Category: कवितायें

  • हिंदी कविता – चाहत

    हिंदी कविता – चाहत

    छू लो उन गहराइयों को जिनसे तुम्हें मोहब्बत है,

    छू लो उन ऊंचाइयों को जिनकी तुम्हें चाहत है.

    पा लो उन सच्चाइयों को जिनकी तुमको हसरत है.

     

    मन में एक विचार करो, मन तुम्हारा अपना है,

    तन से तुम वो कार्य करो, तन तुम्हारा अपना है,

    तन, मन, धन से जुट जाओ, दृढ संकल्प तुम्हारा हो.

     

    पा लो तुम उस मंजिल को, जिसकी तुम्हें तमन्ना है,

    छू लो उन गहराइयों को जिनसे तुम्हें मोहब्बत है.

     

    अड़चन कितनी भी आये, कभी न डेग से तुमको हिलना,

    गिर के उठना उठ के गिरना, यही तुम्हारा मकसद हो,

    ठोकर खाकर के संभलना, यही तुम्हारा जीवन हो.

     

    पा लो अपने ध्येय को जिसकी तुमको ख्वाहिश है,

    छू लो उन गहराइयों को जिनसे तुम्हें मोहब्बत है,

    छू लो उन ऊंचाइयों को जिनकी तुम्हें चाहत है.

    पा लो उन सच्चाइयों को जिनकी तुमको हसरत है.
    साभार: रोली गुप्ता

  • हिंदी कविता – सुख-दुःख

    हिंदी कविता – सुख-दुःख

    सुख दुःख तो ईश्वर का चक्रव्यूह है.

    यह मनुष्य के लिए गणित का एक प्रकार से आव्यूह है.

     

    यदि ये चक्र एक बार मनुष्य से टूट जाए.

    तो वही इस संसार का अभिमन्यु कहलाये.

     

    हे ईश्वर! आपने इतने दुःख क्यों बनाये.

    इंसान जो इन दुखों को सह ही न पाए.

    अगर ये सारे दुःख आपकी कृपा से गुम हो जाएँ.

    तो प्रत्येक मनुष्य कितने सारे सुख पाए.
    साभार: चांदनी निषाद

  • हिंदी कविता – दो पत्तों की कहानी

    हिंदी कविता – दो पत्तों की कहानी

    दो पत्तों की है मर्म कथा

    जो एक डाल से बिछड़ गए |

    विपरीत दिशाओं में जाकर

    जाने कैसे वे भटक गए |

    थे तड़प रहे, सूखें न कहीं |

     

    हर डगर मोड़ पर पूछ रहे

    देखा तुमने क्या पात कहीं

    खोया मेरी ही तरह कहीं

    मेरे जैसा तड़प रहा |

     

    आशा में तिल तिल डूब रहा

    आशा में जीवन खोज रहा |

    देखो झीलें, थी हरी हरी

    मैं, तुम जैसी थी प्रशन्न |

     

    पर आंधी ने कर दिया अलग

    हूँ आज निपट निर्धन विपणन |

     

    हम सचमुच कितने भटक गए

    इस दुनिया में हम बिखर गए |

    आस्तित्व मिटा, खो गए कहीं

    या फिर दोनों संग मर गए |

     

    एक साथ खुश थे दो पत्ते

    साथ-साथ खिलकर मुस्काये

    फल को ढके हुए निज तन से

    रखे थे हम उसे छिपाये ||

     

    पर अब तोड़ उसे भी कोई

    अलग करेगा उस डाली से |

    अब सम्बन्ध न रह जाएगा

    फल का उपवन के माली से ||

     

    छोटा सा संसार हमारा

    उजड़ गया,अब यही चाह है |

    खोजूं जग में फिर साथी को

    साहस की बस, यही राह है ||

     

