भारत का पहला रेलयात्री- भारत में रेलगाड़ी में बैठने वाला पहला व्यक्ति !
हालाँकि सन 1858 से पहले कई भारतियों ने अपनी इंग्लैंड यात्रा के समय रेलयात्रा की होगी, जैसे कि राजा राममोहन राय सन 1930 में इंग्लैंड गये थे मगर यहाँ हम बात कर रहें है कि भारत में रेल में बैठने वाले पहले भारतीय कौन थे।
तो पहले भारतीय कौन हो सकते है ?
रेलयात्री ने इतिहास के पृष्ठों में गहरी पड़ताल कर पाया:
भारत में पहली यात्री रेल 17 अप्रैल 1853 को बोरीबंदर (मुम्बई का हिस्सा) से ठाणे के बीच चली थी (ठाणे को ब्रिटिशों द्वारा तानाह के नाम से पुकारा जाता था)।
हमें विश्वास हैं कि मुम्बई और ठाणे के बीच चली पहली रेल में कई लोग बैठे थे। उन्हीं में से एक जाने-माने व्यक्ति थे- जगन्नाथ शंकरसेठ- एक समृद्ध परोपकारी जो जमशेदजी जीजाभाई के साथ- भारत में रेलवे निर्माण की दिशा में पर्याप्त राशि दान कर चुके थे।
जगन्नाथ सेठ को विशाल भारतीय प्रायद्वीप रेल (भारतीय मध्य रेलवे) का निर्देशक होने के नाते पहली भारतीय रेल में यात्रा का अधिकार अर्जित था। पहली रेल संचालन की प्रेस रिपोर्ट में भी श्री जगन्नाथ शंकरसेठ का नाम अतिथि यात्रियों में उल्लेखित है जबकि श्री जमशेदजी जीजाभाई का नाम उस प्रेस रिपोर्ट में अंकित नहीं है।
ऐसे ही रोचक तथ्यों की जानकारी के लिए हमारे संग बने रहें !
ब्रह्माण्ड का केंद्र, जैसा कि लोग कहते हैं, डाउनटाउन तुल्सा, ओक्लाहोमा,अमेरिका में एक छोटी सी कंक्रीट की वृत्ताकार जगह है जिसके चारो तरफ ईंटें बिछी हैं. वैसे तो इस जगह पर देखने लायक कुछ भी नहीं है, लेकिन हमें वहाँ देखने की जरूरत भी नहीं है.
यही तो पॉइंट की बात है.
दरअसल “Center of the Universe” यानी “ब्रह्माण्ड का केंद्र” एक रहस्यमय ध्वनिक घटना है जिसे कम ही लोग जानते हैं. अगर आप कंक्रीट के गोले के बीच में खड़े होकर कुछ भी बोलते हैं तो वह ध्वनि वापस प्रतिध्वनि या गूँज के रूप में कई बार सुनाई पड़ेगी और जितना तेज आपने बोला है उससे भी तेज. यह एक तरह से आपका एम्पलीफायर ईको चैंबर होगा जिसमे आप अपनी प्रतिध्वनि तो सुनते हैं लेकिन उस कंक्रीट के गोले से बाहर खड़े लोग आपकी कोई भी आवाज नहीं सुन पाएंगे और अगर कुछ सुनाई भी पड़ता है तो वो टूटी-फूटी आवाज होती है. इस छोटे से गोले के अंदर लाउडस्पीकर भी अपनी प्रतिध्वनि से फट सकता है लेकिन गोले से बाहर के लोगों को न के बराबर सुनाई देगा.
है न आश्चर्यजनक.
यहाँ पर भौतिकी के नियम काम नहीं करते हैं. बिलकुल साफ़ खुली हुई जगह में खड़े होकर भी आप एक साउंडप्रूफ कमरे में बंद होते हैं. कुछ लोगों ने इस पर रिसर्च भी की है लेकिन कोई ठोस वजह नहीं बता पाए.
तांबे के बर्तन में पानी पीना बहुत ही स्वास्थ्यप्रद है क्यूंकि यह शरीर में तांबे की कमी को पूरा करता है. तांबे के बर्तन में रखा पानी पूरी तरह शुद्ध माना गया है और यह कई तरह की बीमारियों के कीटाणुओं को नष्ट कर देता है.
