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  • Ram Vilas Paswan: ‘सदाबहार’ रामविलास पासवान की कुछ बातें, जिन्होंने 6 प्रधानमंत्रियों के साथ किया काम

    Ram Vilas Paswan: ‘सदाबहार’ रामविलास पासवान की कुछ बातें, जिन्होंने 6 प्रधानमंत्रियों के साथ किया काम

    रामविलास पासवान का निधन

    रामविलास पासवान के निधन ने बिहार की राजनीति में एक अध्याय का अंत कर दिया है। रामविलास वो नेता थे जिन्होंने गरीबी से अपना सफर तय किया और आखिर में ऐसे-ऐसे रिकॉर्ड बनाकर गए हैं जो शायद कोई और नेता न बना पाए। देखिए उनके सफर पर हमारी ये खास रिपोर्ट

    चिराग पासवान ने ट्वीट कर दी जानकारी

    केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्री, रामविलास पासवान (Ram Vilas Paswan) का गुरुवार को निधन हो गया। वह पिछले काफी समय से बीमार चल रहे थे। दिल्ली के एक अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था। 74 वर्षीय रामविलास पासवान की कुछ दिनों पहले ही दिल की सर्जरी भी हुई थी। केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के निधन की सूचना उनके बेटे और लोक जनशक्ति पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान (Chirag Paswan) ने दी। उन्होंने ट्वीट कर कहा, ‘पापा….अब आप इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन मुझे पता है आप जहां भी हैं हमेशा मेरे साथ हैं।’ चिराग पासवान ने ट्वीट कर पिता रामविलास पासवान के साथ बचपन की एक तस्वीर भी शेयर की। बता दें कि पिछले कुछ समय से गंभीर रूप से बीमार होने के कारण अस्पताल में भर्ती रामविलास पासवान का फोन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी हालचाल लिया था।

    गरीबी से मंत्री बनने का सफर

    रामविलास पासवान देश के ऐसे राजनेता रहे जिन्हें जानने समझने की जरूरत है। क्योंकि वह एक ऐसे परिवार से निकले जहां काफी आर्थिक तंगी थी। दलित समाज के इस बड़े नेता के राजनीति में आने का भी दिलचस्प किस्सा है। बिहार में आज तक सरकारी नौकरी का काफी क्रेज है। खासकर शासन और प्रशासन की नौकरी के लिए युवा काफी प्रयासरत रहते हैं।

    सरकारी नौकरी में जाना चाहते थे

    युवा अवस्था में रामविलास पासवान भी शासन प्रशासन में जाना चाहते थे। उसी उम्र में वे सोचते थे कि अगर उन्हें अपने समाज का उत्थान करना है तो सत्ता का पावर हासिल करना जरूरी है। उनके गांव और परिवार के लोग बताते हैं कि 1969 के मध्यावधि चुनाव की हलचल थी। खगड़िया जिले के अलौली विधानसभा सीट से प्रत्याशी की तलाश हो रही थी। उस दौर में खगड़िया के इलाके में समाजवादियों की संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी प्रसिद्धि पा रही थी।

    यूपीएससी क्रैक कर बन रहे थे डीएसपी

    उसी दौरान यहीं के रहने वाले दलित युवक रामविलास पासवान डीएसपी की लिखित और फिजिकल परीक्षा पास होकर ट्रेनिंग में जाने की तैयारी कर रहे थे। उस दौर में रामविलास पासवान काफी दुबले थे। सरकारी नौकरी हो गई थी इसलिए परिवार के लोग काफी खुश थे। पिता ने नौकरी ज्वाइन करने से पहले शरीर की हालत थोड़ी ठीक करने की सलाह दी। इसके लिए पिता ने रामविलास पासवान को कुछ पैसे भी दिए।

    लेकिन नौकरी ज्वाइन नहीं की

    नौकरी ज्वाइन करने के बाद ना जाने कब छुट्टी मिलेगी इस बात को सोचते हुए रामविलास पासवान वे अपने रिश्तेदारों से मिलने बेगुसराय चले गए। यहीं पर उनकी मुलाकात कुछ समाजवादियों से हुई। उन दिनों समाजवादियों को अलौली विधानसभा सीट पर शिक्षित युवा की तलाश थी। युवा रामविलास की प्रतिभा देखकर उन्होंने उन्हें राजनीति में आने के लिए प्रेरित किया।

    समाज की भलाई के लिए राजनीति में रखा कदम

    बड़ी मशक्कत के बाद रामविलास पासवान को नौकरी मिली थी, इस वजह से उनका मन डगमगा रहा था। वह राजनीति में नहीं जाना चाहते थे। लेकिन समाजवादी नेताओं ने उन्हें समझाया कि राजनीति में जाओगे तो केवल अपना ही नहीं पूरे समाज का भला कर पाओगे। यह बात रामविलास पासवान को अंदर तक झकझोर गई। उन्होंने डीएसपी की नौकरी ज्वाइन नहीं की और अलौली विधानसभा सीट से चुनाव में उतर गए।

