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  • अंग्रेजों से आज़ाद भारत तक निर्माण कार्य

    अंग्रेजों से आज़ाद भारत तक निर्माण कार्य

    हर दूसरे दिन तरह-तरह की ख़बरों के बीच कुछ ख़बरें पुल गिरने और इमारतें गिरने की होती हैं जिनमे कई लोग हताहत हो जाते हैं.

    मुझे समझ नहीं आता है कि पुल गिरते क्यों हैं. कमी कहाँ है और किसमे है? दोष किसे दूँ और शर्म किस पर करूँ

    जहां तक मैं अपने (बात आपकी भी है) बारे में बात करू तो मैंने बहुत सारे पुल बनते हुए देखे हैं और उनमे से कई सारे गिरते हुए भी. कहीं न कहीं, कोई न कोई कमी तो है.

    लेकिन एक बात सोचने वाली है (इस बात पर आप लोग शायद मुझे अंग्रेजों का गुलाम या फिर देशद्रोही कहने लगे पर मुझे कोई हर्ज नहीं है, जो सच है वो सच है. झूठी शान में क्या रखा है.) जो इमारतें या पुल मैंने बनते हुए नहीं देखे हैं (अंग्रेजों के जमाने के ) वो अपनी उम्र गुजरने के सालो बाद भी सीना ताने खड़े हैं और हमारी नयी तकनीकों और उच्च निर्माण सामग्री को मुंह चिढ़ा रहे हैं.

    सोचिये वजह क्या है?

    एक छोटा सा पॉइंट – शायद अंग्रेजों ने सोचा हो कि हमें यहां हमेशा रहना है. उन्होंने सड़कें, पुल, रेलवे और इमारतें बनवाई. उनकी बनवाई इमारतों में आज भी रेलवे स्टेशन, फैक्ट्रियां और सरकारी ऑफिस जैसे दिल्ली की संसद, कनाट प्लेस और बहुत सारे राज्यों की विधान सभाएं चल रही हैं. लेकिन आज़ादी के बाद बनी सैकड़ों इमारतें ध्वस्त हो चुकी हैं, पुल गिरते हैं और बनते हैं.

    पहले सड़क बनती है फिर सीवर और पानी की लाइन डालने के लिए नयी बनी सड़क खोद दी जाती है. क्या भारत के प्लानर और इंजीनियर इतने मुर्ख हैं जो एक काम को सही से प्लान नहीं कर सकते. कर सकते हैं, लेकिन उनका प्लान सड़क बनाने से पहले पैसे बनाने का होता है. पहले घटिया सामग्री की सड़क बनाओ, फिर सीवर लाइन डालने के लिए खोद डालो. लो जी बन गए पैसे.

    आज के राजनेताओं के बैंक खातों में दिन दूनी रात चौगुनी गति से धन बढ़ता है, आय से अधिक , वो भी भारत के नहीं, स्विस बैंक के खातों में. ये किसका पैसा है? हमारा और आपका. जिसे सरकार रोजाना टैक्स बढाकर अपनी कमाई बढाती है और उसे राजनेता और सरकारी अफसर मिल बैठ कर हजम कर जाते है.

    वैसे लोकतंत्र के चार स्तम्भ बताये गए है लेकिन कोई भी अपना काम ईमानदारी से नहीं करता है. नेताओं को आप जानते है, पुलिस की कार्यशैली से आप परिचित होंगे, मीडिया काम खबर की जगह बिकाऊ ख़बरों ने लिया है. न्याय विभाग के हालात ये हैं की गरीब आदमी न्याय की आस लगाए मर जाता है और पैसे वाले बड़े बड़े लोग तारीख दर तारीख केस आगे बढ़ाते हैं या फिर फाइलों को ऊपर से नीचे या नीचे से ऊपर घुमाते हैं. इतने केस न्याय का इन्तजार कर रहे हैं की उनके फाइलों से कमरे भरे पड़े हैं. एक बार कोई फाइल ढेर में नीचे पहुँच गयी तो इन्तजार कीजिये दसियों साल का. या फिर इंतजाम कीजिये पैसों का.

