कैलिफ़ोर्निया ने पानी शुद्ध करने के लिए सौर ऊर्जा से चलने वाला नया यन्त्र आविष्कार किया है, ये यन्त्र सौर उर्जा के मदद से इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फिल्टेरेशन प्रोसेस से पानी को शुद्ध करेगा।
द पाइप (The Pipe) नामक ये यन्त्र सालाना 4.5 बिलियन लीटर्स पानी शुद्ध करने के साथ साथ 10000 Mwh की ऊर्जा भी उत्पन्न करेगा। जिससे कैलिफ़ोर्निया में पानी की होने वाला कमी की पूर्ति की जा सकेगी और साथ ही साथ उत्पन्न हुए ऊर्जा का भी उपयोग किया जा सकेगा।
इस यन्त्र की मदद से कैलिफ़ोर्निया सरकार पानी की होने वाला कमी को दूर कर सकेगी और लोगो को शुद्ध पानी मुहैया करा पायेगी।कैनेडियन इंजीनियरिंग फर्म ‘अब्दोलज़ीज़ खलीली एंड एसोसिएट्स ने इस पाइप का डिजाईन तैयार किया है, जिसको सैंटा मोनिका शहर में होने वाले लैंड आर्ट जनरेटर इनिशिएटिव नाम के एक डिजाईन कम्पटीशन में सबमिट भी कर दिया गया है।
खलीली के इंजीनीयरस के अनुसार ये यन्त्र एक साल में 10,000 MWh ऊर्जा उत्पन्न करेगा और साथ ही 4.5 बिलियन लीटर्स पीने का पानी भी तैयार करेगा।इस यन्त्र से पाई निकलने वाले पाइप को सीधे शहर के मुख्य वाटर पाइप से जोड़ा जायेगा, जो सीधे लोगो के घरो तक पहुचाया जायेगा, इस पानी को फ़िल्टर करके पीने के काम में लाया जा सकेगा।
वर्ष 2017 में अप्रैल के अंतिम सप्ताह से चारधाम यात्रा शुरू होने जा रही है. इस यात्रा में आने वाली कठिनाइयों को देखते हुए उत्तराखंड सरकार के पर्यटन विभाग ने पिछले वर्ष “एक्सप्लोर आउटिंग” (Explore Outing ) नाम की एंड्राइड मोबाइल ऍप लांच की थी. इस ऍप के जरिये चारधाम यात्रा करने वाले यात्री अपने आस-पास की जानकारी और यात्रा से जुड़े लेटेस्ट अपडेट प्राप्त कर सकते हैं.
उत्तराखंड पर्यटन सचिव शैलेश बगोली के अनुसार इस ऍप से यात्री रेस्टोरेंट, होटल, पुलिस, अस्पताल, पेट्रोल पम्प, शौचालय और एटीएम के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं.
यह ऍप केवल न केवल चारधाम के यात्रियों बल्कि टूरिज्म सेक्टर के कारोबारियों के लिए भी बनाया गया है, यहां पर होटल और रेस्टोरेंट जैसी सर्विस देने वाले भी अपने बिज़नेस को रजिस्टर कर सकते हैं.
इस ऍप से आस-पास के कुछ किलोमीटर के अंदर आने वाले मुख्य ट्रेवल डेस्टिनेशन के बारे में भी जानकारी मिलेगी और साथ ही अगर आप वीकेंड के लिए प्रोग्राम बना रहे हैं तो यह ऍप आपको 50 से 100 किलोमीटर की रेंज में आने वाली घूमने योग्य जगहों के बारे में भी जानकारी प्रदान करेगा.
इस ऍप पर लाइव रूट मैप की जानकारी भी मिलेगी. इस ऍप पर यात्री फोरम में अपनी जानकारी फोटो के साथ शेयर कर सकते हैं. चूँकि चारधाम यात्रा के मार्ग कठिन पहाड़ों से होकर गुजरता है, इसलिए कभी भी रास्ते में व्यवधान आदि होने और सड़क के ठीक होने पर यात्री तुरंत इसकी जानकारी ऍप के माध्यम से दूसरे यात्रियों को दे सकते हैं.
इस ऍप में लाइव मौसम की जानकारी भी दी गयी है, जिससे मौसम के अनुसार यात्री अपनी यात्रा को जारी रख सकते हैं.