    पहली बार में ही कांग्रेस के नेता को पटखनी दी

    संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी एसएसपी ने रामविलास पासवान को चुनाव के मैदान में उतारा। सामने कांग्रेस के नेता मिश्री सदा थे। प्रचार के मामले में रामविलास पासवान मिश्री से काफी पीछे थे क्योंकि इनके पास पैसों की किल्लत थी। जैसे तैसे साइकिल से पूरा चुनाव प्रचार किया गया। हालांकि चुनाव परिणाम आने पर उनका फैसला सही साबित हुआ और वह विधायक बन गए। पासवान को 20330 वोट आये, जबकि उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के मिश्री सदा को 19424 वोट मिले थे। इस तरह रामविलास पासवान की राजनीति में लॉन्चिंग हो गई।

    11 चुनाव लड़े हैं पासवान

    केंद्रीय मंत्री रहे रामविलास पासवान अपने सियासी करियर में 11 चुनाव लड़ चुके हैं। 11 में से अभी तक वह 9 चुनाव जीतने में सफल रहे हैं। बिहार में पासवान जाति में उनकी अच्छी पकड़ है। रामविलास से सियासी अदावत की वजह से नीतीश कुमार ने पासवान जाति को महादलित में नहीं शामिल किया था।

    लालू, रामविलास और नीतीश… एक ही पेड़ के पत्ते कहे जा सकते हैं। तीनों में एक बात समान है कि सबने गरीबी से संघर्ष शुरू किया और आखिर में उस मुकाम को हासिल किया जिसका सपना हर नेता देखता है। रामविलास पासवान का जन्म 5 जुलाई 1946 को खगड़िया के सुदूर देहात शहरबन्नी में हुआ था। पिता जामुन पासवान की तीन संतानों में रामविलास सबसे बड़े थे, उसके बाद पशुपति पारस और रामचंद्र पासवान। पिता ने तीनों भाइयों को काफी गरीबी में पाला था, लेकिन रामविलास शुरू से ही जुझारु थे, उन्होंने शहरबन्नी से स्कूली पढ़ाई करने के बाद एमए और एलएलबी कर लिया।

    जब रामविलास बन रहे थे DSP

    इसके बाद उन्होंने यूपीएससी की न सिर्फ तैयारी की बल्कि उसे क्रैक भी किया। रामविलास का चयन डीएसपी के पोस्ट के लिए हुआ था। लेकिन शायद उन्हें कहीं और जाना था। जब उनका चयन यूपीएससी में हुआ तभी वह समाजवादी नेता राम सजीवन के संपर्क में आए और राजनीति का रुख कर लिया। 1969 में वह अलौली विधानसभा से संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े और विधानसभा पहुंचे। इसके बाद पासवान ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। इसके बाद 1974 में वो राज नारायण और जेपी के प्रबल अनुयायी के रूप में लोकदल के महासचिव बने। वे व्यक्तिगत रूप से राज नारायण, कर्पूरी ठाकुर और सत्येंद्र नारायण सिन्हा जैसे आपातकाल के प्रमुख नेताओं के करीबी भी रहे।

    दो बार की है शादी

    उनकी शादी 1960 में राजकुमारी देवी के साथ हुई थी। बाद में 1981 में राजकुमारी देवी को तलाक देकर उन्होंने दूसरी शादी 1983 में रीना शर्मा से की। उनकी दोनों पत्नियों से तीन पुत्रियां और एक पुत्र है। उन्होंने कोसी कॉलेज, खगड़िया और पटना यूनिवर्सिटी में पढ़ाई की। पटना विश्वविद्यालय से उन्होंने एमए और लॉ ग्रेजुएट की डिग्री ली।

    5 दशक तक देश की राजनीति, दो बार रिकॉर्डतोड़ जीत और 6 बार केंद्र में मंत्री

    रामविलास पूरे पांच दशक तक बिहार और देश की राजनीति में छाये रहे। इस दौरान दो बार उन्होंने लोकसभा चुनाव में सर्वाधिक मतों से जीतने का विश्व रिकॉर्ड भी बना डाला। उनके नाम एक और रिकॉर्ड भी है जो शायद कोई और नेता न बना पाए और वो ये कि रामविलास देश के 6 प्रधानमंत्रियों की कैबिनेट में मंत्री रहे। सियासत में आगे क्या होनेवाला है, इसे रामविलास समय से पहले ही भांप जाते थे। इसी लिए RJD सुप्रीमो लालू यादव ने उन्हें राजनीति का मौसम वैज्ञानिक तक करार दे दिया था। बानगी के तौर पर वो केंद्र में 6 बार मंत्री बने।

    6 प्रधानमंत्रियों के साथ किया काम

    रामविलास पासवान ने सियासी करियर में 6 प्रधानमंत्रियों के साथ काम किया है। पहली बार वह 1989 में वीपी सिंह की सरकार में मंत्री बने थे। दूसरी बार 1996 में देवगौड़ा और गुजराल सरकार में वह रेल मंत्री बने थे। 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में रामविलास पासवान संचार मंत्री थे। 2004 में वह यूपीए से जुड़े और मनमोहन सरकार में रसायन मंत्री बने थे। 2014 में एनडीए में शामिल हुए और नरेंद्र मोदी की सरकार में खाद्य आपूर्ति मंत्री बने।

