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  • ऐ खुदा, तुझसे नाराज हूँ – हिंदी कविता

    ऐ खुदा, तुझसे नाराज हूँ – हिंदी कविता

    ऐ खुदा,
    तुझसे नाराज हूँ,
    क्यों?
    शायद मुझे लगता है
    कि
    जिसे जरूरत है
    उसे तूने कुछ दिया नहीं.
    और
    जिसके पास पहले से
    इतना कुछ है
    उसे तू छप्पर फाड़ के
    दिए जा रहा है.
    इसलिए,
    ऐ खुदा,
    तुझसे नाराज हूँ,

    कोई प्यार को तरसे
    किसी को प्यार से
    फुरसत नहीं है.
    किसी के हाथो में
    देकर तूने छीन लिया है.
    और
    किसी कि झोली
    भरे जा रहा है.
    इसलिए,
    ऐ खुदा,
    तुझसे नाराज हूँ,

    जो सच्चा है
    उससे तू छीने जा रहा है
    जो झूठा है
    उसकी झोली
    भरे जा रहा है.
    कानून का जो
    सम्मान करे,
    और
    कानून से जो डरे,
    कानून उसके पीछे पड़े,
    जो कानून को तोड़े,
    और
    अपने हाँथ में
    लेकर खिलवाड़ करे,
    कानून उससे डरे,
    भागता – बचता फिरे.
    इसलिए,
    ऐ खुदा,
    तुझसे नाराज हूँ,

    आँखों में
    सपने दिखाकर
    दिल तोडना
    तेरी फितरत हो गयी है.
    और
    जो दिल तोड़ते हैं
    उनके
    आँखों के सपने
    तू पूरे किये जा रहा है.
    इसलिए,
    ऐ खुदा,
    तुझसे नाराज हूँ,

    साधू संत अब
    माया के पीछे पड़े हैं,
    माया तो छोड़ो,
    चरित्र से भी गिरे हैं.
    और कुछ तो
    अपनी दुकानदारी में लगे हैं.
    आत्मा – परमात्मा
    की बात करने वाले,
    बीसियों पहरेदारों
    से घिरे हैं.
    इसलिए,
    ऐ खुदा,
    तुझसे नाराज हूँ,

    मंदिर – मस्जिद अब
    कहने को तेरा घर हैं,
    वैसे
    ये अब कमाई
    का धंधा बन गये हैं.
    महंत बनने को
    खून किये जा रहे हैं,
    और मस्जिदों से
    हथियारों के जखीरे
    मिल रहे हैं.
    इसलिए,
    ऐ खुदा,
    तुझसे नाराज हूँ,

    और शायद
    इसीलिए
    मैं तुझपर
    विश्वास खोता जा रहा हूँ
    और
    तेरा विश्वास
    मुझ पर से
    उठता जा रहा है.
    इसलिए,
    ऐ खुदा,
    तुझसे नाराज हूँ,
    और
    शायद
    तुझसे
    बहुत नाराज हूँ.