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  • दुनिया के महान धनुर्धर एकलव्य को किसने मारा और क्यों?

    दुनिया के महान धनुर्धर एकलव्य को किसने मारा और क्यों?

    महान योद्धा

    एक महान योद्धा और पारंगत धर्नुधर होने के बावजूद, भीलपुत्र एकलव्य महाभारत का एक भूला-बिसरा अध्याय बनकर रह गया। महाभारत की गाथा बेहद व्यापक है। अनेक घटनाएं और पात्रों की वजह से बहुत से ऐसे चरित्र भी हैं, इतिहास ने जिन्हें नजरअंदाज कर दिया है। इन्हीं चरित्रों में से एक है एकलव्य। एकलव्य की कहानी बेहद मार्मिक है, महाभारत की कहानी में जिन्हें सदाचारी और हमेशा धर्म की राह पर चलने वाला दिखाया गया है, दरअसल एकलव्य के जीवन में वही लोग सबसे अधिक क्रूर साबित हुए।

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    महाभारत के नायक

    द्रोणाचार्य के महान शिष्य महाभारत की कहानी के नायक रहे अर्जुन को सबसे बेहतरीन और अचूक धनुर्धर माना जाता है। लेकिन एकलव्य के सामने अर्जुन के तीर भी अपना निशाना नहीं पहचान पाते थे। एकलव्य की यही काबीलियत उसके लिए सबसे बड़ी दुश्मन साबित हुई।

     

    जीवनगाथा

    एकलव्य की जीवन गाथा पर गौर करें तो वह बेहद मार्मिक है। वह एक भीलपुत्र था और जंगल में अपने पिता के साथ रहता था। उसके पिता हिरण्यधनु उसे यही सीख देते थे कि उसे अपने जीवन में आगे बढ़ना चाहिए।

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    शिकारी का बेटा

    शिकारी का बेटा होने की वजह से एकलव्य को धनुष-बाण से बहुत प्रेम था। बचपन से ही वह एक बेहतरीन धनुर्धर बनने का ख्वाब देखता था। एक दिन बालक एकलव्य बांस के बने धनुष पर बांस का ही तीर चढ़ाकर निशाना लगा रहा था कि पुलक मुनि की नजर उस पर पड़ी।

     

    पुलक मुनि का आगमन

    पुलक मुनि एकलव्य का आत्मविश्वास देखकर भौचक्के रह गए और एकलव्य से कहा कि वह उन्हें अपने पिता के पास ले चले। मुनि की बात मानकर एकलव्य उन्हें अपने पिता के पास ले आया। पुलक मुनि ने हिरण्यधनु से कहा कि उनका पुत्र बेहतरीन धनुर्धर बनने के काबिल है, इसे सही दीक्षा दिलवाने का प्रयास करना चाहिए।

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    महान धनुर्धर

    पुलक मुनि की बात से प्रभावित होकर भील राजा हिरण्यधनु, अपने पुत्र एकलव्य को द्रोण जैसे महान गुरु के पास ले गया। हिरण्यधनु ने जब द्रोण को अपना परिचय दिया कि वह एक भील है और अपने पुत्र को धनुर्धर बनाना चाहता है तो उसकी बात सुनकर द्रोणाचार्य बहुत हंसे।

     

    अपमान

    द्रोण ने हिरण्यधनु से कहा कि उनका काम केवल शिकार के लायक धनुष विद्या सीखना है, युद्ध में शत्रुओं को मारना उनका काम नहीं। वैसे भी द्रोण, भीष्म पितामह को दिए गए अपने वचन के लिए प्रतिबद्ध थे कि वह केवल कौरव वंश के राजकुमारों को ही अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा देंगे।

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    सेवक के तौर पर रहना

    द्रोण की ओर से अपमानित होकर हिरण्यधनु तो वापिस जंगल लौट आए लेकिन एकलव्य को द्रोण के सेवक के तौर पर उन्हीं के पास छोड़ आए। द्रोण की ओर से दीक्षा देने की बात नकार देने के बावजूद एकलव्य ने हिम्मत नहीं हारी, वह सेवकों की भांति उनके साथ रहने लगा।

     

    सेवक बना एकलव्य

    द्रोणाचार्य ने एकलव्या को रहने के लिए एक झोपड़ी दिलवा दी। एकलव्य का काम बस इतना होता था कि जब सभी राजकुमार बाण विद्या का अभ्यास कर चले जाएं तब वह सभी बाणों को उठाकर वापस तर्कश में डालकर रख दे।

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    कबीले का राजकुमार

    जब द्रोणाचार्य अपने शिष्यों को अस्त्र चलाना सिखाते थे तब एकलव्य भी वहीं छिपकर द्रोण की हर बात, हर सीख को सुनता था। अपने कबीले का राजकुमार होने के बावजूद एकलव्य द्रोण के पास एक सेवक बनकर रह रहा था।

     

    एकलव्य को मिला अवसर

    एक दिन अभ्यास जल्दी समाप्त हो जाने के कारण सभी राजकुमार समय से पहले ही लौट गए। ऐसे में एकलव्य को धनुष चलाने का एक अदद मौका मिल गया। लेकिन अफसोस उनके अचूक निशाने को दुर्योधन ने देख लिया और द्रोणाचार्य को इस बात की जानकारी दी।

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    हताश हुआ एकलव्य

    द्रोणाचार्य ने एकलव्य को वहां से चले जाने को कहा। हताश-निराश एकलव्य घर की ओर रुख कर गया, लेकिन रास्ते में उसने सोचा कि वह घर जाकर क्या करेगा, इसलिए बीच में ही एक आदिवासी बस्ती में ठहर गया। उसने आदिवासी सरदार को अपना परिचय दिया और कहा कि वह यहां रहकर धनुष विद्या का अभ्यास करना चाहता है। सरदार ने प्रसन्नतापूर्वक एकलव्य को अनुमति दे दी।