यह पानी कैंसररोधी तत्वों से भरपूर होता है. रोजाना यह पानी उपयोग करने से पेट की कई समस्याओं से निजात मिल सकती है. तांबे के बर्तन में रखा पानी पीने से किडनी और लिवर स्वास्थ्य रहते हैं.
तांबे के बर्तन में पानी को 16 घंटे तक रखने के बाद आश्चर्यजनकरूप से बैक्टीरिया ख़त्म हो जाते हैं.
तांबे या पीतल के बर्तन कीमत में अधिक होने साथ इनका सावधानीपूर्वक रखरखाव किया जाता है. ताम्बा या पीतल पानी के साथ रासायनिक क्रिया करते हैं जो इसका औषधीय गुण है लेकिन इसी वजह से इनका रंग काला पड जाता है.
हमारे घरों में आजकल स्टील के बर्तन ही मिलते हैं क्यूंकि इनको साफ़ करना आसान होता है और ये तांबे और पीतल से ज्यादा चमकदार होने के साथ ही सस्ते होते हैं. लेकिन कुछ दशक पहले तक घरों में ताम्बा और पीतल के बर्तन आम बात हुआ करती थी. किन्तु सफाई में असुविधा की वजह से ये बर्तन रोजमर्रा के उपयोग से दूर होते चले गए.
ताम्बा शुद्ध धातु है जबकि पीतल ताम्बा (70%) और जस्ता (30%) की मिश्र धातु है. ये बर्तन वातावरण की नमी को सोख कर ऑक्सीडेशन कर लेते हैं और इन पर काले हरे रंग परत जैम जाती है. ये अम्लधर्मी होने के कारण साबुन या डिटर्जेंट से साफ़ करने के बाद फिर से काले पड जाते हैं. इन बर्तनो को धोकर कपडे से अच्छी तरह पोंछ कर सुखना चाहिए. इससे बर्तनों पर चमक अधिक दिन तक बनी रहती है.
इन कमियों की वजह से ही तांबे और पीतल के बर्तनो का उपयोग काम होता गया लेकि अब लोगों में इनके औषधीय गुणों की जानकारी होने से फिर से लोग इनका उपयोग शुरू कर रहे हैं.
हम सबने अभी तक मानव सभ्यताओं के बारे में पढ़ा है, जैसे पुरापाषाण युग, नवपाषाण युग, ताम्र पाषाण युग, कांस्य युग और सिंधु घाटी सभ्यता आदि आदि… अब इन सभ्यताओं के विकास के क्रम में बांटा गया है जैसे वो क्या खाते थे, क्या पहनते थे, कैसे रहते थे आदि.. यही मानव के विकास का क्रम था.. मानव विकास में आज हम आधुनिकतम हैं क्यूंकि हम अपने से पिछली पीढ़ी के मुकाबले बहुत सारी खोज कर चुके हैं, रहने-खाने के नए जुगाड़ ढूंढ चुके हैं. मानव चन्द्रमा पर कदम रख चुके हैं और मंगल ग्रह पर पहुंचने की तैयारी है. मानव निर्मित अंतरिक्ष यान सौर मंडल की परिधि को पार कर ब्रह्माण्ड के रहस्यों को खोजने आगे बढ़ चुका है. मानव ने ऊर्जा प्राप्त करने के नए तरीके ढूंढें जैसे पेट्रोलियम, सौर ऊर्जा,पवन ऊर्जा और परमाणु ऊर्जा. ये है मानव के विकास का क्रम. और भविष्य में मानव और कितना विकास करेगा इसके बारे में बहुत सी परिकल्पनाएं हैं.
लेकिन अगर हम मानव विकास के क्रम को छोड़ सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में विकास की बात करें तो….. तो इसके लिए हमारे वैज्ञानिकों ने बहुत सारी रिसर्च की. इसमें से एक रिसर्च है वैज्ञानिक कार्दाशेव की. इन्होने सभ्यता को मापने के लिए एक पैमाना तैयार किया है, आइये जानते हैं कार्दाशेव और उनकी थ्योरी के बारे में.
क्या है कार्दाशेव पैमाना:
कार्दाशेव स्केल सभ्यता मापने का पैमाना है जो तकनीकी उन्नति के आधार पर है. सोवियत संघ के अंतरिक्ष वैज्ञानिक कार्दाशेव ने 1964 में यह परिकल्पना पेश की जो ऊर्जा के खपत और उत्पादन के आधार पर है. यह स्केल हाइपोथेटिकल (काल्पनिक, Log) है और ब्रह्माण्ड में ऊर्जा की खपत के आधार हमें यह जानकारी प्रदान करती है की हम किस श्रेणी की सभ्यता में जी रहे हैं.
