Category: अजब-गजब

  • ये 20 अजूबे जानवर आपने कभी पहले नहीं देखे होंगे

    ये 20 अजूबे जानवर आपने कभी पहले नहीं देखे होंगे

    हम सब ने अपने जीवन में तरह – तरह के जानवर देखे होंगे, उनमे से कई सारे हमें अचंभित भी करते होंगे. लेकिन इस लेख को पढ़ने के बाद आपको लगेगा की इस दुनिया में बहुत कुछ ऐसा है जो आपने अभी तक देखा नहीं है. ये जानवर आपको चिड़ियाघर में देखने को नहीं मिलेंगे.

    Rare Animalsरेड कैप गोल्डफिश: रेड कैप ओरांडा गोल्डफिश के सर का ऊपरी हिस्सा लाल रंग का होता है. यह देखने में ऐसा लगता है जैसे मछली का दिमाग ही बाहर रख दिया गया हो. ये बहुत ही सुन्दर मछली लोगों के एक्वेरियम में  सजावटी मछली के रूप में दिखाई देती है. मूलतः यह मछली चीन की है लेकिन अब यह हर किसी की चाहत है.

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    चलने वाली मेक्सिकन मछली: इसका ऑफिशियल नाम ऑक्सोटोल है और यह मेक्सिको में पाई जाती है. दरअसल यह मछली न होकर एक उभयचर प्राणी है जो पानी में रहता है और जमीन पर चलता है.

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    फ्रिल्ड शार्क: फ्रिल्ड शार्क अटलांटिक और पैसिफिक महासागर के गहरे पानी में पायी जाती है. ये पानी की सतह पर बहुत ही काम दिखाई पड़ती हैं क्योंकि ये गहरे पानी में रहना पसंद करती हैं. एक मरती हुई फ्रिल्ड शार्क जापान में 2007 में दिखाई पड़ी थी. इस मछली को ‘लिविंग फॉसिल’ के नाम से भी जाना जाता है. दो से तीन मीटर लंबी इस मछली के मुंह में 300 धारदार दांत होते हैं.

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    क्रोकोडायल फिश: सफ़ेद खून वाली बर्फीली मछली, इसमें लाल रक्त कणिकाएं और हीमोग्लोबिन दोनों ही नहीं होते हैं. इनका शरीर अर्ध-पारदर्शी होता है. जिन्दा रहने के लिए इनका शरीर ऑक्सीजन को सीधे पानी से ही सोख लेता है

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    अम्बर फैंटम तितली: यह तितली ब्राज़ील, इक्वाडोर, पेरू और बोलिविया आदि जगहों में पाई जाती है.

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    पिस्टल झींगा: दुनिया का सबसे ज्यादा और तेज शोरगुल करने वाला प्राणी है यह पिस्टल झींगा. इसका झुण्ड समुद्र के अंदर इतना शोर करता है कि बाकी की सारी आवाजें दब जाती हैं, और यहां तक कि व्हेल कि आवाज तक इसके सामने धीमी पड जाती है. इसकी वजह से नेवी और मिलिट्री को भी समस्या आ जाती है क्योंकि इनकी आवाज की फ्रीक्वेंसी सोनार की फ्रीक्वेंसी के बराबर हो जाती है. इस वजह से दुश्मन पनडुब्बियां इनके झुण्ड के बीच छुप जाती हैं और सेना इन्हें नहीं देख पाती है.

     

    इनकी एक और खासियत है की ये अपने दुश्मन पर पानी के बलबूले से प्रहार करते है जिसकी गति एक कार की गति के बराबर होती है. जिसके टकराने पर एक बार में ही दुश्मन का काम तमाम हो जाता है और वो इनका भोजन बन जाता है. इसीलिए इसका नाम पिस्टल झींगा रखा गया है.

