shows love between brothers and sisters. Sisters bond the Rakhi (Sacred Thread) on the wrist of brothers. Brothers give them some gifts on this occasion. Choose special Rakhi and cards for sisters.
Sweets are the main part of every Indian festival. Before some years ago ladies make sweets at home but trends are now changing. people prefer to send sweets and dry fruits online. Here are some sweet gifts for Raksha Bandhan festival.
Festivals and gifts follow each other. Gifts are not just formality but recognition of kinship. It symbolizes our emotions which makes the festival memorable and enriches colors of relationship.
Diversity in festivals as well as gifts is natural. Rakshabandhan is the festival of love and affection between brothers and sisters in which love and gifts both stands together. In fact this is a relation in which gifts are rightfully claimed and willfully given and not just formally inquired off.
Costs of gifts don’t defy the sweetness of this festival because where there are emotions, everything else become less important. If you want to make it memorable with your gifts then don’t get tangled in difficult situation. Just take a look over here while buying a gift for your sister-
When the dear sister is younger:
It is said that younger sister is dearest to her brother and who can see his loving sister weeping or staying sad on this special day of Rakshabandhan.
If you wanted to surprise your younger sister then buy a gift which she liked most. If she likes to play with dolls, gift her doll which she liked most, if she loves wearing new dresses, you can buy a new fashionable dress of her favorite color.
If she likes watching cartoons, then a video CD of her favorite cartoons can be a better gifting option. Along with all these you an also gift her chocolates, cakes and sweets.
When sister is in youth:
If your sister is school or college going girl, then it is expected that her hobbies must be distinct and related to youth of new generation. You can bring a smile on their face by gifting them new fashionable dress, jewellery, purse, watch, mobile or vehicle etc.
When sister is married:
There are some common gifts for married sisters. For example Sari, Suit, Gold jewelry etc. which can be suited in any of the festivals.
But if you want to do something different then you can buy a holiday tour package ticket for her with family, a surprise party in a hotel can also be organized, vehicle, childhood days photograph in an attractive photo frame.
All of the above can be great gifting options for making this day memorable.
Then why don’t you buy a special and lovely gift for your sister and watch out a big smile on her face. But remember your gift should be like that, your sister exclaims with joy and surprise, “Wow brother! What a gift?”