सभ्यता के प्रकार:
ग्रहीय सभ्यता:
यह प्रथम प्रकार की सभ्यता है जो अपने ग्रह की हर तरह की ऊर्जा का दोहन करने में सक्षम है. ये अपने ग्रह के सम्पूर्ण प्राकृतिक ऊर्जा श्रोतो को कंट्रोल करते हैं जैसे, ज्वालामुखी, भूकंप, तूफ़ान आदि. ये अपने पडोसी तारे/सूर्य से भी कुछ ऊर्जा ग्रहण करने और संग्रह करने में सक्षम हैं.
अन्तर्ग्रहीय सभ्यता:
दूसरे प्रकार की यह सभ्यता अपने सूर्य या तारे की सम्पूर्ण ऊर्जा का उपयोग करने में सक्षम है. ये बहुत बड़े स्ट्रक्चर जैसे Dyson Sphere से अपने सूर्य को घेर कर उसकी सम्पूर्ण ऊर्जा उत्सर्जन का उपयोग कर लेते हैं. यह उसी प्रकार है जैसे हम सौर ऊर्जा का कुछ हिस्सा सोलर प्लेट के जरिये उपयोग में लाते हैं. ये अपने सूर्य की फ्यूज़न एनर्जी की निगरानी करते हैं. इस तरह की सभ्यता बहुत सारे ग्रहों का अधिग्रहण करने में सक्षम है. उनके पास ऊर्जा का इतना भण्डार है की इन्हे निकट भविष्य में ऊर्जा की कमी का कोई खतरा नहीं है. बिलकुल वैसे ही जैसे हमारी पृथ्वी पर पेट्रोलियम और कोयले के निकट भविष्य में ख़त्म होने का खतरा मंडरा रहा है और हमें सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा के दोहन करने के लिए नए तरीकों की खोज करने की जरूरत पड़ रही है.
उदहारण के लिए हॉलीवुड फिल्म “स्टार वार्स, स्टार ट्रेक की सीरीज” और “मास इफ़ेक्ट” देखें.
अंतरसौरमण्डलीय सभ्यता:
तीसरे प्रकार की सभ्यता के लोग एक सौरमंडल से दूसरे सौरमंडल अर्थात अपने आकाश गंगा की यात्रा कर सकने में सक्षम हैं. ये एक तारे से लेकर दूसरे तारे तक ऊर्जा संग्रहीत करते हैं और दूसरे सौरमंडल के ग्रहों पर अपनी कालोनियां बनाते हैं. ये सिर्फ जीव नहीं होते हैं बल्कि साइबोर्ग (आधे जीव और आधे रोबोट) होते हैं जो सभ्यता के मामले में बहुत ही अत्याधुनिक हैं. उनकी तुलना में अभी हम बहुत ही पिछड़े हैं.
ये साइबोर्ग अपने जैसे साइबोर्ग बना सकते हैं और एक गैलेक्सी में एक ग्रह से दूसरे ग्रह पर कब्ज़ा करके अपनी कालोनियां बढ़ाते हैं.
तीसरे प्रकार से भी उन्नत सभ्यता:
कार्दाशेव के अनुसार चौथे प्रकार की सभ्यता तीसरे प्रकार की सभ्यता से भी बहुत ज्यादा आधुनिक है इसलिए उन्होंने चौथे प्रकार की सभ्यता के बारे में कुछ नहीं बताया. लेकिन कुछ वैज्ञानिकों जैसे, मिशिओ काकू, रोबर्ट जुबरिन और कार्ल सागन ने चौथे प्रकार की सभ्यता को इस स्केल में जोड़ा है जो इस प्रकार हैं.
अंतर आकाशगंगीय सभ्यता:
यह अत्यंत ही उन्नत सभ्यता है और यह अपनी आकाशगंगा की सम्पूर्ण ऊर्जा का उपयोग करते हैं. इतने उन्नत प्रकार के जीव हो सकता है किसी बहुत ही बड़े ब्लैक होल में रहते हों और हो सकता है वो स्पेस -टाइम को कंट्रोल कर सकते हों.