     

    देखें कैसे यह मछली अपने दुश्मन पर गोली की स्पीड से प्रहार करती है:  

    https://www.youtube.com/watch?v=eKPrGxB1Kzc

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    लायंस मेन जैलीफिश: यह जेलीफिश दुनिया की सबसे बड़ी जेलीफिश है. ये आर्कटिक महासागर के पानी में डायनासोर से भी पहले से तैर रही हैं. ये दुनिया के सबसे पुराने जीवों में से एक हैं और करीब 65 करोड़ सालों से जिन्दा हैं. इनका सर करीब 8 फ़ीट व्यास के लगभग और सैकड़ों पूँछ होती हैं जो करीब 120 फ़ीट तक लंबी होती हैं. शायद आपको पता हो की जेलीफिश का 94% भाग पानी होता है.

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    नीले पैरों वाला बूबी: ये कैलिफोर्निया की खाड़ी और मध्य और दक्षिणी अमेरिका के समुद्र तट से पेरू तक पाए जाते हैं. इनके चमकीले नीले पैर मादा को आकर्षित करने का काम करते हैं. मादा को आकर्षित करने के लिए अपने पैरों को दिखाकर नाचते हैं.

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    कार्डिनल गैंण्डरोमोर्फ: यह पक्षी अपने आप में अनोखा है, इसमें नर और मादा दोनों के ही गुण पाए जाते हैं. अलग – अलग लिंग की वजह से यह पक्षी दो रंगों का होता है.

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    अमेज़न का दूधिया मेंढक: 2.5 से 4 इंच लंबा यह मेंढक दक्षिणी अमेरिका के अमेज़न के बरसाती जंगलों में पाया जाता है. ये जंगल में पानी के पास नमी वाले स्थानों में पाए जाते हैं. ये क्रोधित होने पर दूधिया रंग का द्रव निकालते हैं इसीलिए इन्हें दूधिया मेंढक कहा जाता है.

    देखें विडियो: 

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    कांच का मेंढक: मध्य और दक्षिणी अमेरिका में पाए जाने वाले इन मेंढकों पेट की खाल पूरी तरह पारदर्शी होती है जिससे इनके शरीर के अंदर के सारे अंग दिखाई देते हैं. इनके बाकी के शरीर का रंग हरापन लिए हुए होता है जिससे ये हरी पत्तियों के बीच में आसानी से छुप जाते हैं.

    देखें विडियो: 

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    प्रोमकोटेथीज़ सल्कस: यह एक अजूबा प्राणी है, इसके दांत बिलकुल इंसानों के दाँतों की तरह होते हैं. यह जीव आज तक सिर्फ एक बार देखा और पकड़ा गया है. इसे दक्षिणी अटलांटिक महासागर में समुद्र तल से २००० मीटर की गहराई में सन २००७ में देखा गया था.

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    येती केकड़ा: है तो केकड़ा ही पर देखने में इसके येती जैसे बाल होते हैं. पहली बार यह 2005 में दक्षिणी प्रशांत महासागर में करीर 2200 मीटर की गहराई में खोजा गया था. ये करीब 15 सेंटीमीटर की लंबाई तक बढ़ते हैं.

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    अलार्म जैलीफिश: इसका नाम इसकी खूबियों को देखते हुए ही रखा गया है. वो खूबी है इनकी प्रतिरक्षा प्रणाली, जब कोई दुश्मन इन पर हमला करता है, तो यह चमकीली रौशनी छोड़ती हैं जिससे इनका दुश्मन भ्रमित हो जाता है और तब तक ये जेलीफिश रफूचक्कर हो जाती है.

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    नेम्ब्रोथा क्रिस्ताता घोंघा: यह करीब 5 सेंटीमीटर लंबा काले और हरे रंग का होता है. यह देखने में तो सुन्दर होता है लेकिन बड़ा ही दर्द भरा डंक मारता है. ये इसी डंस से अपने दुश्मन जेलीफिश का शिकार करता है.

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    बिना कवच का समुद्री कछुआ: 900 किलो के वजन वाला यह कछुआ दुनिया का सबसे बड़ा कछुआ होता है. लेकिन इसकी पीठ पर कवच की जगह पर मोटी खाल होती है जिसके नीचे छोटी – छोटी हड्डिया होती हैं. इस खाल की वजह से इसकी पीठ लचकीली होती है और ये बहुत गहराई तक पानी में जा सकता है.

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    गुलाबी डॉल्फिन पिंकी: इसका नाम पिंकी इसके गुलाबी रंग की वजह से ही पड़ा है. इसे 2007 में लुइसियाना में पहली बार देखा गया था.