     

    मिट्टी की प्रतिमा

    एकलव्य ने जंगल में रहते हुए गुरु द्रोण की एक मिट्टी की प्रतिमा बनाई और उसी के सामने धनुष-बाण का अभ्यास करने लगा।

     

    अर्जुन को वचन

    समय बीतता गया और कौरव वंश के अन्य बालकों, कौरव और पांडवों के साथ-साथ एकलव्य भी युवा हो गया। द्रोणाचार्य ने बचपन में ही अर्जुन को यह वचन दिया था कि उससे बेहतर धनुर्धर इस ब्रह्मांड में दूसरा नहीं होगा। लेकिन एक दिन द्रोण और अर्जुन, दोनों की ही यह गलतफहमी दूर हो गई, जब उन्होंने एकलव्य को धनुष चलाते हुए देखा।

     

    एकाग्रता हुई भंग

    एक दिन की बात है, एकलव्य अभ्यास कर रहा था और एक कुत्ता, बार-बार भोंककर उसकी एकाग्रता को भंग करता जा रहा था। एकलव्य ने अपने तीरों से कुत्ते का मुंह कुछ ऐसे बंद किया कि रक्त की बूंद भी उसके शरीर से नहीं बही।

     

    राजकुमारों का कुत्ता

    यह कुत्ता कोई साधारण कुत्ता नहीं बल्कि पांडवों और कौरवों के साथ द्रोण के आश्रम में रहने वाला कुत्ता था। जब वह कुत्ता वापस आश्रम गया तो द्रोण यह देखकर हैरान रह गए कि कितनी सफाई से उस कुत्ते के मुंह को तीरों से बंद किया गया है।

     

    सैनिकों के साथ पहुंचे द्रोण

    कुछ ही देर बीती होगी कि द्रोणाचार्य, अर्जुन, युधिष्ठिर और दुर्योधन समेत, कई सैनिक भी एकलव्य के पास आ पहुंचे। एकलव्य ने जैसे ही द्रोणाचार्य को अपने समक्ष देखा, उन्हें प्रणाम करने के लिए पहुंच गया।

     

    कुत्ते को कष्ट

    गुरु द्रोण ने क्रोधित होकर पूछा कि किसने राजकुमार के कुत्ते को इतना कष्ट पहुंचाया है? इस सवाल के जवाब में एकलव्य ने कहा कि इस कुत्ते को जरा भी कष्ट नहीं हुआ क्योंकि इसका मुंह मैंने आपके द्वारा सिखाए गए तरीके से बंद किया है।

     

    बेहतर धनुर्धर

    गुरु द्रोण पहले तो आश्चर्यचकित हुए लेकिन बाद में अपनी मिट्टी की मूर्ति देखकर एकलव्य को पहचान गए। अर्जुन, अपने गुरु द्रोण को ऐसे देखने लगा जैसे उन पर हंस रहा हो, क्योंकि उससे बेहतर धनुर्धर आज उसके सामने खड़ा था।

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    एकलव्य की प्रतिभा

    एकलव्य की प्रतिभा को देखकर द्रोणाचार्य संकट में पड़ गए। लेकिन अचानक उन्हें एक युक्ति सूझी। उन्होंने एकलव्य से गुरुदक्षिणा में उसके दाएं हाथ का अंगूठा ही मांग लिया ताकि एकलव्य कभी धनुष चला ना पाए।

     

    आज्ञाकारी शिष्य

    एक आदर्श और आज्ञाकारी शिष्य की तरह एकलव्य ने अपनी आंखों में आंसू भरकर, बिना सोचे-समझे अपने गुरु को अपना अंगूठा दे दिया।

     

    विष्णु पुराण

    विष्णु पुराण और हरिवंशपुराण में उल्लिखित है कि निषाद वंश का राजा बनने के बाद एकलव्य ने जरासंध की सेना की तरफ से मथुरा पर आक्रमण कर यादव सेना का लगभग सफाया कर दिया था। यादव वंश में हाहाकर मचने के बाद जब कृष्ण ने दाहिने हाथ में महज चार अंगुलियों के सहारे धनुष बाण चलाते हुए एकलव्य को देखा तो उन्हें इस दृश्य पर विश्वास ही नहीं हुआ।

     

    वीरगति को प्राप्त हुआ एकलव्य

    एकलव्य अकेले ही सैकड़ों यादव वंशी योद्धाओं को रोकने में सक्षम था। इसी युद्ध में एकलव्य, कृष्ण के हाथों वीरगति को प्राप्त हुआ था। उसका पुत्र केतुमान भीम के हाथ से मारा गया था।

     

    कृष्ण का अर्जुन प्रेम

    जब युद्ध के बाद सभी पांडव अपनी वीरता का बखान कर रहे थे तब कृष्ण ने अपने अर्जुन प्रेम की बात कबूली थी।

     

    कृष्ण का कथन

    कृष्ण ने अर्जुन से स्पष्ट कहा था कि “तुम्हारे प्रेम में मैंने क्या-क्या नहीं किया है। तुम संसार के सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर कहलाओ इसके लिए मैंने द्रोणाचार्य का वध करवाया, महापराक्रमी कर्ण को कमजोर किया और न चाहते हुए भी तुम्हारी जानकारी के बिना भील पुत्र एकलव्य को भी वीरगति दी ताकि तुम्हारे रास्ते में कोई बाधा ना आए”।

     

    Source: https://hindi.speakingtree.in/allslides/why-krishna-killed-eklavya/269833

    Images: artofliving-org

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