इस प्रकार के जीव हमारी सोच से परे हैं. ये बहुत सारी आकाश गंगाओं की सम्पूर्ण ऊर्जा का उपयोग करते हैं और ये इतनी उन्नत सभ्यता के हैं की गैलेक्सी की गति, स्पेस-टाइम आदि को अपने अनुसार प्रभावित कर सकते हैं. इन्हें हम भगवान मान सकते हैं
हम इस स्केल पर कहाँ हैं:
इस स्केल पर इतने विकसित सभ्यताएं हैं की उनके आगे हम कहीं नहीं टिकते हैं. अभी हम इस स्केल पर शून्य से भी नीचे हैं. अभी हम अपने सूर्य की पृथ्वी पर आने वाली कुल ऊर्जा का हजारवां हिस्सा भी उपयोग में नहीं ला पा रहे हैं और अभी भी हम पेड़-पौधों और जानवरों की ऊर्जा पर निर्भर हैं. अभी भी हम पृथ्वी के प्राकृतिक ऊर्जा श्रोतों जैसे पेट्रोलियम और कोयले पर निर्भर हैं. हो सकता है अभी हमें प्रथम प्रकार की सभ्यता तक पहुंचने में 100 से 200 साल तक का समय लग जाए ये फिर इससे भी ज्यादा.
पिछले कुछ महीनों में भारतीय सेना ने अपने जवानों द्वारा इंस्टेंट मेसेजिंग ऐप्स के इस्तेमाल को लेकर एक और एडवाइज़री जारी की है। मिनिस्ट्री ऑफ डिफेंस ने एक बयान में कहा, ‘विश्वसनीय सूत्रों के मुताबिक, चीनी डिवेलपर्स द्वारा बनाए गए कई ऐंड्रॉयड/आईओेस ऐप्स के कथित तौर पर जासूसी करने और मैलेशियस वेयर होने का पता चला है। हमारे सैनिकों द्वारा इन ऐप्स के इस्तेमाल से डेटा की सुरक्षा संबंधी समस्या हो सकती है।’ जानें इन 42 चीनी ऐप्स के नाम:
एक महान योद्धा और पारंगत धर्नुधर होने के बावजूद, भीलपुत्र एकलव्य महाभारत का एक भूला-बिसरा अध्याय बनकर रह गया। महाभारत की गाथा बेहद व्यापक है। अनेक घटनाएं और पात्रों की वजह से बहुत से ऐसे चरित्र भी हैं, इतिहास ने जिन्हें नजरअंदाज कर दिया है। इन्हीं चरित्रों में से एक है एकलव्य। एकलव्य की कहानी बेहद मार्मिक है, महाभारत की कहानी में जिन्हें सदाचारी और हमेशा धर्म की राह पर चलने वाला दिखाया गया है, दरअसल एकलव्य के जीवन में वही लोग सबसे अधिक क्रूर साबित हुए।
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महाभारत के नायक
द्रोणाचार्य के महान शिष्य महाभारत की कहानी के नायक रहे अर्जुन को सबसे बेहतरीन और अचूक धनुर्धर माना जाता है। लेकिन एकलव्य के सामने अर्जुन के तीर भी अपना निशाना नहीं पहचान पाते थे। एकलव्य की यही काबीलियत उसके लिए सबसे बड़ी दुश्मन साबित हुई।
जीवनगाथा
एकलव्य की जीवन गाथा पर गौर करें तो वह बेहद मार्मिक है। वह एक भीलपुत्र था और जंगल में अपने पिता के साथ रहता था। उसके पिता हिरण्यधनु उसे यही सीख देते थे कि उसे अपने जीवन में आगे बढ़ना चाहिए।
शिकारी का बेटा
शिकारी का बेटा होने की वजह से एकलव्य को धनुष-बाण से बहुत प्रेम था। बचपन से ही वह एक बेहतरीन धनुर्धर बनने का ख्वाब देखता था। एक दिन बालक एकलव्य बांस के बने धनुष पर बांस का ही तीर चढ़ाकर निशाना लगा रहा था कि पुलक मुनि की नजर उस पर पड़ी।
पुलक मुनि का आगमन
पुलक मुनि एकलव्य का आत्मविश्वास देखकर भौचक्के रह गए और एकलव्य से कहा कि वह उन्हें अपने पिता के पास ले चले। मुनि की बात मानकर एकलव्य उन्हें अपने पिता के पास ले आया। पुलक मुनि ने हिरण्यधनु से कहा कि उनका पुत्र बेहतरीन धनुर्धर बनने के काबिल है, इसे सही दीक्षा दिलवाने का प्रयास करना चाहिए।