एक्सप्लोर आउटिंग ऍप पर्यटकों की सुविधा के साथ सुरक्षा का भी ध्यान रखता है और लेटेस्ट जानकारियां नोटिफिकेशन के माध्यम से मोबाइल पर आती रहती हैं.
यह ऍप सिर्फ चार धाम ही नहीं बल्कि भारत के सभी यात्री इस्तेमाल कर सकते हैं और रास्ते में पड़ने वाली समस्याओं का समाधान इस ऍप के माध्यम कर सकते हैं.
अपने जमाने का बेहतरीन मोबाइल फ़ोन नोकिया 3310 दोबारा मार्किट में तहलका मचाने आ रहा है. नोकिया का 3310 मोबाइल जो अपने स्नेक गेम की वजह से भी पॉपुलर हुआ था. अब MCW (Mobile World Congress) 2017 में नोकिया द्वारा की गयी घोषणा के अनुसार दोबारा कुछ नए फीचर के साथ वापस आ रहा है. 17 साल बाद बड़ी स्क्रीन, इन्टरनेट कनेक्टिविटी, कैमरा और फ्लैश के साथ इसका पुनर्जन्म हुआ है.
क्या आप जानते हैं: नोकिया 3310 के कुल 12 करोड़ 60 लाख हैंडसेट बिके हैं.
नए 3310 में 22 घंटे के टॉकटाइम और एक महीने के स्टैंडबाय की 1200 mAh की पावरफुल बैटरी आ रही है. अगर स्नेक गेम की बात करें तो या केवल फेसबुक मेसेंजर के द्वारा ही खेलने को मिल पायेगा.
अगर रंगों की बात करें तो यह चार रंगों में उपलब्ध है: ग्लॉसी लाल, पीला और मैटी फिनिश के साथ नीला और ग्रे. इसकी कीमत भारत में लगभग 3500 रुपये होगी.
अगर फ़ोन की मजबूती की बात करें तो नोकिया फिर से अपने पुराने फ़ोन वाली ही मजबूत बॉडी के साथ आ रहा है.
नया 3310 मार्किट में HMD Global कंपनी द्वारा लांच किया गया है, इस कंपनी ने पिछले साल नोकिया ब्रांड के राइट्स खरीदे थे.
कीमत कितनी होगी:
नए नोकिया 3310 की कीमत आपके बजट में है, इसकी कीमत भारत में लगभग 3500 रुपये के लगभग होगी. वास्तविक कीमत तो इसके भारत में लांच होने के बाद ही पता चलेगी.
डिस्प्ले कैसा होगा:
पुराने फ़ोन में जहाँ ब्लैक एंड वाइट डिस्प्ले था वहीँ अब नए 3310 में कलर डिस्प्ले है. इसमें 120 ppi का 2.4 इंच का कलर डिस्प्ले है. इसके Polarise कर्व स्क्रीन में आप धूप में भी इसको अच्छी तरह से चला पाएंगे.
कैमरा:
इस फ़ोन में आपको फ्लैश के साथ 2 मेगापिक्सेल का कैमरा मिलेगा लेकिन सेल्फी कैमरा की कमी खलेगी.
सिम कार्ड:
नया 3310 ड्यूल माइक्रो सिम को सपोर्ट करेगा. दोनों सिम GSM होंगे.
गेम:
जिसने भी पुराने 3310 फ़ोन को चलाया होगा उसे अभी भी स्नेक गेम याद होगा. तो नए 3310 में भी आपको कलर बैकग्राउंड के साथ नया या कहें पुराना स्नेक गेम खेलने को मिलेगा.
बैटरी:
बैटरी के मामले में यह फ़ोन भी पुराने 3310 को टक्कर देगा. इसमें 1200 mAh की बैटरी है जो आपको 22 घंटे का टॉकटाइम और एक महीने का स्टैंडबाय टाइम देगी.
कब मिलेगा यह फ़ोन:
भारत में यह फ़ोन मई-जून में लांच किया जाएगा.
और क्या-क्या है नए नोकिया 3310 में:
इस फ़ोन में माइक्रो USB कनेक्टिविटी, 2G इन्टरनेट, और ब्लूटूथ 3.0 कनेक्टिविटी मिलेगी.
पुराने 3310 में जहां 48×84 पिक्सेल का रेसोल्यूशन था वहीँ नए 3310 में 240×320 पिक्सेल का QVGA कलर डिस्प्ले मिलेगा. फ़ोन में इंटरनल मेमोरी सिर्फ 16 MB है लेकिन इसे मेमोरी कार्ड से 32 GB तक बढ़ा सकते हैं. इस फ़ोन में आप FM रेडियो का लुत्फ़ भी ले सकते हैं.
