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    बच्चे जिन्हें जंगली जानवरों ने पाला-पोसा

    जंगल बुक तो आप सभी ने देखी ही होगी. और “जंगल-जंगल पता चला है, बात चली है. चड्डी पहन कर फूल खिला है……” ये गाना अभी तक लोगों की जुबान पर है.

     

    यह फिल्म एक मोगली नाम के बच्चे पर बनी थी जिसे जंगली भेड़ियों ने पाल पोस कर बड़ा किया था. मोगली भेड़ियों के साथ रह कर भेड़ियों की तरह ही व्यवहार करता था.

     

    लेकिन यह सिर्फ कहानी नहीं है बल्कि हकीकत में मोगली जैसे इंसान हुए हैं जिन्हें जंगली जानवरो ने पाला पोसा और वे उन जानवरों की तरह ही हरकत करते थे. ये वो बच्चे थे जो बचपन में ही जंगल में खो गए थे या फिर उन्हें जंगली जानवर उठा कर ले गए थे, और उन्हें जंगली जानवरों ने मारकर खाने के बजाय पाला पोसा.

     

    आइये जानते हैं उन इंसानों के बारे में जो जंगली जानवरों के साथ पल कर बड़े हुए…

     

    ओक्साना मलाया, यूक्रेन 1991:

    Feral Children Grown Up with Wild Animals

    फ़ुलर्टन बेटन के अनुसार यूक्रेनियन लड़की ओक्साना 1991 में कुत्तों के साथ रहती हुई पायी गयी. वह 8 साल की थी और करीब 6 साल से कुत्तों के साथ रह रही थी. उसके शराबी माता-पिता ने सर्दी की एक रात में उसको घर के बाहर छोड़ दिया. तीन साल की बच्ची कड़कड़ाती ठण्ड में पास बने कुत्तों के घर में पहुँच गयी और कुत्तों के साथ ही रह कर उसकी जान बच सकी. उस घर में वह मोंगरेल नस्ल के कुत्तों के साथ करीब 6 साल तक रही. 1991 में जब उसे खोजै गया तब वह कुत्तों की तरह चार पैरों पर चलती थी, कुत्तों की तरह ही दांत दिखती और उन्हीं की तरह भौंकती थी.

     

    अब ओक्साना डॉक्टरों की देखरेख में है.

     

    साम देव, भारत, 1972:

    Feral Children Grown Up with Wild Animals

    फ़ुलर्टन बेटन के अनुसार ये कहानियां टार्ज़न की तरह नहीं होती हैं. बच्चों को खाने के लिए जानवरों से लड़ना पड़ता है, और जानवरों से अपनी जिंदगी बचाना भी सीखना पड़ता है. उनके पास ऐसे बच्चों के 15 केस हैं. उनके फोटोग्राफ दिखाते हैं की काम उम्र के बच्चे अगर मानवों से दूर होकर जानवरो के बीच जिन्दा बच जाए तो उनका व्यवहार कैसा हो जाता है.

     

    यह कहानी है शामदेव की जो भारत में मुसाफिरखाना के जंगलों में 1972 में पाया गया था और उसकी उम्र केवल चार वर्ष की रही होगी. वह भेड़ियों के बच्चों के साथ खेलता था. उसकी खाल काली, दांत पैने और नाखून लम्बे हो गए थे. वह अपने चारो हाथ और पैरों से कभी पंजों के बल या फिर कुहनी और घुटनों के बल पर चलता था. वह मुर्गों का शिकार करता और खून पीता था, कभी – कभी मिटटी भी खाता था. वह कभी बोलना सीख नहीं पाया लेकिन इशारों को थोड़ा बहुत समझ पाता था. 1985 में मदर टेरेसा के चैरिटी की देखरेख में उसकी मौत हो गयी.

     

    मरीना चैपमैन, कोलम्बिआ, 1959:

    Feral Children Grown Up with Wild Animals

    मरीना का अपहरण दक्षिण अमेरिका के एक गाँव से 5 साल की उम्र में हो गया था और अपहरणकर्ता उसे जंगल में छोड़ कर चले गए थे. वह करीब पांच साल तक कापूचिन बंदरों के साथ रही जहां से उसे शिकारियों ने उसे छुड़ाया. वह बेर, जड़ें और केले खाती और बंदरों की तरह चार पैरों पर चलती थी. वह बंदरों की तरह ही व्यवहार करती और उनकी नक़ल भी करती थी.

     

    मरीना अब यॉर्कशायर में अपने पति और दो बेटियों के साथ रहती हैं. मरीना की कहानी पर लोगों को अब भी भरोसा नहीं होता है.