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    हर्मिट केकड़ा:  

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    बैगनी मेंढक: ये मेंढक भारत में केरल के कुछ हिस्सों में पाए जाते हैं.

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    पत्ते जैसी छिपकली: इसे अंग्रेजी में “सैटेनिक लीफ टेल्ड गेसीको” कहते हैं. ये बिलकुल सूखे पत्ते जैसे रंग की होती है जिसकी वजह से ये अपने दुश्मनों को चकमा देती है. इसकी पूँछ सहित लंबाई 2.5 से 6 इंच तक होती है. ये मेडागास्कर द्वीप पर पायी जाती हैं.

    फोटो साभार: http://www.talesmaze.com/32-stunning-photos-of-animal-you-probably-never-seen-before/

  • पदक के ख्वाब मत देखो, हमें पदक नहीं चाहिए – हमें रोजी-रोटी में उलझाये रखो

    पदक के ख्वाब मत देखो, हमें पदक नहीं चाहिए – हमें रोजी-रोटी में उलझाये रखो

    दो खुशखबरी:

    पहले साक्षी ने कांस्य जीत फिर सिंधु ने रजत, इसके बाद हुई इनामों की बौछार, कितना? ये सोच कर अचम्भा होता है, कोई 5 करोड़ दे रहा है तो कोई 2 करोड़, कोई BMW दे रहा है तो कोई 1000 गज का प्लाट, और साथ में सरकारी नौकरी.

    खैर ये अच्छी बात है जिसने देश का नाम रोशन किया हो उन्हें इनाम तो मिलना ही चाहिए.

    दो बुरी खबरें:

    ओपी जायशा – रियो ओलम्पिक में 42.195 किलोमीटर की मैराथन में कोई पानी देने वाला तक नहीं, 2 घंटे 47.19 सेकंड में रेस ख़त्म करने के बाद बेहोश होकर गिरी. 7 बोतल ग्लूकोज चढाने के बाद होश आया.

    क्या ऐसे ही पदक उम्मीद करेगा भारत?

    Olympic Medals in India

    फोटो साभार: http://www.dnaindia.com/

    पूजा कुमारी – पटियाला में राष्ट्रीय स्तर की खिलाड़ी पूजा कुमारी ने गरीबी से तंग आकर ख़ुदकुशी कर ली. और अब इस खबर पर लीपापोती होगी, कुछ पैसे दिए जाएंगे और मामला ख़तम. सब कुछ पुराने ढर्रे पर. लेकिन राष्ट्रीय स्तर की खिलाड़ी को सरकारी मदद तो छोड़िये पढ़ने के लिए होस्टल तक नहीं मिला, प्राइवेट कमरा लेने में असमर्थ वो रोज किराया खर्च कर कॉलेज भी नहीं आ सकती थी. क्या सोचकर उसने फांसी लगाई होगी?

    अब जरा गौर फरमाइए यही रकम अगर खिलाड़ियों को तैयार करने में लगाईं जाती तो शायद नजारा कुछ और होता. खर्च मिल जाता तो पूजा शायद राष्ट्रीय से अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी बन जाती और शायद इस १३० करोड़ की आबादी वाले देश में हजारों ओलम्पिक खिलाड़ी ऐसे मिल जाते जो पक्का पदकों के अम्बार लगा देते.

    जरा नजर डालते हैं कौन सा देश अपने खिलाड़ियों पर कितना खर्च करते हैं:

    अमेरिका: खर्च (एक खिलाड़ी पर): 74 करोड़, पदक जीतने पर इनाम: 16 लाख

    ब्रिटेन: खर्च (एक खिलाड़ी पर): 48 करोड़, पदक जीतने पर इनाम: कुछ नहीं

    चीन: खर्च (एक खिलाड़ी पर): 47 करोड़, पदक जीतने पर इनाम: 24 लाख

    भारत: खर्च (सभी 118 खिलाड़ियों पर): 160 करोड़, पदक जीतने पर इनाम: 75 लाख – स्वर्ण पर, 50 लाख – रजत पर, 30 लाख – कांस्य पर

    इसके अलावा प्रदेश सरकारें, स्वयंसेवी संगठन और अमीर माननीय अपने स्टार से करोड़ों रुपये पदक जीतने के बाद देते हैं.