    • 1989 में पहली बार केन्द्रीय श्रम मंत्री
    • 1996 में रेल मंत्री
    • 1999 में संचार मंत्री
    • 2002 में कोयला मंत्री
    • 2014 में खाद्य एवं उपभोक्ता संरक्षण मंत्री
    • 2019 में खाद्य एवं उपभोक्ता संरक्षण मंत्री

    2002 में सबको चौंकाया

    दरअसल, रामविलास पासवान एनडीए सरकार में मंत्री थे। 2002 के गुजरात दंगों को लेकर रामविलास पासवान ने सरकार से इस्तीफा दे दिया। उसके बाद लोग हैरान रह गए थे। 12 साल बाद 2014 में नरेंद्र मोदी की सरकार में वह केंद्रीय मंत्री बनें।

    2005 में सत्ता की चाभी

    रामविलास पासवान की पार्टी एलजेपी को पहली बार 2005 में सम्मानजनक सीटें मिली थीं। किसी भी दल की सरकार रामविलास पासवान के मदद के बिना नहीं बन सकती थी। लेकिन रामविलास पासवान मुस्लिम मुख्यमंत्री की मांग को लेकर अड़े हुए थे। उनकी मांग पर जेडीयू और आरजेडी तैयार नहीं थी। उसके बाद 2005 अक्टूबर में फिर से विधानसभा चुनाव हुआ है। रामविलास पासवान को मुंह की खानी पड़ी।

    जेल भी गए पासवान

    रामविलास पासवान जेपी को अपना आदर्श मानते रहे हैं। छात्र जीवन से वह समाजवादी आंदोलन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते रहे हैं। 1975 में इमरजेंसी की घोषणा के बाद उन्हें गिरफ्तार किया गया था। साल भर से ज्यादा वक्त उन्होंने जेल में गुजारी थी। 1977 में रामविलास पासवान को जेल से रिहा किया गया था।

    गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रेकॉर्ड में नाम

    रामविलास पासवान का नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रेकॉर्ड में भी दर्ज है। वह 1977 में जनता पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर रेकॉर्ड मतों से हाजीपुर लोकसभा सीट से जीत हासिल की थी।

    2000 में किया एलजेपी का गठन

    रामविलास पासवान ने विभिन्न दलों में रह कर अपने सियासी करियर पंख दिया है। इस दौरान वह लोक दल, जनता पार्टी-एस, समता दल, समता पार्टी और फिर जदयू में रहे हैं। उसके बाद 28 नवंबर 2000 को उन्होंने दिल्ली में अपनी अलग पार्टी बना ली थी। नाम लोक जन शक्ति पार्टी रखा था। यह पार्टी बिहार से ज्यादा केंद्र में ही सत्ता में रही है।

    सोशल मीडिया पर रहते थे एक्टिव

    मोदी सरकार में मंत्री बनने के बाद रामविलास पासवान सोशल मीडिया पर भी काफी एक्टिव रहते थे। वह अपने विभागीय कार्यों से लोगों को अवगत कराते रहते थे। सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफॉर्मों पर उन्हें लाखों लोग फॉलो करते हैं।

    बेटे को सौंप दी जिम्मेदारी

    रामविलास पासवान लंबे समय से बीमार चल रहे थे। अस्वस्थ रहने की वजह से वह राजनीति में सक्रिय नहीं रहते थे। इसलिए उन्होंने पार्टी की जिम्मेदारी बेटे चिराग पासवान को सौंप दी थी। अब चिराग ही पार्टी को संभाल रहे थे। बिहार चुनाव में चिराग पासवान ने एनडीए से अलग होकर लड़ने का फैसला किया है।

    LJP से पहले पासवान ने बनाई थी दलित सेना

    1975 में जब देश में इमरजेंसी का ऐलान किया गया तो रामविलास भी गिरफ्तार कर लिए गए। 1977 में जेल से छूटने के बाद उन्होंने जनता पार्टी की सदस्यता ले ली और पहली बार हाजीपुर से संसद पहुंचे। इस दौरान रामविलास ने सबसे ज्यादा वोटों के अंतर से चुनाव जीतने का वर्ल्ड रिकॉर्ड ही बना दिया। LJP तो काफी बाद में बनी लेकिन 1983 में ही रामविलास दलित सेना की स्थापना कर दी। राजनीति में रहते हुए उनके दो ऐसे फैसले थे जो आगे चलकर मील का पत्थर साबित हुए। इसमें पहला फैसला हाजीपुर में रेलवे का जोनल कार्यालय खुलवाना था जबकि दूसरा फैसला केन्द्र में अंबेडकर जयंती पर छुट्टी घोषित कराने का था।

    Source: Navbharat Times