    झील, समुद्रों और हवाओं

    मुझे गोद में बिठा घुमाओ |

    मैं पत्ती हूँ, मनुज नहीं हूँ,

    मेरा खोया मित्र मिलाओ |

    हंसना, रोना मुझे न आता,

    पर मुझमे भी भाव वही हैं |

    नहीं अकेली रह सकती मैं

    वह जीने का चाव नहीं है |

    अरे पर्वतों, उस पत्ते को

    तुम ही कहीं सहारा दे दो |

    मिट जाए न अतीत हमारा

    तुम ही कहीं किनारा दे दो |

    चलते – चलते ताकि पत्तियां

    सूख गयी तप कर, मुरझा कर |

    एक शिला देखी, आशा से

    चिपक गयी उससे फिर जाकर |

    किन्तु अलग थी, सोच रही थीं,

    बिछड़ा हुआ मित्र मिल जाए |

    सबने बहुत पुकारा उसको |

    उस तक पहुँच नहीं स्वर पाए |

    तभी एक आंधी आई,जो

    उदा ले गयी उसे छुपाये |

    दो पत्तों की यही कहानी

    जो फिर कभी नहीं मिल पाए |
    साभार: नीतू सविता

  • यहाँ मैं अजनबी हूँ

    यहाँ मैं अजनबी हूँ

    किससे करूँ शिकवा शिकायत ,

    किससे करूँ यारी दोस्ती ,

    किससे करूँ नफरत दुश्मनी ,

    यहाँ मैं अजनबी हूँ .

    बेगाना शहर है ,

    अनजान डगर है ,

    सब अजनबी हैं ,

    ये मेरा , वो मेरा ,

    सब कुछ है मेरा ही मेरा ,

    बस यही सियासत है ,

    जो कुछ देखो

    सब कुछ ले लो ,

    कोई नहीं है अपना पराया ,

    यहाँ मैं अजनबी हूँ .

    सब मतलबपरस्त हैं ,

    दोस्ती मतलब की ,

    दुश्मनी मतलब की ,

    प्यार भी मतलब का ,

    सब मतलबी हैं ,

    मतलब निकल गया ,

    तो क्या तेरा क्या मेरा ,

    छोडो सब कुछ है मेरा ,

    भुला दिए सब रिश्ते नाते ,

    भुला दिए सब आते जाते ,

    यहाँ मैं अजनबी हूँ ,

    बस ,

    यहाँ मैं अजनबी हूँ ………….

    सुरेन्द्र मोहन सिंह

  • मैं अभी रास्ते में हूँ

    मैं अभी रास्ते में हूँ

    मंजिलों के हाल पूंछो,

    अभी तो रास्ते में हूँ .

    मंजिलें हैं अभी बहुत दूर ,

    अभी तो वक्त लगेगा .

    जब मंजिलें आएँगी,

    हाल खुद बयान होंगे.

    अभी से कोई हाल पूंछो

    अभी तो रास्ते में हूँ.

    ………………..

    ………………..

    कहीं गिर ना जाऊं ,

    इसलिए अभी,

    मंजिलों के हाल पूंछो,

    अभी तो रास्ते में हूँ……..

    (कहानी अभी अधूरी है)

    –  सुरेन्द्र मोहन सिंह

  • पहला प्यार – एक छोटी सी कविता

    पहला प्यार – एक छोटी सी कविता

    पहला प्यार होता है ,

    ईश्वर का दिया हुआ मौका ,

    तन मन की बहार की,

    निर्मल वयार का सुगन्धित झोंका ,

    पहला प्यार,

    सरलता है, सहजता है ,

    संस्कृति है, तमीज है,

    वह भी कोई भूलने की चीज है।

  • बस नहीं अपना

    बस नहीं अपना

    इक खुशनुमा लम्हा आकर गुजर गया

    क्या हुआ कुछ दूर साथ चले ,

    क्या हुआ चलकर विछड़ गए

    सोचो एक खूबसूरत मोड़ दे सके

    वरना याद आते उम्र भर

    पर अभी क्या

    याद तो आते अभी भी

    आंखों को नम कर जाते अभी भी

    सोचता हू , इतनी पुरानी बात

    कैसे याद आती है

    क्यूँ याद आती है

    पर यादों पर तो बस नहीं अपना .

    सोचता हू सपनों में भी जाते हो

    कैसे आते हो

    क्यूँ आते हो

    पर सपनो पर तो बस नही अपना

    बरसों से नहीं देखा आपको

    पर लगता है हर पल देखा है तुमको

    पर क्या करूं

    यादों पर तो बस नहीं अपना

    बात करता हूँ तो जुबान पे नाम आपका

    क्यूँ आता है

    कैसे आता है

    पर क्या करूं

    बातों पर अब बस नहीं अपना

    जब जब भुलाया आपको , आप ही आप नजर आए

    क्या करूं अब

    कैसे करूं अब

    अब तो अपने आप पर भी बस नहीं अपना

    –  सुरेन्द्र मोहन सिंह