    सच्चाई: भारत में बहुत सारे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी गरीबी में जी रहे हैं.

    आशा रॉय – एक समय का खाना भी नसीब नहीं.

    सीता साहू – गोलगप्पे बेंच रही है.

    Olympic Medals in India

    फोटो साभार: http://indiatoday.intoday.in/

    शांति देवी – सब्जियां बेंच रही है.

    Olympic Medals in India

    फोटो साभार: http://indiatoday.intoday.in/

    शांति – मैडल जीतने के बाद लिंग परीक्षण में फेल – एक नौकरी तक नहीं.

    निशा रानी दत्त – घर चलाने के बोझ की वजह से तीरंदाजी छोड़ी.

    Olympic Medals in India

    फोटो साभार: http://indiatoday.intoday.in/

    नौरी मुंडू – कई राष्ट्रीय मैडल जीतने वाली आज घर चलाने के लिए बच्चों को पढ़ा रही है.

    Olympic Medals in India

    फोटो साभार: http://indiatoday.intoday.in/

    रश्मिता पात्रा – फुटबॉल अंडर-16 में मैडल जीतने वाली गरीबी की वजह से छोटी सी सुपारी की दूकान चला रही है.

    माखन सिंह – मिल्खा सिंह को हारने वाले माखन सिंह पैर टूटने के बाद गरीबी में मर गए.

    खासबा दादासाहेब जाधव – 1952 के ओलम्पिक में कोई खर्च नहीं मिला. अपना घर-बार बेंच कर ओलम्पिक में गए और कांस्य जीता.

    सरवन सिंह – 1954 के एसियान गेम्स में स्वर्ण जीतने वाले, टैक्सी चलाते रहे और अपना स्वर्ण पदक पैसों की कमी की वजह से बेंच.

    मुरलीकांत पेटकर – पैरालिम्पिक्स 1972 में स्वर्ण जीता. लेकिन भारत में 1984 के बाद से रिकार्ड करना शुरू किया गया था इसलिए पेटकर का पदक सरकार के रिकार्ड में नहीं है.

    देवेंद्र झाझरिया (विकलांग-एक हाथ नहीं) – पेटकर के बाद दूसरा भारतीय जिसने पैरालिम्पिक्स 2004 में स्वर्ण जीता, पद्म श्री से सम्मानित, लेकिन शायद ही कोई इन्हें जानता हो.

    Olympic Medals in India

    फोटो साभार: http://www.news18.com

    शंकर लक्ष्मण – 2 ओलम्पिक स्वर्ण विजेता भुखमरी में मर गए.

    बुधिया सिंह – उम्र 4 साल में 65 किलोमीटर की दूरी 7 घंटे में नापने वाले बुधिया सिंह दौड़ छोड़कर आज पढ़ाई कर रहे हैं.

    Olympic Medals in India

    फोटो साभार: http://www.newsnation.in

    ये लिस्ट बहुत लंबी है. लेकिन इसमें दोष किसका.

    इस देश में खिलाड़ी अपने दम पर तैयार होते है. फटे जूते, टूटा धनुष लेकर तैयारी करते खिलाड़ियों को भी रोना आता होगा.

    बस इस देश के लोगों को मैडल चाहिए, अगर न भी मिले तो कोई बात नहीं.
    सड़क के किनारे खेल दिखाने वाले, ट्रेन में जिम्नास्ट की कलाकारी करते छोटे छोटे बच्चे, सोचने पर मजबूर कर देते हैं, क्या 130 करोड़ के भारत में प्रतिभाओं की कमी है…

  • इस पेड़ के नीचे खड़े होने से आपकी मौत भी हो सकती है, जाने क्या है इस पेड़ की खासियत

    इस पेड़ के नीचे खड़े होने से आपकी मौत भी हो सकती है, जाने क्या है इस पेड़ की खासियत

    प्रकृति के खेल निराले हैं, हरे भरे पेड़ जितने सुन्दर दिखते हैं वहीँ मंचीनील (Hippomane mancinella) नाम का पेड़ इतना खतरनाक है की आप की जान भी जा सकती है. इस पेड़ के फल खाने से आप गम्भीर रूप से बीमार हो सकते हैं और इस पेड़ से निकले तरल रस जो तेज़ाब जितना खतरनाक है, आप गम्भीर रूप से घायल हो सकते हैं.