    जिस राष्ट्र का लोकतंत्र ही भ्रष्टाचार में पूरी तरह लिप्त हो, जनता को कोई मतलब ही न हो, उस राष्ट्र का भगवान् ही मालिक है.

    शायद किसी ने ठीक ही कहा है-

    दस हजार, दस लाख मरे,
    पर झंडा ऊंचा रहे हमारा.
    ..
    गांधीजी का नाम बेचकर,
    बतलाओ कब तक खाओगे.

    यम को भी दुर्गन्ध लगेगी,
    नरक भला कैसे जाओगे..

    Image Source: NDTV

  • मोदी की मेहनत पर पानी: इनके पास 4.7 करोड़ रुपये के नए नोट कहाँ से आये?

    मोदी की मेहनत पर पानी: इनके पास 4.7 करोड़ रुपये के नए नोट कहाँ से आये?

    जहां तक दावों का सवाल है तो प्रधानमंत्री मोदी और वित्त मंत्री जेटली दोनों ने नोट बंदी की स्कीम भ्रष्टाचार, काले धन और आतंकवाद पर चोट करने के लिए की थी. इसमें सबसे ज्यादा सपोर्ट भी आम जनता ने किया था. और सबसे ज्यादा कष्ट भी आम जनता ही झेल रही है.

     

    पहले बैंकों के बाहर आम जनता पुराने नोट जमा कराने और नोट बदलने के लिए लाइन में लगी रही फिर अपने ही पैसे को बैंकों और एटीएम से दो-दो और चार-चार हजार करके निकालने के लिए अभी तक लाइन में लगी है.

     

    रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल ने तो यहां तक कहा है की पैसे की कोई कमी नहीं है और बैंक से 24000 प्रति सप्ताह और एटीएम से 5000 प्रति सप्ताह कैश निकाल सकते हैं.

     

    लेकिन सच्चाई सभी को मालूम है, ज्यादातर एटीएम में पैसा ही नहीं डाला जा रहा है, कुछ जगहों पर 2000 के नोट मिलने शुरू हुए हैं, 500 के नोट सिर्फ कुछ गिने चुने एटीएम से मिल रहे हैं. बैंकों की हालात तो और भी बदतर है. सीमित कैश और भारी भीड़ के चलते बहुत कम बैंक ही अपने ग्राहकों को प्रति सप्ताह 24000 रुपये दे पा रहे हैं. ज्यादातर बैंक अधिक से अधिक लोगों को सहूलियत पहुंचाने के लिए 4000 या 6000 रुपये प्रति दिन दे रहे हैं.

     

    ऐसे में आतंकवादियों के पास से आये दिन नए नोटों की गड्डियां मिलना व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह लगाता है. रोज पुराने नोटों से ज्यादा नए नोटों की खेप पकडे जाने की खबरे सुनने में आ रही हैं.

     

    ताजा मामले में बेंगलुरु में दो लोगों के पास से करीब पांच करोड़ के नए नोट बरामद हुए हैं. इनकम टैक्स वालों में एक इंजिनियर और एक ठेकेदार को 4.7 करोड़ के नए नोटों और 30 लाख के पुराने नोटों के साथ गिरफ्तार किया है. यह अब तक की सबसे ज्यादा नए नोटों के रकम की बरामदगी है. इससे पहले निजामुद्दीन स्टेशन, दिल्ली से एक कार से 27 लाख के नए नोट बरामद हो चुके हैं. इसी तरह पंचकूला हरियाणा से 8 लाख के नए नोट बरामद हो चुके हैं.

     

    अब सवाल यह उठता है की इतनी मात्रा में नए नोट बैंको से बाहर कैसे आये. लोग एक-एक पाई को मोहताज हो रहे हैं और बैंककर्मियों की मिलीभगत से भ्रष्टाचारी अपने काले धन को सफ़ेद करने में कामयाब हो रहे हैं.

     

    फोटो साभार: http://indianexpress.com/