देश के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न से सम्मानित पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी (Pranab Mukharjee) का सोमवार शाम को यहां आर्मी आरआर (रिसर्च एंड रेफरल) अस्पताल में निधन हो गया। यह जानकारी उनके पुत्र अभिजीत (Abhijeet) ने दी। पूर्व राष्ट्रपति मुखर्जी 84 वषर्ष के थे। मुखर्जी 2012 से 2017 तक देश के 13वें राष्ट्रपति रहे।
पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को आज अंतिम विदाई दी जाएगी। गृह राज्य प.बंगाल की जगह नई दिल्ली में पूरे राजकीय सम्मान के साथ प्रणब दा का अंतिम संस्कार होगा। मुखर्जी को गत 10 अगस्त को अस्पताल में भर्ती कराया गया था।
सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति के निधन पर दिन के राजकीय शोक की घोषणा की है। गृह मंत्रालय ने कहा कि दिवंगत सम्मानीय नेता के सम्मान में भारत में 31 अगस्त से लेकर छह सितंबर तक राजकीय शोक रहेगा। इस दौरान देश भर में उन सभी भवनों पर राष्ट्रीय ध्वज आधा झुका रहेगा जहां ध्वज लगा रहता है।
पूर्व राष्ट्रपति की पुत्री शर्मिष्ठा मुखर्जी (Sharmishtha Mukharjee) ने 12 अगस्त को ट्विटर पर लिखा था कि पिछले साल का आठ अगस्त का दिन उनकी जिंदगी का सबसे सुखद दिन था। उस दिन उनके पिता को भारत रत्न (Bharat Ratna) का सम्मान मिला था। ठीक एक साल अब बड़ी दुखद घड़ी आई है।
भारत के 13वें राष्ट्रपति जो बनना चाहते थे प्रधानमंत्री
भारतीय राजनीति पर गहरी पकड़ रखने वाले प्रणब मुखर्जी को एक ऐसी शख्सियत के तौर पर याद किया जाएगा, जो देश का प्रधानमंत्री (Prime Minister) हो सकता था, लेकिन अंतत: उनका राजनीतिक सफर राष्ट्रपति भवन तक पहुंच कर संपन्न हुआ।
चार दशक लंबे राजनीतिक कार्यकाल के बाद वर्ष 2012 में प्रणब मुखर्जी देश के प्रथम नागरिक यानी राष्ट्रपति बने थे। मुखर्जी 2012 से लेकर 2017 तक देश के 13वें राष्ट्रपति रहे। अपने राष्ट्रपति कार्यकाल के दौरान उन्होंने कई अहम फैसले भी लिए । इस पद तक उनका पहुंचना आसान नहीं था। दरअसल राष्ट्रपति पद के लिए यूपीए अध्यक्षा सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) की पसंद हामिद अंसारी (Hamid Ansari) थे। लेकिन समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) सहित कई क्षेत्रीय राजनीतिक दलों की पसंद प्रणब दादा (Pranab Da) थे। इससे यह भी पता चला था कि राजनीतिक विभेद के बावजूद प्रणब दा की स्वीकार्यता सभी राजनीतिक दलों में थी।
प्रणब दा का वो सपना अधूरा ही रहा गया
हालांकि राष्ट्रपति बनने से प्रणब दा का वो सपना अधूरा ही रहा गया, जिसके लिए राजनीतिक हलकों में हमेशा चर्चा होती थी। यह सर्वविदित था कि यूपीए (UPA) और कांग्रेस पार्टी (Congress) के भीतर प्रणब मुखर्जी प्रधानमंत्री पद के सबसे मजबूत और बड़े दावेदार थे। इसी वजह से उन्हें पीएम इन वेटिंग भी कहा जाता था। लेकिन उनकी किस्मत में सात रेसकोर्स रोड नहीं बल्कि राष्ट्रपति भवन का पता लिखा था। अपनी जीवनयात्रा पर लिखी पुस्तक “द कोलिशन इयर्स- 1996 – 2012” में खुद प्रणब मुखर्जी ने इस बात का खुलासा किया था कि वो प्रधानमंत्री बनना चाहते थे।