महान धनुर्धर
पुलक मुनि की बात से प्रभावित होकर भील राजा हिरण्यधनु, अपने पुत्र एकलव्य को द्रोण जैसे महान गुरु के पास ले गया। हिरण्यधनु ने जब द्रोण को अपना परिचय दिया कि वह एक भील है और अपने पुत्र को धनुर्धर बनाना चाहता है तो उसकी बात सुनकर द्रोणाचार्य बहुत हंसे।
अपमान
द्रोण ने हिरण्यधनु से कहा कि उनका काम केवल शिकार के लायक धनुष विद्या सीखना है, युद्ध में शत्रुओं को मारना उनका काम नहीं। वैसे भी द्रोण, भीष्म पितामह को दिए गए अपने वचन के लिए प्रतिबद्ध थे कि वह केवल कौरव वंश के राजकुमारों को ही अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा देंगे।
सेवक के तौर पर रहना
द्रोण की ओर से अपमानित होकर हिरण्यधनु तो वापिस जंगल लौट आए लेकिन एकलव्य को द्रोण के सेवक के तौर पर उन्हीं के पास छोड़ आए। द्रोण की ओर से दीक्षा देने की बात नकार देने के बावजूद एकलव्य ने हिम्मत नहीं हारी, वह सेवकों की भांति उनके साथ रहने लगा।
सेवक बना एकलव्य
द्रोणाचार्य ने एकलव्या को रहने के लिए एक झोपड़ी दिलवा दी। एकलव्य का काम बस इतना होता था कि जब सभी राजकुमार बाण विद्या का अभ्यास कर चले जाएं तब वह सभी बाणों को उठाकर वापस तर्कश में डालकर रख दे।
कबीले का राजकुमार
जब द्रोणाचार्य अपने शिष्यों को अस्त्र चलाना सिखाते थे तब एकलव्य भी वहीं छिपकर द्रोण की हर बात, हर सीख को सुनता था। अपने कबीले का राजकुमार होने के बावजूद एकलव्य द्रोण के पास एक सेवक बनकर रह रहा था।
एकलव्य को मिला अवसर
एक दिन अभ्यास जल्दी समाप्त हो जाने के कारण सभी राजकुमार समय से पहले ही लौट गए। ऐसे में एकलव्य को धनुष चलाने का एक अदद मौका मिल गया। लेकिन अफसोस उनके अचूक निशाने को दुर्योधन ने देख लिया और द्रोणाचार्य को इस बात की जानकारी दी।
हताश हुआ एकलव्य
द्रोणाचार्य ने एकलव्य को वहां से चले जाने को कहा। हताश-निराश एकलव्य घर की ओर रुख कर गया, लेकिन रास्ते में उसने सोचा कि वह घर जाकर क्या करेगा, इसलिए बीच में ही एक आदिवासी बस्ती में ठहर गया। उसने आदिवासी सरदार को अपना परिचय दिया और कहा कि वह यहां रहकर धनुष विद्या का अभ्यास करना चाहता है। सरदार ने प्रसन्नतापूर्वक एकलव्य को अनुमति दे दी।
मिट्टी की प्रतिमा
एकलव्य ने जंगल में रहते हुए गुरु द्रोण की एक मिट्टी की प्रतिमा बनाई और उसी के सामने धनुष-बाण का अभ्यास करने लगा।
अर्जुन को वचन
समय बीतता गया और कौरव वंश के अन्य बालकों, कौरव और पांडवों के साथ-साथ एकलव्य भी युवा हो गया। द्रोणाचार्य ने बचपन में ही अर्जुन को यह वचन दिया था कि उससे बेहतर धनुर्धर इस ब्रह्मांड में दूसरा नहीं होगा। लेकिन एक दिन द्रोण और अर्जुन, दोनों की ही यह गलतफहमी दूर हो गई, जब उन्होंने एकलव्य को धनुष चलाते हुए देखा।
एकाग्रता हुई भंग
एक दिन की बात है, एकलव्य अभ्यास कर रहा था और एक कुत्ता, बार-बार भोंककर उसकी एकाग्रता को भंग करता जा रहा था। एकलव्य ने अपने तीरों से कुत्ते का मुंह कुछ ऐसे बंद किया कि रक्त की बूंद भी उसके शरीर से नहीं बही।
