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  • दिखावा: जिन्दगी जीने को तरसती रही, लोग जन्म दिन मनाते रहे

    दिखावा: जिन्दगी जीने को तरसती रही, लोग जन्म दिन मनाते रहे

    आज की इस दौड़-भाग वाली जिंदगी में लोग हँसते – मुस्कराते दिखाई पड़ते हैं लेकिन हकीकत में अंदर से टूटे हुए होते हैं. बड़े शहरों की जिंदगी शायद कुछ ऐसी ही है.

    मौत हर दिन –
    पास सरकती रही,
    हम जन्म दिन मनाते रहे,
    जिन्दगी जीने को तरसती रही.
    दिखावे से लिपी -पुती,
    धोखे से रंगी -पुती,
    पातळ में –
    आकाश खोजती जिन्दगी,
    अन्धकार को
    समझ प्रकाश
    दौड़ती रही,
    अपने को ही छलती रही, जो मिला था
    उसे तो भूलती रही
    और नित नया पाने को
    तरसती रही, भागती रही
    अंधी दौड़ में फंसती रही,
    मौत पास सरकती रही
    जिन्दगी जीने को तरसती रही.

    साभार: अज्ञात