कुछ बातें पुराने नोकिया 3310 के बारे में:
नोकिया 3310 सितम्बर 2000 में लांच हुआ था. बिना कैमरे वाले इस फ़ोन का स्क्रीन रेसोल्यूशन केवल 48×84 पिक्सेल था. इसमें 1000mAh की बैटरी थी और वजन 133 ग्राम था. यह फ़ोन केवल एक सिम को सपोर्ट करता था और कोई कनेक्टिविटी ऑप्शन भी नहीं था. आप इस फ़ोन से केवल काल और टेक्स्ट मेसेज को सेंड और रिसीव कर सकते थे.
नोकिया कंपनी के बारे में:
अपने जमाने की सबसे बड़ी फ़ोन निर्माता कंपनी के बुरे दिन Android और iPhone मार्किट में आने के बाद से शुरू हुए. वर्ष 2014 में इसे microsoft ने खरीद लिया. फिर वर्ष 2016 में इसके कुछ हिस्से को HMD Global ने खरीदा और नोकिया ब्रांड के अन्तर्गत ही स्मार्टफोन बनाना शुरू किया.
पुराने और नए नोकिया 3310 की तुलना
Nokia 3310 (2017)
Nokia 3310
कब लांच हुआ
Feb-17
Sep-00
साइज़ (mm)
115.60 x 51.00 x 12.80
113.00 x 48.00 x 22.00
वजन (g)
–
133
बैटरी (mAh)
1200
1000
किन किन रंगों में
Warm Red (Glossy), Dark Blue (Matte), Yellow (Glossy), Grey (Matte)
अपनी पृथ्वी से 40 प्रकाश वर्ष दूर पृथ्वी के जैसे ही 7 ग्रह मिले हैं. वैज्ञानिकों को पूरी सम्भावना है की वहां पर जीवन और पृथ्वी जैसा वातावरण हो सकता है.
नासा के खगोल वैज्ञानिकों ने एक छोटे और डूबते हुए तारे के चारो ओर परिक्रमा करते हुए सात ग्रह ढूंढ निकाले हैं. ये ग्रह पृथ्वी से मात्र 40 प्रकाश वर्ष की दूरी पर हैं. नेचर मैगजीन में इसकी जानकारी प्रकाशित की गयी है.
सम्भावना व्यक्त की गयी है की इन ग्रहों पर पानी और वातावरण हो सकता है, और वहाँ पर जीवन की भी सम्भावना है. ये सारे ग्रह लगभग पृथ्वी के आकर के हैं.
ये एक्सोप्लैनिट्स की संरचना काफी उलझी हुई है और इनकी जमीन पथरीली होने की सम्भावना है, और इनमे से कुछ ग्रहों पर समुद्र भी हो सकते हैं. ये ग्रह एक मरते हुए छोटे तारे TRAPPIST-1 की परिक्रमा कर रहे हैं.
यह केवल शुरुआत है और इन ग्रहों की और ज्यादा जानकारी जुटाने में कई दशक भी लग सकते हैं. और अगर वहाँ पर जीवन के प्रमाण मिल भी गए तो हमको वहाँ पहुँचने में कई लाख या हजारों साल लग जाएंगे.
गूगल ने भी इस आज अपने डूडल को स्पेस की इसी थीम पर बनाया है.
सबसे ख़ास बात यह है की आज से पहले कभी भी पृथ्वी के आकार के इतने ग्रह एक तारे का चक्कर लगाते हुए नहीं मिले. ये ग्रह गैस के गोले न होकर धातुई चट्टानें के बने हो सकते हैं और कुछ पर समुद्र हो सकते हैं. यहां का तापमान जीवन के अनुकूल माना जा रहा है. अब केवल वहां के वातावरण की जानकारी प्राप्त करनी है जिसमे वहाँ पर कौन कौन सी गैसें हैं तथा ऑक्सीजन अगर है तो कितनी मात्रा में है.
इन ग्रहों पर सूर्य, हमारी पृथ्वी के सूर्य से करीब 10 गुना तक बड़ा दिखाई देगा. इंफ्रारेड की अधिकता की वजह से आँखों की देखने की छमता पृथ्वी से बिलकुल ही अलग होगी तथा वहाँ के रंगों और पृथ्वी के रंगों में भी अंतर हो सकता है.
