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  • क्या पूरा होगा दिवास्वप्न? हिंदी कविता

    क्या पूरा होगा दिवास्वप्न? हिंदी कविता

    धीरे से, कोई आहट न हुई

    फिर आज तोड़ दी गयी आशंकाएं

    इस बदरंग जमाने में

    कुचल दी गयी संवेदनाएं

    फिर धकेले गए

    निराशा भरे गर्त के अंधेरों में

    आज फिर वह

    लौटा दी गयी अपने घर

    दुर्भाग्य! वहां भी वह हो गयी कोई और

    कल तक जहां

    खिलते और गूंजते थे अपने स्वर

    शब्द, अब उस दहलीज पर

    बरबस ही कर्कश सुनाई देने लगे

    अपना घर…

    जहाँ ईश्वर ने भेजा

    समझा, जाना है कहीं और

    फिर जहाँ समाज ने भेजा

    समझाया गया, हूँ कोई और

    आखिर कब तक…

    सिलसिला यहीहोगा

    और हर बार एहसास होगा

    स्त्री होने के अपराध का.

    बंधनो से मुक्ति का दिवास्वप्न

    क्या कभी पूरा होगा?

    Image Source: http://onlineeducare.com/

     

    ऐश्वर्य राणा, कोटद्वार