Category: हिंदी साहित्य

  • यहाँ मैं अजनबी हूँ

    यहाँ मैं अजनबी हूँ

    किससे करूँ शिकवा शिकायत ,

    किससे करूँ यारी दोस्ती ,

    किससे करूँ नफरत दुश्मनी ,

    यहाँ मैं अजनबी हूँ .

    बेगाना शहर है ,

    अनजान डगर है ,

    सब अजनबी हैं ,

    ये मेरा , वो मेरा ,

    सब कुछ है मेरा ही मेरा ,

    बस यही सियासत है ,

    जो कुछ देखो

    सब कुछ ले लो ,

    कोई नहीं है अपना पराया ,

    यहाँ मैं अजनबी हूँ .

    सब मतलबपरस्त हैं ,

    दोस्ती मतलब की ,

    दुश्मनी मतलब की ,

    प्यार भी मतलब का ,

    सब मतलबी हैं ,

    मतलब निकल गया ,

    तो क्या तेरा क्या मेरा ,

    छोडो सब कुछ है मेरा ,

    भुला दिए सब रिश्ते नाते ,

    भुला दिए सब आते जाते ,

    यहाँ मैं अजनबी हूँ ,

    बस ,

    यहाँ मैं अजनबी हूँ ………….

    सुरेन्द्र मोहन सिंह

  • मैं अभी रास्ते में हूँ

    मैं अभी रास्ते में हूँ

    मंजिलों के हाल पूंछो,

    अभी तो रास्ते में हूँ .

    मंजिलें हैं अभी बहुत दूर ,

    अभी तो वक्त लगेगा .

    जब मंजिलें आएँगी,

    हाल खुद बयान होंगे.

    अभी से कोई हाल पूंछो

    अभी तो रास्ते में हूँ.

    ………………..

    ………………..

    कहीं गिर ना जाऊं ,

    इसलिए अभी,

    मंजिलों के हाल पूंछो,

    अभी तो रास्ते में हूँ……..

    (कहानी अभी अधूरी है)

    –  सुरेन्द्र मोहन सिंह

  • पहला प्यार – एक छोटी सी कविता

    पहला प्यार – एक छोटी सी कविता

    पहला प्यार होता है ,

    ईश्वर का दिया हुआ मौका ,

    तन मन की बहार की,

    निर्मल वयार का सुगन्धित झोंका ,

    पहला प्यार,

    सरलता है, सहजता है ,

    संस्कृति है, तमीज है,

    वह भी कोई भूलने की चीज है।

  • बस नहीं अपना

    बस नहीं अपना

    इक खुशनुमा लम्हा आकर गुजर गया

    क्या हुआ कुछ दूर साथ चले ,

    क्या हुआ चलकर विछड़ गए

    सोचो एक खूबसूरत मोड़ दे सके

    वरना याद आते उम्र भर

    पर अभी क्या

    याद तो आते अभी भी

    आंखों को नम कर जाते अभी भी

    सोचता हू , इतनी पुरानी बात

    कैसे याद आती है

    क्यूँ याद आती है

    पर यादों पर तो बस नहीं अपना .

    सोचता हू सपनों में भी जाते हो

    कैसे आते हो

    क्यूँ आते हो

    पर सपनो पर तो बस नही अपना

    बरसों से नहीं देखा आपको

    पर लगता है हर पल देखा है तुमको

    पर क्या करूं

    यादों पर तो बस नहीं अपना

    बात करता हूँ तो जुबान पे नाम आपका

    क्यूँ आता है

    कैसे आता है

    पर क्या करूं

    बातों पर अब बस नहीं अपना

    जब जब भुलाया आपको , आप ही आप नजर आए

    क्या करूं अब

    कैसे करूं अब

    अब तो अपने आप पर भी बस नहीं अपना

    –  सुरेन्द्र मोहन सिंह