गोवर्धन पर्वत का हिन्दू धर्म में बहुत ही अधिक महत्त्व है. इसकी परिक्रमा करने से सभी मुरादें पूरी हो जाती हैं. 21 किलोमीटर की गोवर्धन परिक्रमा (Govardhan Parikrama) को लोग नंगे पाँव पूरा करते हैं तो कुछ लोग लोट – लोट कर इसकी परिक्रमा लगाते हैं. यहां परिक्रमा लगाने का कोई नियत समय नहीं है. लोग साल के 365 दिन यहां परिक्रमा लगाते हैं लेकिन हर महीने की पूर्णमासी को यहाँ बेशुमार भीड़ होती है.

कहा जाता है की गोवर्धन पर्वत (Govardhan Parvat) तिल तिल करके घट रहा है. पांच हजार साल पहले यह पर्वत 30 हजार मीटर ऊंचा हुआ करता था लेकिन अब इसकी ऊँचाई केवल 30 मीटर ही रह गयी है.

यहां आने वाले लोग गिरिराज जी (Giriraj Ji) के मंदिर में साक्षी गोपाल जी के दर्शन करके अपनी यात्रा शुरू करते हैं.

श्रीराधा-गोविंद मंदिर (Shri Radha Govind Mandir): इस मंदिर का निर्माण श्रीकृष्ण जी के पोते ने करवाया था. यहीं पर गोविन्द कुंड भी है.
चूतड़ टेका (Chutar Teka):

परिक्रमा मार्ग पर अनेकों कुंड हैं जहां पर श्री कृष्ण (Shri Krishna) ने लीलाएं की थी. राधा कुंड (Radha Kund), श्याम कुंड (Shyam Kund), मानसी गंगा (Mansi Ganga) और कुसुम सरोवर (Kusum Sarovar) आदि मुख्य कुंड हैं.

राधा कुंड: इस कुंड को राधारानी ने अपने कंगन से खोदकर बनाया था. इस कुंड में स्नान करने से गौहत्या का पाप धुल जाता है.

श्याम कुंड: कहा जाता है श्रीकृष्ण ने गौहत्या का पाप दोने के लिए अपनी छड़ी से यह कुंड बनाया था.

श्रीकृष्ण पर गौहत्या का पाप: श्रीकृष्ण को मारने के लिए कंस ने अरिष्ठासुर नाम के एक असुर को भेजा था. उस समय बाल कृष्ण गाय चराने गए हुए थे तो उस असुर ने बैल का रूप धरके गायों के झुण्ड में शामिल हो गया. लेकिन श्रीकृष्ण ने उसे पहचान लिया और उसका वध कर दिया. लेकिन वह असुर चूँकि बैल के रूप में था तो श्रीकृष्ण पर गौहत्या का पाप लगा. इसके बाद श्रीकृष्ण राधारानी से मिले और उनको छू लिया. तो राधारानी भी इस पाप की भागिदार हो गयीं.

इस गौहत्या के पाप को दूर करने के लिए राधारानी ने अपने कड़े से राधा कुंड और श्रीकृष्ण ने अपनी छड़ी से श्याम कुंड का निर्माण किया. कहा जाता है इन दोनों कुंड में स्नान करने से सभी तीर्थों का पुण्य मिलता है, क्योंकि इन दोनों कुंड में सभी तीर्थ विराजमान हैं.

मानसी गंगा: पहले इसका विस्तार 6 किलोमीटर में था पर अब यह सिमटकर थोड़ी सी रह गयी है. कहा जाता है गोवर्धन के अभिषेक के लिए इतने गंगाजल को लाने की समस्या के चलते श्रीकृष्ण ने गंगा को ही गोवर्धन पर्वत पर उतार लिया था. इसलिए इसका नाम मानसी गंगा पड़ा.

गोवर्धन पर्वत का निर्माण: क्या आपको पता है की गोवर्धन पर्वत का निर्माण कैसे हुआ? अगर नहीं तो हम आपको बताते हैं.

यह कहानी श्री राम (Shri Ram) के समय की है. जब श्री राम सीता माँ को खोजते हुए समुद्र के किनारे पहुंचे तो वहाँ पर पल बनाने के लिए पत्थरों की जरूरत पड़ी. अतः हनुमान जी द्रोणगिरि पर्वत के पास गए. लेकिन द्रोणगिरि ने अपने वृद्धावस्था के बारे में बताया और अपने पुत्र गिरिराजजी या गोवर्धन पर्वत और रत्नागिरी पर्वत को साथ ले जाने के लिए कहा. हनुमान जी गिरिराज पर्वत को समुद्र के किनारे ले जाने के लिए निकल पड़े लेकिन रास्ते में उन्हें सूचना मिली की निर्माण कार्य पूरा हो गया है और अब पत्थरों की आवश्यकता नहीं है तो श्री हनुमान जी ने गिरिराज जी को गोवर्धन में स्थापित कर दिया.

लेकिन तब गिरिराजजी ने हनुमान से अपनी भगवान् श्रीराम से मिलने की इच्छा के बारे में बताया तो हनुमान जी ने कहा की द्वापर युग में भगवान् श्रीकृष्ण के रूप में आकर उनसे मिलेंगे.

चूतड़ टेका (Chutad Teka): गिरिराजजी को गोवर्धन में स्थापित करने के बाद हनुमान जी ने यहीं पर आराम किया था तो इस स्थान का नाम चूतड़ टेका पड गया. लेकिन एक और कथा के अनुसार जब श्रीकृष्ण ने इंद्र के क्रोध को गोवर्धन पर्वत उठाकर शांत किया था तो इसके बाद वो चूतड़ टेका पर ही बैठे थे.





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