वैज्ञानिकों ने 1992 से अब तक लगभग 3500 ग्रह खोजे है जो 2600 से अधिक सूर्यों की परिक्रमा करते हैं.
प्रकाश वर्ष क्या है:
जिन लोगों ने विज्ञानं का अध्ययन किया होगा उनको प्रकाश वर्ष के बारे में जानकारी होगी. लेकिन यदि आप प्रकाश वर्ष के बारे में नहीं जानते है तो आइये हम आपको बताते हैं.
प्रकाश वर्ष सुनने में सुनने में समय के सामान लगता है, लेकिन यह बहुत बड़ी दूरियां नापने की यूनिट है.
1 प्रकाश वर्ष = 1 वर्ष में प्रकाश के द्वारा चली गयी दूरी
1 सेकंड में प्रकाश द्वारा चली गयी दूरी = 3 लाख किलोमीटर प्रति सेकंड
अब आप समझ सकते हैं की अगर आप 3 लाख किलोमीटर प्रति सेकंड की स्पीड से चलते हैं तो आपको उन ग्रहों तक पहुँचने में 40 साल लग जाएंगे.
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ISRO ने बुधवार को एक नयी उपलब्धि हासिल करके पूरी दुनिया में तहलका मचा दिया. भारत ने PSLV-C37 रॉकेट के जरिये एक बार में 104 उपग्रह लांच किये और यह संख्या अब तक की सबसे अधिक है. इससे पहले का रिकार्ड रूस के नाम है. रूस ने 2014 में एक राकेट से 37 उपग्रह लांच किये थे. बताते चलें कि इन 104 सैटेलाइट में 96 अमेरिका के थे. इस तरह अमेरिका ने भी भारत कि टेक्नोलॉजी का लोहा मान लिया है. यह सैटेलाइट लांच श्रीहरिकोटा केंद्र से किया गया है.
यह सैटेलाइट लांच 17000 मील प्रति घंटे कि रफ़्तार से किया गया और हर कुछ सेकण्ड्स में उपग्रहों को उनकी कक्षा में स्थापित किया गया. यह मिशन बहुत ही खतरा भरा था क्योंकि इतने सारे उपग्रहों को बहुत तेजी के साथ उनकी कक्षा में स्थापित करना रिस्की था और अगर ये उपग्रह गलत कक्षा में स्थापित हो जाते तो उनके दूसरे उपग्रहों के साथ टकराने की सम्भावना भी हो सकती थी.
104 in 1. #ISRO does not just do it again. It sets a world record too. Hearty Congratulations.👏👏👏 pic.twitter.com/S1jqMFdyD3
आजकल सभी लोग स्मार्टफोन के दीवाने हैं. जब भी कोई नया स्मार्टफोन मार्केट में आता है तो उसकी खूबियां देखकर सभी का मन उसे खरीदने का होता है.
लेकिन अगर आपका फोन खराब हो गया है तो उसकी कोई कीमत न समझते हुए उसे या तो कबाड़ में फेंक देते हैं या फिर किसी कबाड़ी को दे देते हैं.
लेकिन शायद आप नहीं जानते होंगे की ये बेकार पड़े स्मार्टफोन भी कीमती होते होते हैं. इनकी कीमत के बारे आप सुनेंगे तो दंग रह जाएंगे क्योंकि इन स्मार्टफोन को बनाने में बहुत सारी धातुएं प्रयोग होती हैं. इन फोन को बनाने में सोना, चांदी तो प्रयोग होते ही हैं साथ ही एपल आईफोन बनाने में प्लेटिनम का भी प्रयोग होता है.
अब तो आप समझ ही गए होंगे की आपके बेकार पड़े स्मार्टफोन भी अच्छी खासी कीमत रखते हैं. और इन फ़ोन को रिसायकिल करके इन धातुओं को निकाल लिया जाता है.
आइये जाने कितना क्या निकलता है स्मार्टफोन खराब होने के बाद:
अगर10 लाख स्मार्टफोन को रिसायकिल किया जाए तो:
16 टन ताँबा,
350 किलो चांदी,
34 किलो सोना,
15 किलो पैलेडियम, निकलता है.