राजकुमारों का कुत्ता
यह कुत्ता कोई साधारण कुत्ता नहीं बल्कि पांडवों और कौरवों के साथ द्रोण के आश्रम में रहने वाला कुत्ता था। जब वह कुत्ता वापस आश्रम गया तो द्रोण यह देखकर हैरान रह गए कि कितनी सफाई से उस कुत्ते के मुंह को तीरों से बंद किया गया है।
सैनिकों के साथ पहुंचे द्रोण
कुछ ही देर बीती होगी कि द्रोणाचार्य, अर्जुन, युधिष्ठिर और दुर्योधन समेत, कई सैनिक भी एकलव्य के पास आ पहुंचे। एकलव्य ने जैसे ही द्रोणाचार्य को अपने समक्ष देखा, उन्हें प्रणाम करने के लिए पहुंच गया।
कुत्ते को कष्ट
गुरु द्रोण ने क्रोधित होकर पूछा कि किसने राजकुमार के कुत्ते को इतना कष्ट पहुंचाया है? इस सवाल के जवाब में एकलव्य ने कहा कि इस कुत्ते को जरा भी कष्ट नहीं हुआ क्योंकि इसका मुंह मैंने आपके द्वारा सिखाए गए तरीके से बंद किया है।
बेहतर धनुर्धर
गुरु द्रोण पहले तो आश्चर्यचकित हुए लेकिन बाद में अपनी मिट्टी की मूर्ति देखकर एकलव्य को पहचान गए। अर्जुन, अपने गुरु द्रोण को ऐसे देखने लगा जैसे उन पर हंस रहा हो, क्योंकि उससे बेहतर धनुर्धर आज उसके सामने खड़ा था।
एकलव्य की प्रतिभा
एकलव्य की प्रतिभा को देखकर द्रोणाचार्य संकट में पड़ गए। लेकिन अचानक उन्हें एक युक्ति सूझी। उन्होंने एकलव्य से गुरुदक्षिणा में उसके दाएं हाथ का अंगूठा ही मांग लिया ताकि एकलव्य कभी धनुष चला ना पाए।
आज्ञाकारी शिष्य
एक आदर्श और आज्ञाकारी शिष्य की तरह एकलव्य ने अपनी आंखों में आंसू भरकर, बिना सोचे-समझे अपने गुरु को अपना अंगूठा दे दिया।
विष्णु पुराण
विष्णु पुराण और हरिवंशपुराण में उल्लिखित है कि निषाद वंश का राजा बनने के बाद एकलव्य ने जरासंध की सेना की तरफ से मथुरा पर आक्रमण कर यादव सेना का लगभग सफाया कर दिया था। यादव वंश में हाहाकर मचने के बाद जब कृष्ण ने दाहिने हाथ में महज चार अंगुलियों के सहारे धनुष बाण चलाते हुए एकलव्य को देखा तो उन्हें इस दृश्य पर विश्वास ही नहीं हुआ।
वीरगति को प्राप्त हुआ एकलव्य
एकलव्य अकेले ही सैकड़ों यादव वंशी योद्धाओं को रोकने में सक्षम था। इसी युद्ध में एकलव्य, कृष्ण के हाथों वीरगति को प्राप्त हुआ था। उसका पुत्र केतुमान भीम के हाथ से मारा गया था।
कृष्ण का अर्जुन प्रेम
जब युद्ध के बाद सभी पांडव अपनी वीरता का बखान कर रहे थे तब कृष्ण ने अपने अर्जुन प्रेम की बात कबूली थी।
कृष्ण का कथन
कृष्ण ने अर्जुन से स्पष्ट कहा था कि “तुम्हारे प्रेम में मैंने क्या-क्या नहीं किया है। तुम संसार के सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर कहलाओ इसके लिए मैंने द्रोणाचार्य का वध करवाया, महापराक्रमी कर्ण को कमजोर किया और न चाहते हुए भी तुम्हारी जानकारी के बिना भील पुत्र एकलव्य को भी वीरगति दी ताकि तुम्हारे रास्ते में कोई बाधा ना आए”।
क्या मीडिया/पत्रकारिता पर राजनीति या कॉर्पोरेट का कंट्रोल जायज है?
ध्यान रहे, मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ है.