अपनी किताब ‘‘द् कोलिशन इयर्स’’ में मुखर्जी ने माना कि मई 2004 में जब कांग्रेस अध्यक्ष (Congress President) सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री बनने से इंकार कर दिया था तब उन्होंने उम्मीद की थी कि वह पद उन्हें मिलेगा। उन्होंने लिखा है, ‘अंतत: उन्होंने (सोनिया) अपनी पसंद के रूप में डॉक्टर मनमोहन सिंह (Dr. Manmohan Singh) का नाम आगे किया और उन्होंने इसे स्वीकार कर लिया। उस वक्त सभी को यही उम्मीद थी कि सोनिया गांधी के मना करने के बाद मैं ही प्रधानमंत्री के रूप में अगली पसंद बनूंगा।’ मुखर्जी ने यह स्वीकार किया था कि शुरुआती दौर में उन्होंने अपने अधीन काम कर चुके मनमोहन सिंह के मंत्रिमंडल में शामिल होने से मना कर दिया था लेकिन सोनिया गांधी के अनुरोध पर बाद में वह सहमत हुए।
राष्ट्रपति के रूप में एक अमिट छाप छोड़ी
राष्ट्रपति के रूप में भी उन्होंने एक अमिट छाप छोड़ी। इस दौरान उन्होंने दया याचिकाओं पर सख्त रुख अपनाया। उनके सम्मुख 34 दया याचिकाएं आईं और इनमें से 30 को उन्होंने खारिज कर दिया। इनमें 2008 मुंबई हमलों के दोषी अजमल कसाब (Azmal Kasab) और 2001 में संसद हमलों के मुख्य आरोपी अफजल गुरू (Afjal Guru) को फांसी दिया जाना शामिल है। जनता के राष्ट्रपति के रूप में अपनी पहचान बनाने वाले मुखर्जी को राष्ट्रपति भवन को जनता के निकट ले जाने के लिए उठाए गए कदमों के लिए भी याद किया जाएगा। उन्होंने जनता के लिए इसके द्वार खोले और एक संग्रहालय भी बनवाया।
प्रणब दा के क्लर्क से देश के राष्ट्रपति बनने की पूरी कहानी
क्या आप जानते हैं कि प्रणब दा राजनीति में आने से पहले एक क्लर्क थे। जीहां! ये सच है। उन्होंने देश के सर्वोच्च पद पर पहुंचने के लिए न सिर्फ कड़ी मेहनत की बल्कि अपनी प्रतिभा का लोहा भी मनवाया। विरोधी भी उनको पूरा सम्मान देते थे। प्रणब का जन्म बंगाल प्रेसीडेंसी के मिराती गांव में एक बंगाली परिवार में हुआ था। वर्तमान में ये पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले के अंतर्गत आता है। उनके पिता ने कमद किंकर मुखर्जी देश की आजादी की लड़ाई में बढ़चढ़कर हिस्सा लिया था। इसके अलावा 1952-1964 तक वो पश्चिम बंगाल विधान परिषद में कांग्रेस के सदस्य भी थे। साथ ही वे एआईसीसी के भी सदस्य थे। इस लिहाज से प्रणब दो एक राजनीतिक परिवार से भी ताल्लुक रखते थे।
प्रणब दा ने बीरभूम के सूरी विद्यासागर कॉलेज से पढ़ाई की थी। कलकत्ता यूनिवर्सिटी से उन्होंने राजनीति विज्ञान में एमए की डिग्री हासिल की और फिर बाद में इतिहास की डिग्री भी हासिल की। इसके बाद उन्होंने कानून की पढ़ाई के लिए यूनिवर्सिटी में एडमिशन लिया था। इतना सब कुछ करने के बाद उनकी नौकरी बतौर अपर डिवीजनल क्लर्क ऑफिस ऑफ डिप्टी अकांउंटेंट जनरल (पोस्ट एंड टेलिग्राफ) में लग गई थी। इसके बाद प्रणब दा ने जिस कॉलेज से इतिहास और राजनीति विज्ञान में एमए की डिग्री हासिल की थी वहीं पर उनका चयन बतौर सहायक प्रोफेसर हुआ था। कुछ समय उन्होंने इस कॉलेज में अपनी सेवाएं दी। आपको बता दें कि प्रणब एक शिक्षक के अलावा एक पत्रकार भी थे। राजनीति में आने से पहले उन्होंने देशर डाक (Call of Motherland) के लिए पत्रकारिता की थी।