एक एपल आईफोन में देखें क्या क्या निकलता है:
सोना: 0.034 ग्राम,
चांदी: 0.34 ग्राम,
पैलेडियम: 0.015 ग्राम,
प्लेटिनम: 0.001 ग्राम,
एल्युमिनियम: 25 ग्राम,
ताँबा: 15 ग्राम.
देखें वर्ष 2014 में इलेक्ट्रॉनिक कबाड़ से कितना पैसा कमाया गया:
प्लास्टिक: 901 अरब रुपये,
ताँबा: 776 अरब रुपये,
सोना: 762 अरब रुपये,
लोहा और स्टील: 659 अरब रुपये,
अल्युमिनियम: 234 अरब रुपये,
पैलेडियम: 132 अरब रुपये,
चांदी: 44 अरब रुपये,
ये कमाई तब है जबकि केवल 10% स्मार्टफोन रिसायकिल हो रहे हैं.
क्या आप जानते हैं: 2014 में इलेक्ट्रॉनिक कबाड़ से जो सोना निकला था वो दुनिया के कुल सोने के उत्पादन का 11% था.
जो जहाज हम आज सपने में देखते हैं, अमेरिकन एयर फ़ोर्स उस जहाज को आज से 17-18 साल पहले रिटायर कर चुका है. अमेरिका इतने विकसित जहाज को सन 1964 में बना चुका था जब हमारे देश के पास अँधेरे में उड़ने वाले जहाज भी नहीं थे. इस जहाज की स्पीड के बारे में सुन कर आपकी आँखें चौड़ी हो जाएंगी. आइये इस जहाज की कुछ खासियतें आपको बताते हैं.
लॉकहीड SR-71 ब्लैकबर्ड नाम है इस जहाज का. यह जहाज अमेरिकी एयर फ़ोर्स में 1964 से 1998 तक रहा. इस तरह के सिर्फ 32 जहाज थे जिनमे 12 एक्सीडेंट में नष्ट हुए थे नोट करने वाली बात ये है की इनमे से एक भी जहाज दुश्मन नष्ट नहीं कर पाया.
इस प्लेन को मैक 3 से भी तेज उड़ने के लिए बनाया गया था. यह स्टील्थ टाइप का पहला जहाज था जो राडार को धोखा दे सकता था. इसे डार्क ब्लू या लगभग काले रंग में रंगा गया था ताकि ये रात में भी आसमान में दिखाई न दे, और यही कारण था की इसका नाम ब्लैकबर्ड पड़ा. इसकी खासियत इसकी तेज रफ़्तार और बहुत ही अधिक ऊँचाई पर उड़ना था जिसकी वजह से इसे ट्रैक कर पाना नामुमकिन था.
इसे बनाने में ज्यादातर टाइटेनियम का प्रयोग किया था, इसके शीशे 2 इंच मोटे क़्वार्टज़ के बनाये गए थे. क्योंकि इसकी अत्यधिक स्पीड की वजह से इसकी विंडस्क्रीन का टेम्परेचर 360 डिग्री सेल्सियस तक पहुँच जाता था.
इसके पायलट के लिए स्पेशल मास्क होता था क्योंकि जो मास्क साधारण फाइटर प्लेन के पायलट के लिए काम में लाये जाते थे वो केवल 13000 मीटर तक ही काम करते है. लेकिन यह प्लेन 24000 मीटर की ऊँचाई पर उड़ता है जहां हवा का प्रेशर और ऑक्सीजन बहुत ही कम हो जाते हैं. इसके लिए आतंरिक दबाव वाले सूट उपयोग में लाये जाते है जिसमे ऑक्सीजन की कमी होने पर ऑनबोर्ड ऑक्सीजन की सप्लाई करके सूट का दबाव नार्मल किया जाता है. इसके पायलट का सूट अंतरिक्ष यात्रियों के लेवल का था.
इस प्लेन की पहली फ्लाइट 22 दिसंबर 1964 में हुई थी. इस प्लेन का सर्वाधिक ऊँचाई पर उड़ने का रिकार्ड 25,929.03 मीटर का है जबकि स्पीड के मामले में भी इसका रिकार्ड 3,529.56 किलोमीटर प्रति घंटे(सन 1976) का है.
खासियत:
यह अब तक का दुनिया का सबसे तेज उड़ने वाला प्लेन है.
25 साल के इतिहास में इसपर 4000 मिसाइल छोड़ी गयी लेकिन इसके अत्याधुनिक सिस्टम जो मिसाइल की स्पीड के हिसाब से प्लेन की स्पीड को बढ़ा देता था की वजह से 25 साल में इस जहाज को कोई भी मिसाइल छू तक नहीं पायी है.