     

    दीना शनिचर, भारत, 1867:

    Feral Children Grown Up with Wild Animals

    दीना शनिचर का नाम भी उन बच्चों में शामिल है जो जंगली जानवरों के बीच जिन्दा रहे. उसे कुछ शिकारियों ने बुलंदशहर के जंगलों से बचाया था. शिकारी तब अचंभित रह गए जब उन्होंने एक बच्चे को भेड़ियों के साथ उनकी गुफा की ओर भागते देखा. उन्होंने भेडियो को गोली मार दी और बच्चे को बचाकर ले आये. वह अन्य जानवरों की तरह ही चारो पैरों पर चलता और जमीन से सीधे कच्चा मांस खाता था. वह पहनाये गए कपड़ों को फाड़ डालता था और कभी बोलना नहीं सीख पाया. लेकिन वह तंबाकू खाना सीख गया था. उसकी मौत सन 1895 में हुई थी.

     

    तेंदुआ लड़का, भारत, 1912:

    Feral Children Grown Up with Wild Animals

    इसे शिकारियों ने भारत में आसाम की उत्तरी कछार की पहाड़ियों (अब दीमा हसाओ ) से 1912 में खोजा था. इसे मादा तेंदुए उठाकर ले गयी थी. वह अपने चारों पैरों पर तेजी के साथ दौड़ता था. वह अन्य तेंदुओं की तरह हर किसी से लड़ता था जो उसकी तरफ जाने की कोशिश करते थे. इस बच्चे ने बोलना सीख लिया था लेकिन उसकी आँखों की रौशनी एक ऑपरेशन में जाती रही थी.

     

    नग छेदी, भारत, 2012:

    Feral Children Grown Up with Wild Animals

    नग छेदी के केस एकदम ताज़ा है. यह बात मिजोरम के बर्मा (म्यांमार) से लगे हुए बॉर्डर के पास की है जब यह लड़की जब केवल 4 साल की थी तब वह खेलते हुए जंगल में खो गयी थी. 38 साल तक उसका कुछ पता नहीं चला उसके माता पिता ने भी उसको मरा हुआ समझ लिया था. लेकिन कभी कभार जंगलों में एक नंगी लड़की के घूमने की बात आने लगी थी तो अन्य लोग तो इसे एक गप्प समझते थे, लेकिन इसके माँ-बाप को वह अपनी ही लड़की लगती थी. इसलिए उन्होंने खोजबीन फिर शुरू कर दी. लेकिन वह लड़की कभी उनके सामने नहीं पड़ी. लेकिन सन 2012 में लोगों को पता चला की बर्मा में बॉर्डर के पास के गाँव में एक जंगली लड़की पकड़ी गयी है. तब उसके माँ बाप उसे देखने गए और जन्म चिन्हों से उसे पहचान लिया और उसे घर लेकर आये. अब वह 42 साल की है और कुछ शब्द बोलना जानती है और अब वह गाँव में सबके साथ खेलती है.

     

    कमला और अमला, भारत, 1920:

    Feral Children Grown Up with Wild Animals

    ये दोनों लड़कियां भेड़ियों द्वारा पाली गयी थी. ये कच्चा मांस खाती थी, चारो पैरों पर चलती थी और रात में भेड़ियों की तरह चिल्लाती थी. जोसफ अमृतो लाल सिंह ने इन दोनों लड़कियों को बंगाल में एक जंगल के पास के एक गाँव से छुड़ाया था और उसे मिदनापुर के अनाथाश्रम में लेकर आये. अमला जो उनमे से छोटी थी उसकी मौत 1921 में हुई जबकि कमला की मौत 1929 में हुई. कमला ने अमला की मौत के बाद सीधा खड़ा होना और कुछ शब्दों को सीख लिया था.

     

    साभार: Julia Fullerton-Batten

    http://www.bbc.com/culture/story/20151012-feral-the-children-raised-by-wolves

    https://www.scoopwhoop.com/indian-children-raised-by-animals

    http://www.dailymail.co.uk/news/article-2201134/Missing-Indian-girl-disappeared-40-years-ago-returns-home-living-Myanmar-jungle-decades.html

    https://en.wikipedia.org/wiki/Amala_and_Kamala

    http://www.huffingtonpost.in/entry/julia-fullerton-batten-feral-children_us_56098e95e4b0dd85030893a9

    https://www.smashinglists.com/10-feral-human-children-raised-by-animals/

    https://www.theguardian.com/science/2013/apr/13/marina-chapman-monkeys