1969 में उन्होंने राजनीति की पहली सीढ़ी उस वक्त चढ़ी, जब मिदनापुर में हुए उप चुनाव उन्होंने एक निर्दलीय प्रत्याशी वीके कृष्ण मेनन के लिए चुनाव प्रचार किया। इस चुनाव में मेनन को जीत हासिल हुई थी। इस जीत का डंका दिल्ली तक सुनाई दे रहा था। यही वो वक्त था जब इंदिरा गांधी की नजर प्रणब दा पर पड़ी थी। उन्होंने प्रणब मुखर्जी की प्रतिभा को पहचाना और अपनी पार्टी में आने का न्यौता दे डाला। प्रणब भी इसको ठुकरा नहीं पाए। कांग्रेस की तरफ से उन्हें पहली बार 1969 में राज्यसभा सदस्य बनाया गया। इसके बाद वे 1975, 1981, 1993 और 1999 में भी राज्यसभा के लिए चुने गए थे। इसके बाद प्रणब दा ने फिर कभी पलटकर पीछे नहीं देखा और सफलता की सीढि़यां एक के बाद एक चढ़ते चले गए।
वर्ष 1973 में इंदिरा गांधी ने उनकी प्रतिभा को जानते हुए उन्हें अपनी केबिनेट में जगह दी और उन्हें इंड्रस्ट्रियल डेवलेपमेंट मिनिस्टरी में डिप्टी मिनिस्टर बनाया गया। लेकिन 1975-77 के बीच इंदिरा गांधी द्वारा लगाई गई इमरजेंसी को लेकर उनकी भी आलोचना हुई। वो इस दौरान भी काफी सक्रिय नेताओं में से एक थे। इमरजेंसी की बदौलत कांग्रेस को 1977 के चुनाव करारी हार मिली थी और जनता पार्टी की सरकार केंद्र में बनी थी। 1979 में प्रणब राज्य सभा में कांग्रेस के उपनेता रहे और 1980 में उन्हें सदन का नेता बनाया गया। प्रणब के राजनीतिक कद का अंदाजा इस बात से भी लिया जा सकता है कि पीएम की गैर मौजूदगी में वही केबिनेट की बैठक लिया करते थे।
इंदिरा गांधी की हत्या के बाद जब राजीव गांधी को पीएम बनाया गया तो प्रणब दा को उनकी केबिनेट में जगह नहीं मिल सकी। इससे नाराज होकर प्रणब ने कांग्रेस से अलग होकर एक नई पार्टी बना ली। लेकिन कांग्रेस से अलग होकर वो ज्यादा कमाल नहीं दिखा सके। इसी वजह से 1989 में उन्होंने अपनी पार्टी का विलय कांग्रेस में कर दिया था।
पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के सम्मान में केंद्र सरकार ने 7 दिवसीय राष्ट्रीय शोक की घोषणा की है, जिसके बाद आज राष्ट्रपति भवन और संसद भवन के झंडे को झुका दिया गया है।
माना जा रहा है कि प्रणब मुखर्जी का आज दिल्ली में दोपहर 2.30 बजे लोधी श्मशान घाट पर अंतिम संस्कार किया जाएगा।
राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, पीएम समते तमाम हस्तियों ने जताया शोक
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और तमाम राजनीतिक दलों के नेताओं ने सोमवार को पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के निधन पर शोक जताते हुए उन्हें ऐसा प्रबुद्धजन बताया जिसने पूरी निष्ठा से देश की उत्कृष्ट सेवा की है। राष्ट्रपति कोविंद ने ट्वीट किया, ‘पूर्व राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी के निधन के बारे में जानकर दुख हुआ। उनका जाना एक युग का अंत है। सार्वजनिक जीवन में विराट कद हासिल करने वाले प्रणब दा ने भारत माता की सेवा एक संत की तरह की।’
उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने पूर्व राष्ट्रपति के निधन पर यह कहते हुए शोक प्रकट किया कि देश ने एक राजनेता खो दिया। वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुखर्जी के निधन पर गहरा शोक प्रकट करते हुए उन्हें सर्वोत्कृष्ट विद्वान और उच्च कोटि का राजनीतिज्ञ बताया और कहा कि प्रधानमंत्री के रूप में पहले दिन से उन्हें उनका मार्गदर्शन, समर्थन और आशीर्वाद मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
साभार: जागरण