इतने तेज स्पीड में उड़ने के बावजूद इसके कॉकपिट में इतनी शांति रहती थी की आप पिन गिरने की आवाज भी सुन सकते थे.
यह दुश्मन के राडार सिग्नल और कम्युनिकेशन सिस्टम को डिस्टर्ब कर सकता था.
इसका नेविगेशन सिस्टम (R2-D2) इतना जबरदस्त था की दोपहर में जमीन पे खड़े हुए भी यह 61 तारों को देख सकता था.
इस जहाज को बनाने के लिए काफी मात्रा में टाइटेनियम की जरूरत थी. लेकिन टाइटेनियम का सबसे बड़ा सप्लायर सोवियत संघ (अब रूस) था जो अमेरिका का सबसे बड़ा दुश्मन भी था. इसलिए CIA ने दुनिया भर में फर्जी कम्पनियाँ बनाकर सोवियत संघ से पर्याप्त मात्रा में टाइटेनियम खरीद लिया. एक तरह से ये सब अवैध और स्मगलिंग की श्रेणी में आता है.
इस प्लेन के खड़े होने पर इसका फ्यूल लीक होता रहता था क्योंकि इसे इसी तरह बनाया गया था. लेकिन इस फ्यूल को सीधे आग से भी आग नहीं लगती थी. इसमें सिर्फ उड़ान भरने का ही फ्यूल होता था, टैंक में फ्यूल उड़ान के दौरान ही भरा जाता था क्योंकि खड़े होने पर इसके बॉडी पैनल ठन्डे होने की वजह से ढीले हो जाते थे. इसी वजह से इसका फ्यूल खड़े होने पर लीक होता रहता था.
इस प्लेन का क्रू मेंबर बनने के लिए आपकी उम्र 25-40 के बीच, शादीशुदा और अपने इमोशन पर कंट्रोल होना चाहिए.
इस प्लेन में हवा में ही फ्यूल भरने की सुविधा थी.
इसके टायर भी साधारण नहीं थे. अल्युमिनियम मिक्स टायर भी केवल 20 बार ही लैंड कर सकते थे जबकि स्पीड कम करने के लिए पैराशूट का भी प्रयोग होता था.
पोलाराइड कैमरा के फाउंडर इस जहाज के डिजाइन के इंचार्ज थे. वो इसलिए क्योंकि ब्लैकबर्ड एक जासूसी विमान था और वो फोटोग्राफी के बारे में बहुत कुछ जानते थे.
इस प्लेन की टेस्टिंग रहस्यमयी Area-51 में हुई थी.
यह प्लेन एक घंटे में 20000 किलोग्राम से ज्यादा फ्यूल जला देता था, हर 90 मिनट में इसे दोबारा भरना पड़ता था. लेकिन मैक 2 की स्पीड (सुपरसोनिक स्पीड) के बाद इसकी छमता बढ़ जाती थी. इसके पीछे “रैमजेट इफेक्ट” का नियम था जिसमे सुपरसोनिक स्पीड में हवा और फ्यूल दोनों कंप्रेस हो जाते हैं.
रिलायंस Jio का नाम आजकल हरेक की जुबान पर है, और हो भी क्यों ना, इतने सस्ते कालिंग और डेटा प्लान किसी और टेलिकॉम कंपनी के पास नहीं हैं. इसी वजह से दूसरी टेलिकॉम कंपनियों जैसे वोडाफोन, आइडिया और एयरटेल की नींद उडी हुई है.
जैसा की सुनने में आ रहा है की Jio सिम केवल 4G मोबाईल को सपोर्ट करती है. इससे तो हम जैसे बहुत सारे लोगों को समस्या आ जाएगी, क्योंकि अभी भारत में ज्यादातर लोगों के पास 3G हैंडसेट ही हैं. लेकिन इस समस्या का समाधान भी हो गया है:
अगर आपके पास 3G स्मार्टफोन है तो कोई परेशानी वाली बात नहीं है बस आपको एक MTK Engineering नाम की एप्लीकेशन डाउनलोड करनी है अब आपको उसे Open करके उसमे Preferred Network ऑप्शन खोलना है. उसमे दिखाई दे रहे 4G नेटवर्क को सेलेक्ट करें और सेव कर दे अब आप आसानी से 4G Jio सिम चला पाएंगे.