     

    यही नहीं अगर आप इस पेड़ के नीचे ज्यादा देर तक खड़े रहें तो आप की जान भी जा सकती है.

    पुराने जमाने में आदिवासी लोग इस पेड़ के जहर का उपयोग तीर/बाण में करते थे.

    ये पेड़ करीब 15 मीटर तक लम्बा होता है और पत्तियों से देखने में सेब के पेड़ की तरह लगता है. इससे निकलने वाला दूधिया रस इतना खतरनाक है की बारिस में इसके नीचे खड़े होने पर भी ये आपको नुकसान पहुंचा सकता है. ये इतना खतरनाक है की अगर इसके नीचे कोई कार भी खड़ी हो तो उसका पेंट भी धुल जाता है. इस पेड़ की लकड़ी जलना भी उतना ही खतरनाक है, क्यूंकि इस पेड़ को जलाने पर निकलने वाले धुएं में बहुत साड़ी जहरीली गैसें होती हैं.

    इस पेड़ पर लगने वाले फल वैसे तो देखने में बहुत ही सुन्दर लगते हैं पर होते उससे भी ज्यादा हानिकारक. इसके फल को खाने से आपको पेट की कई बीमारियां हो सकती हैं. फल खाने में तो मीठा होता है पर इससे पेट के अंदर खून भी आ सकता है.

     

    इतना खतरनाक होने के बावजूद इस पेड़ से कई उपयोगी चीजें बनती है. इसकी लकड़ी, गोंद और फलों से जहरीले तत्वों को निकालकर कई दवाएं भी बनाई जाती हैं.

  • इस रेस्टोरेंट में परोसा जा रहा था इंसानों का मांस, पुलिस ने कराया बंद

    इस रेस्टोरेंट में परोसा जा रहा था इंसानों का मांस, पुलिस ने कराया बंद

    हैवानियत की भी हद है, इस दुनिया में कैसे कैसे लोग होते हैं. इस रेस्टोरेंट में लोग इंसानी मांस खाते थे लेकिन ये बात उन्हें भी पता नहीं थी. जब पुलिस को ये हैवानियत पता चली तो तुरंत ही इस रेस्टोरेंट को बंद करा दिया गया.

     

    नाइजीरिया के दक्षिण-पूर्वी प्रांत अनमबरा में चलने वाले इस होटल के बारे में स्थानीय लोगों को कुछ अजीब लगा तो उन्होंने पुलिस को इसकी सूचना दी. पुलिस ने जब रेस्टोरेंट में छापा मारा तो उन्हें वहाँ पर खून और प्लास्टिक में लिपटी हुई इंसानी खोपड़ियां मिलीं. ये लोग वहाँ आने वाले ग्राहकों को ही अपना शिकार बना लेते थे.

     

    पुलिस ने वहाँ से दस लोगों को गिरफ्तार किया है. साथ ही ऑटोमैटिक बन्दूक और बम भी बरामद हुए हैं.

    दरअसल इस रेस्टोरेंट में कहना खाने गए पादरी को जब अनुमान से काफी कम बिल आया तो उन्हें शक हुआ, इस बाबत पूंछने पर वहाँ के कर्मचारी ने बताया की उन्हें केवल मांस का एक छोटा सा टुकड़ा दिया गया था इसीलिए बिल कम आया है. लेकिन उन्हें नहीं पता था की उन्हें इंसानी मांस परोसा गया था.

    https://www.youtube.com/watch?v=KzNNodMxL_0

  • ये ट्रक वाले भी ना, क्या क्या लिखते हैं

    ये ट्रक वाले भी ना, क्या क्या लिखते हैं

    हमारे देश में ट्रकों पर बहुत सारे सदविचार लिखे हुए मिल जाते हैं, लेकिन कभी कभी ये इतने फनी भी हो  जाते हैं की हंसने को दिल करता है.