इससे पहले की इस प्रश्न पर विचार किया जाए की किसी लोकतान्त्रिक व्यवस्था में मीडिया की भूमिका क्या है, यह स्पष्ट करना अत्यंत आवश्यक है की लोकतंत्र का तात्पर्य क्या है. लोकतंत्र से अभिप्राय उस शासन व्यवस्था से है जो जनता के द्वारा, जनता के लिए बनाई गयी हो और जिसके शासक भी जनप्रतिनिधि ही हों.सुनने में तो यह परिभाषा अत्यंत ही सुन्दर लगती है.
“लोकतंत्र” दुनिया में मनुष्य के द्वारा बनाया गया सबसे खूबसूरत और हसीन शब्द है.
विडम्बना यह है की लोकतंत्र के शाब्दिक अर्थ को तो हम जानते हैं लेकिन व्यावहारिक तौर पर उसका विकास हम नहीं कर पाए हैं. किसी भी लोकतान्त्रिक व्यवस्था को सुचारु रूप से चलाने के लिए विश्वसनीय सूचना माध्यम की आवश्यकता होती है. इसी सूचना माध्यम से सरकार की नीतियों, विभिन्न योजनाओं से अवगत हुआ जा सकता है. ऐसे में मीडिया ही वह सूचना माध्यम है जिससे विश्वसनीय सूचनाएं पायी जा सकती हैं. यह सच है की किसी भी अखबार या मीडिया हाउस को चलाने के लिए धन की आवश्यकता होती है लेकिन केवल धन कमाने के लिए अखबार या मीडिया हाउस चलाना ठीक नहीं. नवउदारवादी शक्तियों ने सबसे पहले अपने शिकंजे में इन्हीं मीडिया घरानों को लिया क्यूंकि मीडिया की दखल घर- घर में है और अपना तंत्र फैलाने के लिए मीडिया से ज्यादा और विश्वसनीय माध्यम और क्या हो सकता है. यही वजह है की लगभग हर बड़े कारपोरेट के पास एक खबरिया चैनल है जिन्होंने देश के शीर्षस्थ पत्रकारों को मोटी तनख्वाह देकर खरीद लिया है और इन पत्रकारों की की यह मजबूरी है की अपने मालिकों का यशोगान करें. मीडिया आज अंधविश्वास का पोषक बन गया है. कहाँ तो पत्रकारिता का उत्तरदायित्व समाज में अलख जगाना हुआ करता था, ज्ञान का दीपक जलाना हुआ करता था लेकिन आज हालत यह है की ये समाचार चॅनेल एवं अखबार अंधविश्वासों को फैला रहे हैं.
जिस प्रकार स्टिंग ऑपरेशन चलाकर भ्रष्ट अधिकारियों को मीडिया ने बेनकाब किया है वह भी तारीफ के काबिल है. सांप्रदायिक दंगों के दौरान मीडिया द्वारा अपने दायित्व का निर्वहन बखूबी किया जा रहा है लेकिन होना यह भी चाहिए की सांप्रदायिक विचार फैलाने वाले चेहरों को भी बेनकाब किया जाए.
मीडिया को लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए पूरी तरह दोषी नहीं ठहराया जा सकता. अगर देश की गरीबी और भुखमरी की ओर मीडिया की नजर नहीं जाती तो इसका दोषी दर्शक वर्ग भी है जो इसे देखना पसंद नहीं करता. मीडिया ने अगर ‘जो दिखता है, वही बिकता है‘ या ‘ जो बिकता है, वही दिखता है‘ को अपना मूलमंत्र बनाया है तो कहीं न कहीं इसमें देखने वालों की रूचि भी शामिल है. अंततः यह नहीं भूलना चाहिए की लोकतांत्रिक मूल्यों को बचाकर रखने की जिम्मेदारी केवल मीडिया की ही नहीं बल्कि उस समाज की भी है जो उस देश का नागरिक है.
इंटरनेट पर लाखों – करोड़ों वेबसाइट मौजूद हैं. हर वेबसाइट का कुछ न कुछ मकसद है. आपको भी जब कुछ ढूंढना होता है तो आप गूगल करते हैं. लेकिन हम आपके लिए लाये हैं कुछ बेहतरीन वेबसाइट जो आपके काफी काम की हो सकती हैं.
क्या आपने Catch 22 नियम के बारे में सुना है? अगर नहीं तो आइये जानते हैं Catch 22 नियम के बारे में.