है ना कमाल. इसे अपने दोस्तों को भी बताएं ताकि वो भी अपने 3G स्मार्टफोन में 4G Jio सिम चला सकें.
हम सब ने अपने जीवन में तरह – तरह के जानवर देखे होंगे, उनमे से कई सारे हमें अचंभित भी करते होंगे. लेकिन इस लेख को पढ़ने के बाद आपको लगेगा की इस दुनिया में बहुत कुछ ऐसा है जो आपने अभी तक देखा नहीं है. ये जानवर आपको चिड़ियाघर में देखने को नहीं मिलेंगे.
रेड कैप गोल्डफिश: रेड कैप ओरांडा गोल्डफिश के सर का ऊपरी हिस्सा लाल रंग का होता है. यह देखने में ऐसा लगता है जैसे मछली का दिमाग ही बाहर रख दिया गया हो. ये बहुत ही सुन्दर मछली लोगों के एक्वेरियम में सजावटी मछली के रूप में दिखाई देती है. मूलतः यह मछली चीन की है लेकिन अब यह हर किसी की चाहत है.
चलने वाली मेक्सिकन मछली: इसका ऑफिशियल नाम ऑक्सोटोल है और यह मेक्सिको में पाई जाती है. दरअसल यह मछली न होकर एक उभयचर प्राणी है जो पानी में रहता है और जमीन पर चलता है.
फ्रिल्ड शार्क: फ्रिल्ड शार्क अटलांटिक और पैसिफिक महासागर के गहरे पानी में पायी जाती है. ये पानी की सतह पर बहुत ही काम दिखाई पड़ती हैं क्योंकि ये गहरे पानी में रहना पसंद करती हैं. एक मरती हुई फ्रिल्ड शार्क जापान में 2007 में दिखाई पड़ी थी. इस मछली को ‘लिविंग फॉसिल’ के नाम से भी जाना जाता है. दो से तीन मीटर लंबी इस मछली के मुंह में 300 धारदार दांत होते हैं.
क्रोकोडायल फिश: सफ़ेद खून वाली बर्फीली मछली, इसमें लाल रक्त कणिकाएं और हीमोग्लोबिन दोनों ही नहीं होते हैं. इनका शरीर अर्ध-पारदर्शी होता है. जिन्दा रहने के लिए इनका शरीर ऑक्सीजन को सीधे पानी से ही सोख लेता है
अम्बर फैंटम तितली: यह तितली ब्राज़ील, इक्वाडोर, पेरू और बोलिविया आदि जगहों में पाई जाती है.
पिस्टल झींगा: दुनिया का सबसे ज्यादा और तेज शोरगुल करने वाला प्राणी है यह पिस्टल झींगा. इसका झुण्ड समुद्र के अंदर इतना शोर करता है कि बाकी की सारी आवाजें दब जाती हैं, और यहां तक कि व्हेल कि आवाज तक इसके सामने धीमी पड जाती है. इसकी वजह से नेवी और मिलिट्री को भी समस्या आ जाती है क्योंकि इनकी आवाज की फ्रीक्वेंसी सोनार की फ्रीक्वेंसी के बराबर हो जाती है. इस वजह से दुश्मन पनडुब्बियां इनके झुण्ड के बीच छुप जाती हैं और सेना इन्हें नहीं देख पाती है.
इनकी एक और खासियत है की ये अपने दुश्मन पर पानी के बलबूले से प्रहार करते है जिसकी गति एक कार की गति के बराबर होती है. जिसके टकराने पर एक बार में ही दुश्मन का काम तमाम हो जाता है और वो इनका भोजन बन जाता है. इसीलिए इसका नाम पिस्टल झींगा रखा गया है.
देखें कैसे यह मछली अपने दुश्मन पर गोली की स्पीड से प्रहार करती है:
लायंस मेन जैलीफिश: यह जेलीफिश दुनिया की सबसे बड़ी जेलीफिश है. ये आर्कटिक महासागर के पानी में डायनासोर से भी पहले से तैर रही हैं. ये दुनिया के सबसे पुराने जीवों में से एक हैं और करीब 65 करोड़ सालों से जिन्दा हैं. इनका सर करीब 8 फ़ीट व्यास के लगभग और सैकड़ों पूँछ होती हैं जो करीब 120 फ़ीट तक लंबी होती हैं. शायद आपको पता हो की जेलीफिश का 94% भाग पानी होता है.