     

    आती क्या खंडाला, क्या बात है…. ये ट्रक वाला भी शायद आमिर खान और रानी मुखर्जी का बड़ा वाला भक्त है.

    Funny Truck Writings and Slogans in India

    सही है, ये गाडी तो ईराक के पानी से ही चलेगी.

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    हे भगवान्! ये तो हम सबकी जलाने में लगा है.

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    पर आप ने तो दिल्ली में कांग्रेस और भाजपा की बैंड बजा दी. अब क्या कहेंगे.

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    ये हिन्दुस्तानियों ने अंग्रेजी का क्या हाल बन दिया. अंग्रेज भी शरमा जाएंगे.

    Funny Truck Writings and Slogans in India

    ये है असल हिंदुस्तानी. अपना घर अपना देश सबसे महान. हम तो लखनऊ को भी लन्दन से कम नहीं समझते हैं.

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    गाडी चलाने वाले की दिल की दास्ताँ. सही में बेचारा घर से बेघर हो जाता है. महीनो में घर का चक्कर लग पाता है. बड़ी कठिन जिंदगी है इन ट्रक वालों की भी.

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    किसके इन्तजार में है ये कुंवारा स्टाफ.

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    ये पढ़ लो अंग्रेजी. समझ में आ गयी तो अच्छा है नहीं तो कोई बात नहीं. बेचारा अंग्रेज तो अपना सिर पीट लेगा. और हम हिन्दुस्तानी कुछ मुस्कराएंगे.

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    जिंदगी की हकीकत से वाकिफ है ये ट्रक वाला. अगर गर्लफ्रेंड होती तो पूरी कमाई उसके खर्चे उठने में ही चली जाती.

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    हंस मत पगली प्यार हो जाएगा.. सही कह रहा है.

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    क्या बात है… लेकिन कुछ लोग मानते कहाँ हैं, खुद तो हरिद्वार पहुँचते ही हैं और दूसरों को भी पहुंचा देते हैं.

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    इससे तो दूर ही रहो. कहीं पीछे पड़ गयी तो सुनामी की तरह ही ले डूबेगी.

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    हॉर्न धीरे से बजाएं, नहीं तो ऑन्टी पुलिस बुला लेगी…

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    ओह माई गॉड!! हम तो हम, अंग्रेज भी शरमा जाएंगे इस अंग्रेजी पर.

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    “बुरी नजर वाले तेरा मुंह काला” तो हमने भी सुना था, पर ये तो एकदम नया है.

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    Source: http://navbharattimes.indiatimes.com/

  • क्या आपने भारत की आखिरी चाय की दूकान देखी है?

    क्या आपने भारत की आखिरी चाय की दूकान देखी है?

    उत्तराखंड के चमोली जिले में भारत-तिब्बत की सीमा से लगभग 24 किलोमीटर दूर एक गांव में भारत की अंतिम चाय की दूकान है. दरअसल यह गाँव ही भारत का अंतिम गाँव है. या यूँ कहें उधर से आने वालों के लिए यह भारत का पहला गाँव है और चाय की यह पहली दूकान है.

    Last Tea Shop of India

    देश के अंतिम गांव का असली नाम ‘माणा’ है जो बद्रीनाथ धाम से 3 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है.

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    इस अंतिम चाय की दुकान के पास ही वेदव्यास की गुफाएं है। कहते हैं कि इन्हीं गुफाओं में वेदव्यास ने महाकाव्य ‘महाभारत’ रचा था।

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    इस दुकान का नाम यहां भारत की 10 भाषाओं में लिखा है ताकि यहां से गुजरने वाले ज्यादातर लोग इस दुकान को पहचान सकें.

    Last Tea Shop of India

    लो जी , भारत की सबसे बड़ी बैंक, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने भी इस दुकान को देश की अंतिम चाय की दुकान होने का सर्टिफिकेट दे दिया है.

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    तो एक फोटो तो जरूर बनता  है।

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    Source: http://navbharattimes.indiatimes.com/photomazza/weird-world/at-tibet-border-you-will-find-indias-last-tea-shop/Indias-last-tea-shop/photomazaashow/51672636.cms