एक ऐसी परिस्थिति जिसका कोई हल नहीं निकलता. इसके नियम इस तरह विरोधाभाषी होते हैं की उनका हल असंभव होता है.
इसे एक उदहारण से समझते हैं:
एक लड़के को ट्रैफिक पुलिस वाले ने पकड़ लिया और उससे उसका ड्राइविंग लाइसेंस दिखने को कहा.
लड़के ने कहा: नहीं है.
पुलिस: लइसेंस है नहीं या बनवाया ही नहीं?
लड़का: बनवाया ही नहीं.
पुलिस: क्यों?
लड़का: लइसेंस बनवाने तो गया था लेकिन वो वोटर आईडी मांग रहे थे जोकि मेरे पास नहीं थी.
पुलिस: तो वोटर आईडी बनवा लेनी चाहिए.
लड़का: वोटर आईडी बनवाने गया था, लेकिन वो राशन कार्ड मांग रहे थे, वो मेरे पास नहीं है.
पुलिस: तो राशन कार्ड बनवा लो.
लड़का: राशन कार्ड बनवाने गया था, वो बैंक की पासबुक मांग रहे थे, लेकिन वो भी मेरे पास नहीं है.
पुलिस: तो इसमें क्या समस्या है, बैंक में अकाउंट खुलवा लो.
लड़का: बैंक में गया था लेकिन वो ड्राइविंग लइसेंस मांग रहे थे.
इस उदहारण में कुछ भी गलत नहीं है और इसका कोई भी हल भी नहीं है और यही परिस्थिति Catch – 22 कहलाती है.
दरअसल Catch – 22 एक उपन्यास है जिसे एक अमेरिकी लेखक जोसफ हेलर ने लिखा था. उन्होंने यह उपन्यास 1953 में लिखना शुरू किया था और 1961 में यह पब्लिश हुआ था. यह उपन्यास बीसवीं सदी के अच्छे उपन्यासों में शामिल है.
आइये Catch – 22 के कुछ और उदाहरण देखें, ये वास्तविक भी हैं और इन उदाहरणों को पढ़कर आपको हंसी भी आएगी, लेकिन ये गंभीर भी हैं.
नौकरी के लिए अनुभव चाहिए
और
अनुभव के लिए नौकरी चाहिए.
है न अद्भुत. अब आप ही बताइये इस परिस्थिति का क्या हल है?
इस नियम का यही नियम है की अगर नियम मानते हो तो कोई हल नहीं है, और अगर हल निकालने की कोशिश करते हो तो नियम टूट जाता है.
बैंक उसको कभी लोन नहीं देती जिसे इसकी जरूरत है.
यह एक सजीव उदाहरण है, जब तक आपके पास पैसा है तब तक बैंक वाले लोन और क्रेडिट कार्ड लिए आपके पीछे घूमेंगे, और अगर आपके पास जॉब नहीं है और पैसे की जरूरत है तो न तो आपका लोन अप्रूव होगा और न ही क्रेडिट कार्ड अप्रूव होगा. और अगर पैसे की कमी से कभी लोन या क्रेडिट कार्ड का बिल नहीं भर पाए तो समझ लीजिये बैंक वाले आपसे लोन वसूलने के लिए पीछे ही पड़ जाएंगे.
अरे भाई अगर पैसे ही होते तो लोन या बिल सही समय पर नहीं चुका देते.
इस तीसरे उदहारण में भी कोई गलती नहीं है.
स्कूल में टीचर छात्र से:-
टीचर : होम वर्क क्यों नहीं किया ??
छात्र : सर बिजली नहीं थी।
टीचर : तो ममोमबत्ती जला लेते।
छात्र : सर माचिस नहीं थी।
टीचर : माचिस क्यों नहीं थी?
छात्र : पूजा घर में रखी थी।
टीचर : तो वहां से ले आते।
छात्र : नहाया हुआ नहीं था।
टीचर : नहाया क्यों नहीं था ?
छात्र : पानी नहीं था।
टीचर : पानी क्यों नहीं था ?
छात्र : मोटर नहीं चल रही थी।
टीचर : तो, मोटर क्यों नहीं चल रही थी ?
छात्र : सर यही तो पहले बताया था की लाइट नहीं थी।
अब आपको समझ आ गया होगा की ये सिर्फ जोक ही नहीं हैं बल्कि Catch 22 के नियम हैं जो असंभव कंडीशन को फॉलो करते हैं.