नीले पैरों वाला बूबी: ये कैलिफोर्निया की खाड़ी और मध्य और दक्षिणी अमेरिका के समुद्र तट से पेरू तक पाए जाते हैं. इनके चमकीले नीले पैर मादा को आकर्षित करने का काम करते हैं. मादा को आकर्षित करने के लिए अपने पैरों को दिखाकर नाचते हैं.
कार्डिनल गैंण्डरोमोर्फ: यह पक्षी अपने आप में अनोखा है, इसमें नर और मादा दोनों के ही गुण पाए जाते हैं. अलग – अलग लिंग की वजह से यह पक्षी दो रंगों का होता है.
अमेज़न का दूधिया मेंढक: 2.5 से 4 इंच लंबा यह मेंढक दक्षिणी अमेरिका के अमेज़न के बरसाती जंगलों में पाया जाता है. ये जंगल में पानी के पास नमी वाले स्थानों में पाए जाते हैं. ये क्रोधित होने पर दूधिया रंग का द्रव निकालते हैं इसीलिए इन्हें दूधिया मेंढक कहा जाता है.
देखें विडियो:
कांच का मेंढक: मध्य और दक्षिणी अमेरिका में पाए जाने वाले इन मेंढकों पेट की खाल पूरी तरह पारदर्शी होती है जिससे इनके शरीर के अंदर के सारे अंग दिखाई देते हैं. इनके बाकी के शरीर का रंग हरापन लिए हुए होता है जिससे ये हरी पत्तियों के बीच में आसानी से छुप जाते हैं.
देखें विडियो:
प्रोमकोटेथीज़ सल्कस: यह एक अजूबा प्राणी है, इसके दांत बिलकुल इंसानों के दाँतों की तरह होते हैं. यह जीव आज तक सिर्फ एक बार देखा और पकड़ा गया है. इसे दक्षिणी अटलांटिक महासागर में समुद्र तल से २००० मीटर की गहराई में सन २००७ में देखा गया था.
येती केकड़ा: है तो केकड़ा ही पर देखने में इसके येती जैसे बाल होते हैं. पहली बार यह 2005 में दक्षिणी प्रशांत महासागर में करीर 2200 मीटर की गहराई में खोजा गया था. ये करीब 15 सेंटीमीटर की लंबाई तक बढ़ते हैं.
अलार्म जैलीफिश: इसका नाम इसकी खूबियों को देखते हुए ही रखा गया है. वो खूबी है इनकी प्रतिरक्षा प्रणाली, जब कोई दुश्मन इन पर हमला करता है, तो यह चमकीली रौशनी छोड़ती हैं जिससे इनका दुश्मन भ्रमित हो जाता है और तब तक ये जेलीफिश रफूचक्कर हो जाती है.
नेम्ब्रोथा क्रिस्ताता घोंघा: यह करीब 5 सेंटीमीटर लंबा काले और हरे रंग का होता है. यह देखने में तो सुन्दर होता है लेकिन बड़ा ही दर्द भरा डंक मारता है. ये इसी डंस से अपने दुश्मन जेलीफिश का शिकार करता है.
बिना कवच का समुद्री कछुआ: 900 किलो के वजन वाला यह कछुआ दुनिया का सबसे बड़ा कछुआ होता है. लेकिन इसकी पीठ पर कवच की जगह पर मोटी खाल होती है जिसके नीचे छोटी – छोटी हड्डिया होती हैं. इस खाल की वजह से इसकी पीठ लचकीली होती है और ये बहुत गहराई तक पानी में जा सकता है.
गुलाबी डॉल्फिन पिंकी: इसका नाम पिंकी इसके गुलाबी रंग की वजह से ही पड़ा है. इसे 2007 में लुइसियाना में पहली बार देखा गया था.
हर्मिट केकड़ा:
बैगनी मेंढक: ये मेंढक भारत में केरल के कुछ हिस्सों में पाए जाते हैं.
पत्ते जैसी छिपकली: इसे अंग्रेजी में “सैटेनिक लीफ टेल्ड गेसीको” कहते हैं. ये बिलकुल सूखे पत्ते जैसे रंग की होती है जिसकी वजह से ये अपने दुश्मनों को चकमा देती है. इसकी पूँछ सहित लंबाई 2.5 से 6 इंच तक होती है. ये मेडागास्कर द्वीप पर पायी जाती हैं.